🌹✍🏻 शिरोरोग ✍🏻🌹
जासु कृपा कर मिटत सब आधि,व्याधि अपार
तिह प्रभु दीन दयाल को बंदहु बारम्बार
🌳🌺महिला संजीवनी 🌺🌳
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🌻शिरो रोग पर शास्त्रोक्त व् अनुभूत जानकारी उपलब्ध करवाने हेतु शार्ङ्गधर विचार मंच निम्न विद्वज्जनों का हार्दिक आभार व्यक्त करता है-----
सर्व श्री डॉ अम्बाशंकर जी दवे, डॉ जगदीश जी शर्मा, डॉ रमेश जी भूतिया,डॉ विजय प्रकाश जी गौतम,डॉ दया शंकर जी(पतंजलि योग पीठ हरिद्वार),प्रो दीप नारायण जी पांडेय,डॉ हरिओम जी शर्मा,डॉ शक्ति असेरी जी,डॉ ज्योति जी वर्मा,डॉ इंदुबाला जी,डॉ माणक जी गौड़, डॉ ब्रिज किशोर जी मिश्रा।
🌷निवेदन-----🌷
प्रस्तुत आलेख में समस्त जानकारी स्व अनुभूत व् विभिन्न स्रोतों से प्राप्त की गयी है जिसका उद्देश्य मात्र स्वस्थ भारत निर्माण हेतु ज्ञान वर्धन व् आयुर्वेद का प्रचार प्रसार है। इसमें प्रदान की गयी चिकित्सा आदि का प्रयोग स्वविवेक व् योग्य चिकित्सक के परामर्श उपरान्त ही करें। किसी भी प्रकार के दुष्प्रभाव होने वाली हानि के लिए ये मंच या मंच का सदस्य उत्तरदायी नहीं होगा।
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🌻*शिरो रोग*🌻
शिरो रोग के लिये
शिर शूल
शिरोेभि ताप
शिरो वेदना
शब्द का व्यवहार होता है। आयुर्वेद इसे अन्य रोगो के लक्षणो के साथ स्वतंत्र रोग भी मानता है।आधुनिक विद्वान इसे मात्र एक लक्षण मानते हैं जो अनेक व्याधियॉ में मिलता है।
🍀 आधुनिक दृष्टिकोण से
सिर के निम्न भागो में दबाव पडने से शिर शूल की उत्पत्ति होती है।
🌻 *करोटिबहिर्गत कारण*
इसमें कपालास्थि तथा उसकी पेशियॉ
ओर रक्त वाहिनी सिराओं पर दबाव पडने से शिर शूल होता है।
🌻 *कपालान्तर्गत कारण*
कपालास्थि व बडी बडी रक्त वाहिनीयो तथा पंचम, नवम, व दशम
शीर्षण्य नाडीयो पर प्रभाव होने से शिरःशूल होता है।
🌻मस्तिष्क के निम्न रोगो में शिरःशूल पाया जाता है।
Ceribral tumour
Meningitis
Ceribro spinal fluid की वृद्धि
नेत्र, नासिका, कर्ण, तथा दॉतो के व्रण शोथ पुरकपालवायुविवरशोथ अस्थि शोथ,प्रतिश्याय,तारामंडलशोथ, अधिमंथ दंतगतशोथ मध्य कर्ण शोथ
Nervous headache
त्रिशाखा नाडी शूल
मस्तिष्क गत फिरंग
मस्तिष्कावरणशोथ
विद्रधि
जीर्ण वृक्क शोथ
मूत्र विषमयता
उच्च रक्त चाप
योषापस्मार
ऑत्रिकज्वर
मसूरिका आदि
रोगो के कारण शिरःशूल होता है।
🍀 *शिरो रोगो के कारण*🍀
अविधि धूमपान
धूप या अग्नि सेवन
तुषार सेवन
देर तक जल क्रीडा
अधिक सोेने से
अधिक जागने से
अधिक स्वेदन
अधिक मन संताप
पूर्वी हवा से
ऑसुओ के वेग रोकना से
अधिक रोने से
अधिक जल या मद्य पीने से
सिर के भीतर कृमि होने से
पुरुष मूत्र वेग धारण से
ऊंचा तकिया लगाने से
अस्वच्छता
अभ्यंग नहीं करने से
लगातार नीचे देखने से
असात्म्य गंध सूंघने से
दूषित जल पीने से
आम दोष से
अधिक बोलने से
शिर प्रदेश में कुपित दोष
शिरो रोगो को उत्पन्न करते हैं।
🌼 *शिरो रोग संख्या मे मतभिन्नता*🌼
चरक ----- ---5
सुश्रुत. -------11
अष्टॉग ह्रदय---10
🌺 *वातिक शिरो रोग*
शंख प्रदेश में सूचि भेदन वत पीडा
घाटा(ग्रीवा का पिछला भाग) में आरी
से चीरने के समान पीडा
दोनो भ्रू के बीच व ललाट में तीव्र वेदना
कानो में अत्यंत शब्द
नेत्र बाहर खींच रहा है वेदना
भ्रम
क्लम
शिर प्रदेश की सभी संधिया अलग होने जैसी पीडा
शिरा घमनी स्फुरण
मन्यास्तंभ
🍀 *पैत्तिक शिरःशूल*
शिरो दाह वेदना
नेत्र दाह
तृष्णाः
स्वेदाधिक्य
🍀 *श्लेष्मिक शिरःशूल*
मंद वेदना
शिर स्तैमित्य
शिरो गौरव
अरुचि
आलस्य
🍀 *कृमिज शिरःशूल*
व्यधवत पीडा
छेदन वत पीडा
कंडू
शोफ
दुर्गंध
🍀 *शंखक शिरःशूल*
शंख प्रदेश में तीव्र पीडा
लालिमा
भंयकर शोथ
🍀 *अर्द्धावभेदक*
शिर के १/२ प्रदेश में तीव्र पीडा
कर्ण, नेत्र पीडा
शस्त्र से काटने जैसी पीडा
🍀 *सूर्यावर्त*
सूर्योदय से सूर्यास्त तक तीव्र पीडा
🍀 *अनन्तवात*
मन्या,पृष्ठ, घाटा में तीव्र पीडा
नेत्र रोग
हनुग्रह
कम्प
🌺 *शिरोरोग चिकित्सा*🌺
🍀वातज शिरो रोग चिकित्सा
वातध्न नस्य
स्नेहन
स्वेदन
वात दोष नाशक अन्नपान
🍀 पित्तज शिरःशूल चिकित्सा
घृत पान
दुग्ध पान
नस्य
शीतल परिशेक
शीतल लेप
पित्त नाशक अन्नपान
🍀कफज शिरो रोग
स्वेदन
घूमपान
नस्य
कफघ्न प्रलेप
कफघ्न अन्नपान
पुराना घृत पान
शिरोबस्ति
🍀आचार्य वाग्भट के अनुसार
पुरुष शरीर अश्वत्थ वृक्ष के समान है।
इस वृक्ष का मूल मस्तिष्क रुपि प्रधान अंग सिर उपर
हस्तपादादि शाखायें नीचे।
अतः मूल प्रहार कारी रोगो को शिघ्र
नष्ट करने का प्रयत्न करना चाहिये।
🍀यद्यपि शिरो रोग प्रायः त्रिदोषज होते है तथापि दोषो की प्रधानाप्रधान का विचार कर प्रथम उल्वण रोग की चिकित्सा करना चाहिये।
🍀शिरो विरेचन
दोषो की उर्ध्व गति होने से मस्तिष्क में लीन हो जाते हैं इस दृष्टि से स्वेदन तथा उपनाह करने से अवस्थित गाढे पिधलकर स्राव के रुप में पिघलकर
स्राव के रुप में बाहर निकल जाते है।
आमज अव स्थान मे शुष्क स्वेद दे।
बंधन वातज शिरो रोग में पट्टी बॉधने से लाभ मिलता है।
कवल गंडूष
इसे करने से प्रसृत दोष मुख से बाहर निकल जाते हैं।
लेप लगाने से स्थानिक शान्ति मिल जाती है।
शीत ऋतु मे उष्ण उपक्रम
उष्ण ऋतु मैं शीत उपक्रम हितकारी होता है।
🍀नस्य कर्म की विशिष्टता
शिरो रोग या उर्ध्व जत्रुगत रोगो में नस्य कर्म प्रधान माना जाता है।
चरक के अनुसार
नियमित नस्य लेने से
नेत्र,नासा कर्ण, की शक्ति अक्षुण्ण
रहती है। सिर के बाल समय से पूर्व
श्वेत व कपिल वर्ण के नहीं होते।गिरते भी नहीं है।
नस्य कर्म से सिर तथा कपाल कीसिराए, संधियॉ, स्नायु, कंडराए तर्पित होकर बलशाली हो जाती है।
इन्द्रियॉ निर्मल हो जाती है।
नस्य कर्म से
शिरःशूल
मन्या स्तंभ
अर्दित
हनुग्रह
पीनस
अर्द्धावभेदक
शिरकंपन रोग नष्ट होते है।
ऩासा शिर का द्वार है। इस लिये मार्ग से पंहुचायी ओषध समस्त सिर में व्याप्त होकर वहॉ के रोगो को नष्ट कर देती है।
🍀शिर पर तैल प्रयोग
शार्गंधर मतानुसार शिर पर तैल लगाने की चार विधिसॉ है।
अभ्यंग
परिशेक (शिरोधारा)
पिचुधारण
शिरोबस्ति
उत्तरोत्तर लाभ दायक है।
🌻agar koi bhi sirasool hai usmai agar dosh ka ansha ansh kalpana kar kai treatment kia jai to safalta nischai hi prapt hoga,
🌻Agar result nahi milta hai to nasyam, sirodhara, talam , yognindra in sab treatment procedure add karnai sai to sure success mil jayiga.
🌻Lakin in sab treatment procedure mai medicine Jo use hoga WO bhi dosh kai ansha ansha kalpna sai hi hoga
🌻सूर्यावर्त मे मुख्य निदान. वेगसंधारण व अजीण होते है चिकित्सा मेधृतपान शिरोविरेचन सिचन उपनाह नस्य
🍀 *अनुभव जन्य चिकित्सा*🍀
🌻वातिक शिरोरोग मे वात विध्ंवसक रस उष्णोदक के साथ देने से लाभ होता है
🌻ज्वर, द्वन्दज.-विषम ज्वर आदि अनेक दूसरे रोगो के कारण शिरशूल अवश्य होता है कास विशेषकर जीर्ण कास में, अजीर्ण में, स्त्रियों के गर्भाशय में पीडा होने पर, मासिक धर्म के समय... शिरशूल होता है
Ardhavibhedak shul
त्रिफला चूर्ण ले ते रहने से भी लाभ होता है।
🌻कफज शिरोरोग मे वमन त्रिकटुक्वाथ का गण्डूष धृतपान. त्रिभुवनकीति शहद से सेवन
🌻पैतिक व रक्तज मे दुध से सिचंन लालकमल शवेतचदंन नागरमोथा यष्टि को घी के साथ पीसकर सिर पर लेप
🌻Srpghn+sutshekhr rs milk k sath
🌻Suryavrt मे मुख्य निदान. वेगसंधारण व अजीण होते है चिकित्सा मेधृतपान शिरोविरेचन सिचन उपनाह नस्य
🌻भल्लातक अवलेह दूध के साथ देने से जीर्ण शिरः शूल में लाभ
🌻प्रतिश्याय जनित शिर:शूल मे निम्न व्यवस्था पत्रक/----
सितोपलादि चूर्ण 2 gm
गोदंती भस्म 500 mg
शिरः शुलादि वज्र रस 250 mg
-----+----------------------
bd sahd से देवे
वात शुलानतक बाम extranl use कराए 4 head
🍀 *सामान्य सिर दर्द की अनुभूति चिकित्सा*🍀
(गैस,वात, पित्त प्रकोप,कब्ज,तनाव,बीपी आदि कारणों से)
सुतशेखर रास--------10ग्राम
गोदन्ती भस्म---------10ग्राम
शिरः शुलादि वज्र रास---10ग्राम
लक्ष्मी विलास रस--------10ग्राम(अभ्रक युक्त)
सभी को मिलाकर 40 पुड़िया बनाएं।
सुबह शाम (या आवश्यकतानुसार दोपहर को भी) शहद से
भोजन के बाद पथ्यादि काढ़ा
रात्रि में कब्ज नाशक चूर्ण।
🌻चिंता आदि के कारण जीर्ण शिरः शूल में
शंखपुष्पी
शतावर
ब्राह्मी
जटामांसी
संभाग लेकर मिश्री के साथ 3 से 5 ग्राम का सेवन विशेष लाभदायक है ।
अन्य औषधियों का प्रयोग आवश्यकतानुसार कर सकते हैं।
🍀प्रातः उठते ही यदि सिर दर्द हो तो उक्त प्रयोग में जलेबी के ऊपर वचा का चूर्ण 2 से 5 ग्राम तक डॉलकर जलेबी खाएं तथा थोड़ी से जलेबी की ही चाशनी पीएं।
🍀Ardh- avbhedk मे मुख्यता सिर मे आरी से काटने समान आधे सिर मे वेदना होती है अधिक दिन रहने पर नेत्र व कान का नाश करता है
🌻त्रिभुवनकीति रस सूतशेखर रस वातविंध्वसक रस सरपगंधा वसन्तमालती का योग रोगी की अवस्थानुसार देने से लाभ
🌺 *विशेष अनुभूत चिकित्सा*🌺
(डॉ अम्बाशंकर जी दवे)
*सूर्यावर्त*---–-----
(1)गोदन्तिभस्भ-----------1gr
प्रवालभस्म--–-----------500mg
एला--------------------2नग
दधि के अनुपानसे सूर्योदय से एक घंटा पूर्व सेवन करे। सात दिन तक।प्रथम दिन से ही लाभ मिलना प्रारंभ होगा।।
(2)नारियलगोला-----1
कायफल ---------------25ग्राम
बादाम----------------100ग्राम
फीकामावा------------500ग्राम
गोघृत --------------------200ग्राम
केशर------------------1 ग्राम
शक्कर---–-------–-----250ग्राम
1---से--4 तक को मिलाकर घृत में सेके लाल होने तक।शक्कर की चासनी बना केशर मिला कर सब को मिला कर चक्की जमा दे।
प्रातः सूर्योदय पर 20ग्राम रोज सेवन करे।
जीर्णोद्धार से जीर्ण शिरः शूल त्रिदोषज भी अवश्य ठीक होगा।
।।शतसोनुभूत।।
🍀 (अनुभूत डॉ जगदीश जी शर्मा)
*Ardhavbhedak*
Pratah early morning me jaldi uth kar rogi ko
Tab Cephagraine ( charak)2
Taja makkhan se deejiye
Patient ko rogi pareekhshan Table per lita kar Cephgraine Nesal drop dono nathuno me daliye
Shirshshooladi vajr ras 125 mg + Godanti bhashm 250 mg with honey
Night ko .
Trifgol ( Dabur) 20 gm gungune pani se
🌹 *गोदन्ती भस्म बेसन के हलवे के साथ तथा मालपुआ भी शिरः शूल में अत्यंत लाभदायक हैं*
🌺 *गोदन्ती मिश्रण*🌺
Godanti mishran 3 type k h....
(1)Godanti bhasm 125 mg
shring bhasm 62.5 mg
pippali mool 31.25 mg
karpoor 31.25mg.....2.G
(2)godanti bhasm--- 200mg
jaharmohra khatai pishti
50mg
Rasaadi ras 50mgI
(3)Godanti bhasm 200mg
jaharmohra pishti 50mg
Raasnaadi vati---50mg
*inme se kis mishran ko konse shirahsool mai Dena h*
✅ नं1- प्रतिश्यायज शिरः शूल।
✅नं2- ज्वरजन्य शिरःशूल मे।
वैसे दोनो ही योग ज्वर प्रतिश्याय कास जन्य अन्य वेदनाओ यथा अंगमर्द आदि मे भी उपयोगी है।
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🌳🕉🌺महिला संजीवनी 🌺🕉🌳
गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
जिला -एटा , उत्तर प्रदेश
7985817113
🌳🕉🌺संजीवनी परिवार 🌺🕉🌳
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