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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

लोध्रासव

🌹✍🏻       लोध्रासव        ✍🏻🌹

जासु कृपा कर मिटत सब आधि,व्याधि अपार

तिह प्रभु दीन दयाल को बंदहु बारम्बार

🌳🌺महिला संजीवनी 🌺🌳

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लोध्रासव का प्रयोग विशेषतः स्तंभनार्थ किया जाता है। यह रक्त का स्तंभन करता है इस लिए यह स्त्रियों में रक्तप्रदर, गर्भाशय से होने वाला असामान्य रक्तस्राव और माहवारी समय होने वाला भारी रक्तस्राव आदि में किया जाता है। इसका स्तंभन कार्य होने से यह श्वेतप्रदरह (leucorrhea) में भी लाभ करता है।

लोध्रासव कफ पित्त शामक है और कफ पित्त दोष प्रधान प्रमेह रोग में यह अतिहितकारी है। इस के इलावा यह रक्तपित्त, ग्रहणी, अरुचि, बवासीर और पीलिया आदि में भी लाभकारी है।

घटक द्रव्य  एवं निर्माण विधि
लोध्रासव के घटक और निर्माण करने की विधि इस प्रकार है।

घटक द्रव्यों के नाममात्रा
पठानी लोध120 ग्राम
कचूर120 ग्राम
पुष्करमूल120 ग्राम
छोटी इलायची120 ग्राम
मूर्वा120 ग्राम
बायबिडंग120 ग्राम
हरड़120 ग्राम
बहेड़ा120 ग्राम
आंवला120 ग्राम
अजवायन120 ग्राम
चव्य120 ग्राम
प्रियंगु120 ग्राम
चिकनी सुपारी120 ग्राम
इंद्रवारुणी का मूल120 ग्राम
चिरायता120 ग्राम
कुटकी120 ग्राम
भारंगी120 ग्राम
तगर120 ग्राम
चित्रकमूल120 ग्राम
पीपलामूल120 ग्राम
कूठ120 ग्राम
अतीस120 ग्राम
पाठा120 ग्राम
इन्द्रजौ120 ग्राम
नागकेशर120 ग्राम
कूड़े की छाल120 ग्राम
नख120 ग्राम
तेजपत्ता120 ग्राम
कालीमिर्च120 ग्राम
नागरमोथा120 ग्राम
उपरोक्त सभी औषधियों का चूर्ण बनाकर 38.4 लीटर जल में डालकर काढ़ा बनायें। पकते पकते जब पानी एक चौथाई रह जाए तो सामग्री को मसलकर छान लें।
ठन्डे होने पर इसमें 6 किलो शहद मिलाकर कांच के बर्तन में भरकर रख दें। 30 दिनों के बाद इस छानकर बोतलों में भर कर रखें।

औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
दोष कर्म (Dosha Action)पित शामक, कफ शामक
लोध्रासव में निम्नलिखित औषधीय गुण है:

रक्तस्तभ्भन (शोणितस्थापन)
शोथहर
रक्त शोधक
गर्भाशय शोधक
गर्भाशयसंकोचक
श्वेतप्रदरहर
रक्तप्रदरहर
ग्राही
प्रमेहहर
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
लोध्रासव निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:

रक्तप्रदर (Abnormal uterine bleeding) – गर्भाशय से होने वाला असामान्य रक्तस्राव
माहवारी समय होने वाला भारी रक्तस्राव
श्वेतप्रदरहर (Leucorrhea)
रक्तपित्त (bleeding)
ग्रहणी रोग
अरुचि – भोजन करने की इच्छा न होना
बवासीर
प्रमेह रोग

लोध्रासव पित्त कफ दोष प्रधान प्रमेह रोग में उत्तम है।

पित्त दोष प्रधान प्रमेह

क्षारमेह
नीलमेह
कालमेह
हारिद्रमेह
मांजिष्ठमेह
कफ दोष प्रधान प्रमेह

उदकमेह
सान्द्रमेह
शीतमेह
पिष्टमेह
लोध्रासव इन सब के इलाज करने में सक्षम है।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
लोध्रासव (Lodhrasava) की सामान्य औषधीय मात्रा व खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे5 से 10 मिलीलीटर
वयस्क10 से 25 मिलीलीटर
सेवन विधि
लोध्रासव (Lodhrasava) को भोजन ग्रहण करने के पश्चात जल की सामान मात्रा के साथ लें।

दवा लेने का उचित समय (कब लें?)सुबह और रात्रि भोजन के बाद
दिन में कितनी बार लें?2 बार
अनुपान (किस के साथ लें?)बराबर मात्रा गुनगुना पानी मिला कर
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें)कम से कम 3 महीने और चिकित्सक की सलाह लें
दुष्प्रभाव (Side Effects)
यदि लोध्रासव (Lodhrasava) का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो लोध्रासव के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते।

आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें
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🌳🕉🌺महिला संजीवनी 🌺🕉🌳
गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
जिला -एटा , उत्तर प्रदेश
9466623519
🌳🕉🌺संजीवनी परिवार 🌺🕉🌳
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दशमूलारिष्ट

🌹✍🏻     दशमूलारिष्ट         ✍🏻🌹

जासु कृपा कर मिटत सब आधि,व्याधि अपार

तिह प्रभु दीन दयाल को बंदहु बारम्बार

🌳🌺महिला संजीवनी 🌺🌳

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दशमूलारिष्ट (Dasamoolarishtam या Dashmularishta) एक अति लाभप्रद औषधि है। इसके सेवन से विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ मिलता है। मुख्य रूप से वात संबंधी विकारों, उदर रोग और मूत्र रोगों में लाभ देती है। यह औषधि बन्ध्या महिला को संतान प्राप्ति में सहायक है, गर्भाशय की शुद्धि करती है और निर्बलों को बल, तेज और वीर्य प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त बहुत से अन्य रोगों में भी इस औषधि से सेवन से लाभ मिलता है

यह वातरोग, भगंदर, क्षय, अरुचि, श्वास, वमन, संग्रहणी, कास, पाण्डु, कुष्ठ, अर्श, प्रमेह, धातुक्षय, मंदाग्नि, उदर रोग और मूत्र संबंधी रोग आदि के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।

घटक द्रव्य  एवं निर्माण विधि
घटक द्रव्यों के नाम मात्रा
दशमूल 200 तोला या लगभग 2400 ग्राम
चित्रक छाल 100 तोला या लगभग 1200 ग्राम
लोध 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
गिलोय 80 तोला या लगभग 960 ग्राम
आंवला 64 तोला या लगभग 768 ग्राम
धमासा 48 तोला या लगभग 576 ग्राम
खेर की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
विजयसार की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
हरड़ की छाल 32 तोला या लगभग 384 ग्राम
कूठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मजीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
देवदारु 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बायबिडंग 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
मुलेठी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
भारंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कबीठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बहेड़ा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सांठी की जड़ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
चव्य 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
जटामांसी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
गेऊँला 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
अनंतमूल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
स्याह जीरा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
निसोत 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रेणुक बीज 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
रास्र 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पीपल 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सुपारी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
कचूर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
हल्दी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
सूवा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
पद्म 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काष्ठ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागकेसर 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
नागर मोथा 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
इन्द्र जौ 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
काकड़ासिंगी 8 तोला या लगभग 96 ग्राम
बिदारी कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
असगंध 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
मुलेठी 16 तोला या लगभग 192 ग्राम
वाराही कंद 16 तोला या लगभग 192 ग्राम

दशमूलारिष्ट के घटक निर्माण करने की विधि इस प्रकार है।

इन सभी घटकों को अच्छी तरह से कूट लें और इसके आठ गुना जल में काढ़ा बनायें। जब एक चौथाई जल शेष रह जाए तो इसे उतार लें।
इसके बाद 256 तोला या लगभग 3 किलो मुनक्का को लगभग 12 लीटर जल में उबालें। जब एक चौथाई जल कम हो जाए तो उसको उतार लें।
इसके पश्चात इन दोनों काढ़ों को अच्छी तरह मिलाकर छान लें।
फिर शहद लगभग 1560 ग्राम, गुड़ लगभग 19 किलो 200 ग्राम, धाय के फूल लगभग 1440 ग्राम और शीतल मिर्च, नेत्रबाला, सफ़ेद चन्दन, जायफल, लौंग, दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता, पीपल, नागकेशर प्रत्येक को लगभग 96 ग्राम लें। इन सभी को काढ़े की छानी हुई सामग्री के साथ मिलाकर चूर्ण बनायें।
फिर इस चूर्ण में लगभग 3 ग्राम कस्तूरी मिलाकर 1 महीने के लिए रख दें।
इसके पश्चात इसे छान लें और थोड़े से निर्मली के बीज मिलाकर दशमूलारिष्ट को स्वच्छ बना लें।
औषधि तैयार हो जाने के बाद कस्तूरी मिलाने से सुगंध बनी रहती है और दशमूलारिष्ट  के फायदे ज्यादा मिलते है।

औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
वेदनास्थापन – पीड़ाहर (दर्द निवारक)
ह्रदय – दिल को ताकत देने वाला
शोथहर
वातज कासहर
श्वासहर
क्षुधावर्धक – भूख बढ़ाने वाला
पाचन – पाचन शक्ति बढाने वाली
अनुलोमन
दीपन
संशोधन
पितसारक
प्रजास्थापन
स्तन्यशोधन
शुक्रशोधन
आमपाचन
शीतप्रशमन
जीवाणु नाशक
पूतिहर
जीवनीय
वल्य
ओजोबर्धक
रसायन
रक्तदूषण
उत्सादन
मज्जक्षपण
रक्तप्रसादन
अवसादन
शुक्रवर्धन
बृहण
मेदोवर्धन
शुक्रक्षपण
दोष कर्म (Dosha Action) वात शामक, कफ शामक, पित्त संशोधक
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
प्रसूता स्त्री में गर्भाशय शोधन के लिए
वातव्याधि
वातज कास
प्रसूता ज्वर
भगंदर
क्षय
अरुचि
श्वास
वमन
संग्रहणी
कास
पाण्डु
कुष्ठ
अर्श
प्रमेह
धातुक्षय
मंदाग्नि
उदर रोग

औषधीय लाभ एवं प्रयोग (Benefits & Uses)
दशमूलारिष्ट मुख्यतः प्रसूता  रोगों और वात रोगों में उपयुक्त होता है।  इस के महत्वपूर्ण लाभ एवं प्रयोग निम्नलिखित है।


प्रसूता स्त्रियों के लिए दशमूलारिष्ट एक लाभप्रद औषधि
दशमूलारिष्ट के घटकों के कारण यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। यदि प्रसूता स्त्री शिशु के जन्म के पश्चात दशमूलारिष्ट सेवन करती है तो कई रोगों के होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती हैं। यह अग्नि दीपन करता है जिस से मंदाग्नि नहीं होती। यह आम का पाचन करता है जिस से ज्वर, जीर्णज्वर, आम और वात सम्बंधित विकृतियाँ नहीं होती। यह प्रसूता के कास और श्वास आदि भी लाभदायक है।

दशमूलारिष्ट के अरिष्ट में स्तंभक गुणों के कारण यह प्रसूता स्त्री के रक्तातिसार, अतिसार और संग्रहणी आदि विकारों में अति अनुकूल औषधि है।

इस का प्रगोय अश्वगंधारिष्ट के साथ करने पर यह उत्तम लाभ करता है और शरीर में प्रसव के बाद आयी निर्बलता को दूर करता है।

टिप्पणी: दशमूलारिष्ट वात और कफ प्रधान रोगों और लक्षणों में प्रभावशाली है। यदि प्रसूता स्त्रियों में पित्तप्रधान लक्षण जैसे कि मुँह में छाले, दाह, गरम जल सामान पतले दस्त, अधिक प्यास आदि लक्षण हों दशमूलारिष्ट का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

बार बार गर्भपात और गर्भस्राव हो जाना
बहुत सी स्त्रियों में गर्भाशय की शिथिलता बार बार होने वाले गर्भपात अथवा गर्भस्राव का कारण बनता है। दशमूलारिष्ट गर्भाशय की शिथिलता को दूर करने के लिए उत्कृष्ट आयुर्वेदिक दवा है। यह औषधि स्त्रियों के गर्भाशय को ताकत देती है। इस से बार बार होने वाले गर्भस्राव का इलाज होता है और स्वस्थ संतान की प्राप्ती होती है। इस प्रकार के रोग में इस का प्रयोग कम से कम ३ महीने जरूर करना चाहिए और फिर संतान प्राप्ती का प्रयास करना चाहिए।

पूयशुक्र (Pus Cells in Semen)
दशमूलारिष्ट एक शुक्र शोधक औषधि है। इसका प्रयोग रौप्य भस्म और त्रिफले के साथ करने से यह शुक्रशुद्धि करता है और वीर्य  में आ रही पस सेल्स को कम करता है। यह शुक्र शोधन कर शुक्र की वृद्धि भी करता है।

संग्रहणी रोग
आयुर्वेद अनुसार मंदाग्नि संग्रहणी रोग का मुख्य कारण है जिस से आंत्र में आम का संचय होना शुरू हो जाता है और संग्रहणी का कारण बनता है। दशमूलारिष्ट संग्रहणी के मूल कारण मंदाग्नि को दूर कर अग्नि प्रदीपित करता है और जीर्ण संग्रहणी के इलाज के लिए उत्तम कार्य करता है।

दर्द निवारक और शोथहर
दशमूलारिष्ट वात का शमन करता है। इसमें दर्द निवारक और शोथहर गुण है। इसी कारण से इसका प्रयोग दर्द निवारण के लिए किया जाता है। यह पीठ दर्द, गर्भाशय के दर्द, तीव्र शिरः शूल और पेट के दर्द आदि में हितकारी है।

श्वास रोग में दशमूलारिष्ट का प्रयोग
श्वास रोग में दशमूलारिष्ट का प्रयोग किया जाता है। जब रोगी अधिक व्याकुलता हो, जोर से खांसी आती हो, कफ अधिक नहीं निकलता हो, सांस लेते समह रोगी हांफने लगता हो, और नाड़ी की गति तेज हो, तो दशमूलारिष्ट का प्रयोग कारण लाभदायक सिद्ध होता है। ऐसी हालत में रोगी को दशमूलारिष्ट  कम मात्रा में 2-2 घंटे के अंतराल पर देना चाहिए।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
दशमूलारिष्ट की सामान्य औषधीय खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे 5 से 10 मिलीलीटर
वयस्क 10 से 25 मिलीलीटर
सेवन विधि
इसे भोजन ग्रहण करने के पश्चात जल की सामान मात्रा के साथ लें।

दवा लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और रात्रि भोजन के बाद
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) बराबर मात्रा गुनगुना पानी मिला कर
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) चिकित्सक की सलाह लें
दुष्प्रभाव (Side Effects)
यदि दशमूलारिष्ट का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो दशमूलारिष्ट के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते।

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गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
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अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta)

🌹✍🏻  अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) ✍🏻🌹

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अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta)

अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) ह्रदय से सम्बंधित विकारों के लिए अत्यंत लाभदायक औषधि है। हालांकि यह बिना किसे दोष के विचार किये सभी ह्रदय रोगोयों को दिया जा सकता है। पर यह यह अरिष्ट पित्तप्रधान लक्षणों में अति उत्तम काम करता है। यह रक्त वाहिनियाँ की शिथिलता को दूर करता है और उन मजबूत बनाकर उनकी कमजोरी दूर करता है। यह दिल की पेशियों को ताकत देता है और संकुचन के बल को बढ़ाता है जिस से दिल उत्तम रूप में कार्य कर सम्पूर्ण शरीर में रक्त का संचालन करता है।


अर्जुनारिष्ट फेफड़ों की धमनियाँ तथा शरीर के सभी रक्त वाहिनियाँ की शिथिलता को दूर करता और उन में उत्पन होने वाली सूक्ष्म शोथ और सूजन में हितकारी है। यह ह्रदय से सम्बंधित विकारों जैसे सीने में दर्द, हृड्डेपन, ह्रदय शैथिल्य आदि में लाभ प्रदान करता है।

घटक द्रव्य  एवं निर्माण विधि
घटक द्रव्यों के नाम मात्रा
अर्जुन की छाल 4800 ग्राम
द्राक्षा 2400 ग्राम
महुए के फूल 960 ग्राम
जल 49.152 लीटर
गुड़ 4800 ग्राम
धाय के फूल 960 ग्राम
अर्जुनारिष्ट की निर्माण विधि
अर्जुनारिष्ट के घटक और निर्माण करने की विधि इस प्रकार है।ज

अर्जुनारिष्ट को बनाने के लिए सर्वप्रथम 49.152 लीटर जल में लगभग 4800 ग्राम अर्जुन की छाल, 2400 ग्राम द्राक्षा और लगभग 960 ग्राम महुए के फूल को मोटा मोटा कूटकर काढ़ा बनायें।

जब एक चौथाई जल बाकी रह जाए तो आग से उतार कर छान लें।


ठंडा हो जाने के बाद उस में लगभग 4800 ग्राम गुड़ और 960 ग्राम धाय के फूल मिलाकर बंद मर्तबान में एक महीने के लिए रख दें। एक महीने के बाद इसे छान लें। अर्जुनारिष्ट तैयार है।

पार्थद्यरिष्ट
अर्जुनारिष्ट के योग में यदि गुड़ के साथ लगभग 1200 ग्राम शहद भी मिलाया जाये तो यह पार्थद्यरिष्ट बन जाता है। पार्थद्यरिष्ट और अर्जुनारिष्ट दोनों का प्रयोग दिल के रोगों में किया जाता है।

औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
वेदनास्थापन – पीड़ाहर (दर्द निवारक)
ह्रदय – दिल को ताकत देने वाला
हृदयोतेजक
रक्तभारशामक
रक्तस्तभ्भन (शोणितस्थापन)
शोथहर
कासहर
श्वासहर
रसायन
दोष कर्म
दोष कर्म (Dosha Action) विशेषतः पित शामक
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
हृदय की निर्बलता या कमजोरी
ह्रदय रोग (heart diseases)
उच्च कोलेस्ट्रॉल
रक्त वाहिनियाँ की शिथिलता
ह्रदय शैथिल्य
हृड्डेपन
सीने में दर्द
मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) की सामान्य औषधीय मात्रा व खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे 5 से 10 मिलीलीटर
वयस्क 10 से 25 मिलीलीटर
सेवन विधि
अर्जुनारिष्ट को भोजन ग्रहण करने के पश्चात जल की सामान मात्रा के साथ लें।

दवा लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और रात्रि भोजन के बाद
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) बराबर मात्रा गुनगुना पानी मिला कर
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) कम से कम 3 महीने और चिकित्सक की सलाह लें
दुष्प्रभाव (Side Effects)
यदि अर्जुनारिष्ट (Arjunarishta) का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो अर्जुनारिष्ट के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते
आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें

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झंडू पंचारिष्ट

🌹✍🏻     झंडू पंचारिष्ट           ✍🏻🌹

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झंडू पंचारिष्ट (Zandu Pancharishta) के लाभ, उपयोग, मात्रा तथा दुष्प्रभाव के बारे में जानें।

झंडू पंचारिष्ट (Zandu Pancharishta) पाचन संबंधी रोगों और पेट की बीमारियों के लिए एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है। यह पाचन तंत्र के कार्यों में सुधार लाती है और भूख बढ़ाती है। यह पेट की गैस, पेट फूलना, उदर विस्तार और पेट के भारीपन को दूर करती है। इस में मौजूद घटक अम्लपित में भी हितकर है। इसका प्रयोग पुरानी कब्ज और पेट में दर्द में भी किया जाता है।


घटक द्रव्य (Ingredients)
20 मिलीलीटर झंडू पंचारिष्ट (Zandu Pancharishta) में निम्नलिखित घटक द्रव्यों है:

घटक द्रव्यों के नाम मात्रा
द्राक्षा 500 मिलीग्राम
घृतकुमारी 400 मिलीग्राम
दशमूल 400 मिलीग्राम
अश्वगंधा 200 मिलीग्राम
शतावरी 200 मिलीग्राम
त्रिफला 120 मिलीग्राम
गिलोय 100 मिलीग्राम
बला 100 मिलीग्राम
मुलेठी 100 मिलीग्राम
त्रिकटु 60 मिलीग्राम
त्रिजात 60 मिलीग्राम
अर्जुन 40 मिलीग्राम
मंजिष्ठा 40 मिलीग्राम
अजमोद 20 मिलीग्राम
धनिया 20 मिलीग्राम
हल्दी 20 मिलीग्राम
शटी (कपूरकचरी) 20 मिलीग्राम
जीरा 20 मिलीग्राम
लौंग 20 मिलीग्राम
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
झंडू पंचारिष्ट में निम्नलिखित औषधीय गुण है:

पाचक टॉनिक (पाचन) – पाचन शक्ति बढाने वाली (लगभग सभी जड़ी बूटियों में यह गुण है)
वातअनुलोमन – कोष्टगत वात को कोष्ट से बाहर निकाले
दीपन – अग्नि प्रदीपक
क्षुधावर्धक
हल्की रेचक – किशमिश और एलो वेरा के कारण
अम्लत्वनाशक (एंटासिड) – शतावरी, मुलेठी, धनिया और जीरा के कारण
रक्तरंजक (हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाती है) – किशमिश, शतावरी और अश्वगंधा के कारण
वातहर और बादी विरोधी (दशमूल, गिलोय और जीरा के कारण)
शोथहर – दशमूल, अश्वगंधा और अन्य के कारण
प्रतिउपचायक (एंटीऑक्सीडेंट) – सभी जड़ी बूटियां एंटीऑक्सीडेंट हैं
वेदनास्थापन – पीड़ाहर (दर्द निवारक) – विशेषत: पेट दर्द में लाभ करता है

चिकित्सकीय संकेत (Indications)
झंडू पंचारिष्ट निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:

कब्ज
गैस
अफारा या पेट फूलना
अरुचि
भूख की कमी
गैस के कर्ण होने वाला पेट दर्द
अम्लपित्त
अपच
अजीर्ण
बदहजमी
पेट में भारीपन
उदर विस्तार

औषधीय लाभ एवं प्रयोग (Benefits & Uses)
झंडू पंचारिष्ट का मुख्य रूप से पेट की बीमारियों के लिए प्रयोग किया जाता है। इस के सभी घटकों का पाचन तंत्र पर प्रभाव पड़ता है। यहाँ पंचारिष्ट के कुछ महत्वपूर्ण लाभ लिखे हैं।


किशमिश और एलो वेरा कब्ज कम कर देता है।
दशमूल, गिलोय और अश्वगंधा पाचन नली को मजबूत करता है और पेशियों की अनुकूलतम गति को बनाए रखने में मदद करता है। इसलिए, ये घटक पुरानी कब्ज में प्रभावी बनाते हैं।
त्रिफला का सीधे हल्का रेचक प्रभाव होता है, जो कब्ज और अन्य पाचन रोगों के प्रबंधन में एक सहायक की भूमिका निभाता है।
शतावरी, मुलेठी, गिलोय, धनिया और जीरा अच्छे अम्लत्वनाशक (एंटासिड) हैं, जो अम्लता, गैस्ट्राइटिस (जठरशोथ) और हृद्दाह (सीने में जलन) से राहत देते हैं।
अन्य सभी घटकों की सहायक भूमिकाएं होती हैं। ये पाचन में सुधार और पाचन अंगों को शक्ति प्रदान करते हैं।

छाती में जलन, खट्टे डकार और अम्लपित्त (एसिडिटी)
झंडू पंचारिष्ट शतावरी, मुलेठी, गिलोय, धनिया और जीरा मौजूद है जो पेट में अम्ल के स्राव को मंद करने में लाभदायक है। इस लिए यह छाती में जलन, खट्टे डकार और अम्लपित्त (एसिडिटी) जैसे रोगों में लाभदायक है। यह भूख को अनुकूलतम स्तर पर रखने में सहायता करता है।

कभी कभी, एसिडिटी भी भूख में कमी और गले, छाती एवं पेट में जलन के कारण आहार में अरुचि पैदा कर देती है। कई रोगियों में यह देखा गया है। पंचारिष्ट इन लोगों के लिए बहुत ही लाभदायक है। हालांकि, यदि इस के साथ में मुलेठी चूर्ण, आमला चूर्ण, प्रवाल पिष्टी, मुक्ता शुक्ति पिष्टी आदि भी लिया जाये तो यह यह अधिक उपयोगी सिद्ध होता है।

गैस, पेट फूलना, उदर में सूजन, उदर विस्तार या पेट में भारीपन
झंडू पंचारिष्ट वात नाशक (वातहर) और वातअनुलोमक है अर्थात यह कोष्टगत वात को कोष्ट से बाहर निकालता है और उस की उत्पति को नियंत्रित करता है।

इस में मौजूद किशमिश, एलो वेरा, जीरा, धनिया, त्रिकटु , मंजिष्ठा, अजमोद, जीरा और लौंग जैसे सभी घटक पेट की वायु, पेट फूलना, सूजन और पेट के भारीपन को कम करने में सहायक हैं।

भूख में कमी, अपच, अजीर्ण, बदहजमी
झंडू पंचारिष्ट में कुछ ऐसी जड़ी बूटियों है जिन में क्षुधावर्धक विशेषताएं और पाचन बढ़ाने वाले गुण है। यह भूख बढ़ाता है और अपचन, अजीर्ण, बदहजमी आदि को दूर करता है। यह  पाचन शक्ति को सामान्य करता है।

कब्ज
झंडू पंचारिष्ट के मुख्य घटक किशमिश और घृत कुमारी (एलो वेरा) हैं, जो नई पुरानी कब्ज को कम करने में सहायक होते है।

अश्वगंधा और शतावरी आंतों और पेट की मांसपेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं, जो खाद्य पदार्थ को आंत में आगे चलाने में मदद करता है।

दशमूल, गिलोय और मुलेठी पेशियों की अनुकूलतम गति में सुधार लाते हैं।

पंचारिष्ट में कुछ जड़ी बूटियां यकृत (लिवर) के काम में सुधार लाती हैं, जिसकी मदद से आंतों में पित्त का उचित प्रवाह होता है, जिससे क्रमाकुंचन (peristalsis) में भी सुधार होता है।

यह सभी चीजें व्यक्ति को सभी प्रकार की कब्ज से छुटकारा पाने में मदद करती हैं।

आईबीएस (Irritable Bowel Syndrome)
हालांकि, यदि आईबीएस  से पीड़ित रोगी को ज्यादा दस्त की सिकायत हो तो झंडू पंचारिष्ट का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि रोगी को आईबीएस के साथ साथ कब्ज के लक्षण ज्यादा हो तो यह अधिक लाभ करता है।

पंचारिष्ट में सभी जड़ी बूटियां पेट की सूजन और कब्ज को कम करती हैं। तनाव भी आईबीएस के लिए एक ओर ठोस कारण है। अश्वगंधा और मुलेठी इस कारक से भी लड़ने में मदद करता है। इसलिए, पंचारिष्ट तनाव से जुड़े आईबीएस में भी प्रभावी है।


ज्यादा गैस बनने से होने वाला पेट दर्द
पंचारिष्ट में मौजूद दशमूल और जीरा वातहर और अनुलोमन क्रिया करते हैं, जो ज्यादा गैस बनने के कारण होने वाले पेट दर्द को ठीक करने में मदद करता है। यदि पेट में लगातार हल्का दर्द  बना रहे तो भी यह उत्तम कार्य करता है।  यदि पेट में भारीपन भी हो, तो भी यह लाभदायक सिद्ध होता है।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
पंचारिष्ट की सामान्य औषधीय मात्रा  व खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे (6 से 10 वर्ष) 2.5 से 5 मिलीलीटर (1/2 से 1 चम्मच)
बच्चे (10 वर्ष से ऊपर) 5 से 10 मिलीलीटर (1 से 2 चम्मच)
वयस्क 30 मिलीलीटर (6 टीस्पून या 2 टेबलस्पून)
सेवन विधि
पंचारिष्ट लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और शाम
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) बराबर मात्रा गुनगुने पानी मिलाकर सेवन करें
झंडू पंचारिष्ट कैसे लें?
झंडू पंचारिष्ट की खुराक वयस्कों के लिए 6 चम्मच (30 एमएल) है। इसको पानी की बराबर मात्रा (30 एमएल) के साथ मिलाया जाना चाहिए और भोजन के तुरंत बाद लिया जाना चाहिए। पंचारिष्ट की अधिकतम खुराक एक दिन में 60 मिलीलीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।

पंचारिष्ट का प्रयोग कितने समय तक करना चाहिए?
आमतौर पर झंडू पंचारिष्ट की प्रयोग अवधि न्यूनतम 1 महीने से अधिकतम 6 महीने तक होती है।

उपचार की अधिकतम अवधि स्वास्थ्य की स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकती है। कुछ लोगों को इसे 6 महीने के लिए भी लेने की आवश्यकता हो सकती है। पंचारिष्ट से आम तौर पर हर किसी को पाचन रोगों से राहत 3 महीने के भीतर मिल जाती है, लेकिन अगर आपको 3 महीने के भीतर राहत नहीं मिलती है, तो आपको चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।

दुष्प्रभाव (Side Effects)
झंडू पंचारिष्ट ज्यादातर लोगों के लिए सुरक्षित है। इस में कोई ऐसी जड़ी बूटी नहीं है जिसका कोई गंभीर दुष्प्रभाव (side effects) हो।


सावधानियां
मधुमेह में सावधानी से प्रयोग

मधुमेह के रोगियों को इसका प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। मधुमेह ग्रसित लोगों के रक्त शर्करा स्तर की जाँच करते रहना चाहिए। पंचारिष्ट में शर्करा और किशमिश होती है जो आप  के रक्त शर्करा स्तर को बढ़ा सकती है।

ऐल्कोहॉल स्तर वाली औषधियां को भी मधुमेह में उपयोग ना करने की सलाह दी जाती है क्योंकि इससे रक्त शर्करा स्तर में उतार-चढ़ाव हो सकता है।

मुँह में छाला

हालांकि, पंचारिष्ट में कुछ शीतलता प्रदान करने वाली जड़ी बूटियां हैं, जिसका अर्थ है कि यह मुँह के छालों और अम्लता में भी राहत प्रदान कर सकता है। किण्वन प्रक्रिया और ऐल्कोहॉल स्तर के कारण, अल्सर रोधी प्रभाव एक बड़ी हद तक कम हो जाता है। इसलिए, अगर किसी का मुंह के छालों का इतिहास है, यह मुँह के छालों की पुनरावृत्ति की प्रवृत्ति को बढ़ा सकता है। हालांकि, यह शायद ही कभी हो, लेकिन इस आशय की जानकारी होनी चाहिए।

आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें
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गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
जिला -एटा , उत्तर प्रदेश
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