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गुरुवार, 16 मई 2019

 सिद्ध मकरध्वज

🌹✍🏻    सिद्ध मकरध्वज  ✍🏻🌹

जासु कृपा कर मिटत सब आधि,व्याधि अपार

तिह प्रभु दीन दयाल को बंदहु बारम्बार

🌳🌺महिला संजीवनी 🌺🌳

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सिद्ध मकरध्वज 
(इसके बराबर दुनिया में कोई दूसरी दवा नहीं)

आज हम आपको आयुर्वेद की एक ऐसी बेजोड़ औषधि के बारे में बता रहे हैं जिसकी शक्ति बेजोड़ है.. जिसका नाम है सिद्ध मकरध्वज और मकरध्वज. और हमारी हर दवाई में इसका प्रयोग होता है.. इसे ध्यान से पढ़े और जानकारी ले.

मकरध्वज आयुर्वेद की महौषधि है इसके समान सर्व रोग नाशिनी कोई दवा संसार में किसी भी पैथी में नहीं है. बड़े बड़े डॉक्टर्स ने भी यह बात मान ली है के मकरध्वज के बराबर दुनिया में कोई दूसरी दवा नहीं है. इसके द्वारा अनगिनत प्राणी काल के मुंह से बचते है. बंगाली डॉक्टर्स सबसे ज्यादा इसका ही व्यव्हार करते हैं.

एक ही मकरध्वज से बहुत सारे रोगों में आराम

यह कोई विज्ञापन नहीं है, युक्तिसंगत और हज़ारों डॉक्टर्स और लोगों का अनुभव है. मकर ध्वज के सेवन से मनुष्य की ताक़त बहुत बढती है.

यह हृदय और स्नायुमंडल (दिमाग) को इंजेक्शन कि तरह पांच मिनट में ताक़तवर बनाता है. मकरध्वज खाने से शरीर का वजन निश्चित रूप से बढ़ता है. यह बल वीर्य कान्ति शक्ति

पुरुषार्थ आदि के लिए सर्व श्रेष्ठ है. शीघ्रपतन की तो ये अजूबा दवा है. नपुंसकता के लिए मकरध्वज महा गुणकारी है. गोद के बच्चे से लेकर 100 वर्ष तक के आदमी को मकर ध्वज एक सा फायदा करती है.

लोगों में ग़लतफ़हमी है के मकर ध्वज या चंद्रोदय सिर्फ मरते समय ही दी जाती है जिस से व्यक्ति के प्राण बचने के चांस बन जाते हैं. यह तो सही है के सबसे अच्छी दवा होने के नाते यह मरते व्यक्ति को भी जिंदा कर देती है.

अब जो दवा मरते व्यक्ति को जिंदा कर प्राण दान दे सकती है वो दवा साधारण दिखने वाले रोगों में तो जादू मन्त्र की तरह फायदा करती है. बंगाल में इसका बहुत प्रयोग होता है. वहां के धनी व्यक्ति बारहों महीनों बिना रोग के मकर ध्वज को खाते हैं और बहुत ही तंदुरुस्त बने रहते हैं.

भैषज्य रत्नावली में लिखा है

एतदभ्यासतश्चैव जरामरण नाश्नामः
अनुपान विधानेन निहन्ति विविधान गदान

अर्थात – इसके सेवन से बुढापा चला जाता है और अचानक मौत (जैसे हार्ट फेल) नहीं होती. अनुपान भेद से मकरध्वज बहुत सी बीमारियों को दूर करता है.

मकरध्वज के लाभकारी अनुपान –

नए बुखार में अदरक का रस या परवल का रस और शहद.

मियादी बुखार में पान का रस या शहद.

सन्निपात में ब्राह्म रस के साथ.

निमोनिया में अडूसे का रस और शहद.

मोतीझरा में शहद और लौंग का काढ़ा.

मलेरिया बुखार में करंज का चूर्ण और शहद.

पुराने बुखार में पीपल का चूर्ण या शेफाली का रस और शहद.

ज्वारातिसर में शहद और सौंठ का पानी.

आंव के दस्तों में बिल्व (बेल) कि गिरी का चूर्ण और शहद

खून के दस्त में कुडे की छाल का काढ़ा और शहद.

पतले दस्त में जीरे का चूर्ण और शहद के साथ मकरध्वज

पुराने दस्त में चावल का धोवन और शहद के साथ मकरध्वज

संग्रहणी में जीरा का चूर्ण और शहद के साथ मकरध्वज

बवासीर में जिमीकंद का चूर्ण या निमोली का चूर्ण और शहद के साथ मकरध्वज

खूनी बवासीर में नागकेशर का चूर्ण और शहद के साथ मकरध्वज

हैजे में प्याज का रस और शहद के साथ मकरध्वज

कब्जियत में त्रिफला का पानी और शहद के साथ मकरध्वज

अमल्पित्त में आंवले का पानी और शहद के साथ मकरध्वज

पांडू (पीलिया) में पुराने गुड के साथ के साथ मकरध्वज

राजयक्ष्मा में सितोपलादि चूर्ण, गिलोय का सत्व अथवा बासक (अडूसे) का रस और शहद के साथ मकरध्वज

खांसी में कंटकारी का रस या पान का रस और शहद के साथ मकरध्वज

दमे में बेल के पत्तों का रस या अपामार्ग का रस और शहद के साथ मकरध्वज

स्वरभंग में मुलेठी चूर्ण और शहद के साथ मकरध्वज

अरुचि में निम्बू का रस और शहद के साथ मकरध्वज

मिर्गी में बच का चूर्ण और शहद के साथ मकरध्वज

पागलपन में कुष्मांडाव्लेह या ब्राहम रस और शहद के साथ मकरध्वज

वातव्याधि में अरंड की जड़ का रस और शहद के साथ मकरध्वज

वातरक्त में गिलोय का रस और शहद के साथ मकरध्वज

आमवात में शहद से खाकर ऊपर से सने, बड़ी हरड और अमलतास का काढ़ा लें.

वयुगोले में भुनी हुई हींग का चूर्ण और गर्म पानी .

हृदय रोग में अर्जुन की छाल का चूर्ण और शहद.

मूत्रकच्छ और मुत्रघात में गोखरू का काढ़ा और शहद.

सुजाक में जवाखार और गर्म पानी.

पथरी में कुल्थी की दाल का काढ़ा और शहद.

प्रमेह (धातु स्त्राव) में कच्ची हल्दी का रस या आंवले का रस अथवा नीम गिलोय का रस और शहद.

मधुमेह में जामुन की गुठली का चूर्ण और शहद.

दुर्बलता में असगंध का चूर्ण और शहद.

उदर रोग और शौथ में शहद और शुद्ध रेंडी का तेल.

गर्मी में अनंतमूल का काढ़ा और शहद.

शीतला (चेचक) में करेले की पत्ती का रस और शहद.

मुख रोग में गिलोय का रस और शहद.

रक्तप्रदर में अशोक की छाल का चूर्ण या उससे पकाया हुआ दूध और शहद.

सफ़ेद प्रदर में चावल का धोवन (मांड) या राल का चूर्ण और शहद.

सूतिका रोग में शहद और दशमूल का काढ़ा.

नाडी छूटने पर तुलसी का रस शहद.

कफ रोग में अदरक का रस और शहद.

पित्त रोग में शहद, सौंफ और धनिये का पानी.

ताक़त बढ़ाने के लिए वेदाना का रस, मलाई मक्खन, अंगूर का रस, शतावर का रस या पान का रस और शहद.

स्तंभक शक्ति के लिए माजूफल तथा जायफल का चूर्ण और शहद.

विशेष

इतनी  गुणकारी  होने  की  वजह से मकरध्वज थोड़ी महंगी होती है, और लोग इसमें मिलावट भी कर देते हैं, इसलिए जब भी मकरध्वज खरीदना हो तो बैद्यनाथ कंपनी की ही लीजिये.

बैद्यनाथ कई दशकों से क्वालिटी और सही दाम में ये सब चीजें मुहैया करवाता है. बैद्यनाथ की मकर ध्वज एक ही खुराक में अपना असर दिखा देती है. रोगों में इसके सही उपयोग की विधि आप वैद के परामर्श से ही करें. और बिना रोग के अगर आप इसको लेना चाहें तो भी आप इसको नियमित सेवन कर सकते हैं.

मकरध्वज की सेवन की मात्रा

मकरध्वज आधी रत्ती से  एक रत्ती (62 से 125 मि. ग्रा.) तक आवश्यकतानुसार दें.

सिद्ध मकरध्वज

राजा महाराजा और धनी व्यक्ति ही इसका व्यव्हार करते हैं. मकरध्वज के सम्पूर्ण गुण सिद्ध मकरध्वज में पाए जाते हैं. यह मकरध्वज से अधिक शक्तिशाली होती है.

सिद्ध मकरध्वज स्पेशल

सिद्ध मकरध्वज स्पेशल अष्ट दश संस्कारित एवं षडगुण बलिजारित पारद से निर्मित मकर ध्वज, स्वर्ण भस्म, कस्तूरी और मोती भस्म आदि से निर्मित किया जाता है.

यह औषध शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलता को मिटा कर शरीर में नवीन शक्ति एवं स्फूर्ति को उत्पन्न करती है. इसके अतिरिक्त ज्वर, निमोनियां, सर्दी, जुकाम खांसी, कफ, श्वांस, फेफड़ों के रोग, राजयक्ष्मा, उर:क्षत, नाडी क्षीणता, शीतांग, आदि रोगों में इस औषध का सफल प्रयोग होता है. शरीर में किसी भी कारण वश खून की कमी हो जाए तो इसके सेवन से अमृत के समान लाभ होता है. बालक, वृद्ध, युवा, स्त्री, पुरुष सबके लिए समान रूप से लाभकारी है. शीतकाल में इसका निरंतर सेवन किया जा सकता है.

सिद्ध मकरध्वज स्पेशल मात्रा और अनुपान

1-1 रत्ती (125 मि.ग्रा.) सिद्ध मकरध्वज दिन में दो बार सुबह और शाम. बच्चो को उनकी आयु के अनुसार कम मात्रा में दें. आवश्यकतानुसार दिन में दो से अधिक बार भी दिया जा सकता है. अनुपान में मधु, मक्खन मिश्री, मलाई मिश्री, दूध या पान का रस और मधु, या अदरक का रस और शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान के साथ रोगी को दें.

मधु मकरध्वज

मकरध्वज को शहद के साथ अच्छी तरह घोंट कर बनाया जाए तो यह मधु मकरध्वज कहलाता है. मकरध्वज को असली शहद के साथ एक घंटा खूब अच्छी तरह घोंटना चाहिए, नहीं तो पूरा फायदा नहीं करती. यह बना बनाया मिल जाता है.

मकरध्वज षडगुणबलिजारित (भैषज्यरत्नावली)

मकरध्वज षडगुणबलिजारित में गंधक ६ गुणा ज्यादा डाली जाती है, इसलिए ये साधारण मकरध्वज से अधिक प्रभावशाली होती है. इस मकरध्वज के निर्माण में उपयोग किये जाने वाले पारद को अष्ट संस्कारित कर, इसके बाद में षड्गुण गंधक जारित किया जाय और इसके बाद षड्गुणबलजारित मकरध्वज तैयार किया जाए तो बहुत ही श्रेष्ठ चमत्कारिक गुणों से पूर्ण मकरध्वज तैयार होता है.

विशेष नोट

आपको यह सब मकरध्वज बैद्यनाथ स्टोर से मिल जाएँगी. और किसी रोग के उपचारार्थ अनुभवी वैद का परामर्श ज़रूर लेवें. यह जानकारी सिर्फ आपको मकरध्वज के फायदों से अवगत करवाने के लिए है.

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किसी को भी बाल उगाने की दवा , झड़ने की दवा , गठियावाय , साइटिका , सेक्स संमस्या , शुगर, bp , नीद न आना , हैड्रोशील , हर्निया , पथरी कही भी हो , दाद खाज खुजली , लिकोरिया , दमा , अस्थमा की दवा मंगाने के लिए संपर्क करे ।
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गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
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  तंदुलादि वटिका

🌹✍🏻     तंदुलादि वटिका  ✍🏻🌹

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योग -

चावल - 10 gm
चूना कलई 10gm
गंधक  10 gm
नोसादर 10gm
मूली के बीज 10 gm
भुनी हुई हींग 1 gm

निर्माण विधि - सबको पीसकर ऐलोवेरा के रस में अच्छी तरह खरल करे और लगभग 100gm रस खपा दे फिर चने बराबर गोली बना ले ।

सेवन विधि - एक एक गोली सुबह शाम जल से सेवन करे ।

लाभ - इससे पित्त की ठंडी कै ठीक होती है, पेट दर्द ,उबकाई , छाती की जलन ठीक होती है

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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

चन्द्रप्रभा वटी

🌹✍🏻        चन्द्रप्रभा वटी           ✍🏻🌹

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तिह प्रभु दीन दयाल को बंदहु बारम्बार

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आयुर्वेद की महान शास्त्रीय औषधियों में से एक चन्द्रप्रभा वटी वीर्य विकार और मूत्र सम्बन्धी रोगों के लिए सुप्रसिद्ध है. आज मैं आपको इसके गुण उपयोग और निर्माण विधि के बारे में डिटेल में बताऊंगा.

तो आईये सबसे पहले जानते हैं इसके गुण और उपयोग-

चंद्रप्रभा वटी मूत्र संसथान के रोग और वीर्य विकारों के सुप्रसिद्ध है. यह बल को बढ़ाती तथा शरीर का पोषण कर शरीर की कान्ति बढ़ाती है. प्रमेह और उनसे पैदा हुवे उपद्रवों पर इसका धीरे-धीरे स्थाई प्रभाव होता है.

सुज़ाक इत्यादि के कारण मूत्र और वीर्य में जो विकार पैदा होते हैं, उन्हें यह नष्ट कर देती है. शौच-पेशाब के साथ वीर्य का गिरना, बहुमूत्र, श्वेत प्रदर, वीर्य दोष, प्रोस्टेट ग्लैंड बढ़ने में, पेशाब में जलन, पत्थरी, अंडवृद्धि, बवासीर, कमर दर्द, आँखों के रोग, स्त्री और पुरुष के रोगों में चंद्रप्रभा वटी से बहुत लाभ होता है.


आईये अब जानते हैं इसके कुछ प्रयोग विभिन्न रोगों पर -

मूत्राशय रोगों में -

मूत्राशय में किसी प्रकार की प्रॉब्लम होने पर पेशाब में जलन होना, पेशाब का रंग लाल, पेडू में जलन, पेशाब में दुर्गन्ध अधिक हो, कभी कभी पेशाब में शर्करा या चीनी भी आने लगे तो इस हालत में चन्द्रप्रभा वटी बहुत बढ़िया काम करती है, क्यूंकि इसका प्रभाव मूत्राशय पर विशेष होने से इसकी प्रॉब्लम दूर होकर पेशाब साफ़ आने लगता है और जलन दूर होती है.


किडनी या वृक्क की समस्या में -

जब किडनी सही से काम नहीं करता तो पेशाब कम बनता है और इसके वजह से भयंकर रोग उत्पन्न हो सकते हैं. पेशाब कम होने पर पुरे बॉडी में एक तरह का ज़हर फ़ैल जाता है और कई तरह की प्रॉब्लम हो सकती है. क्यूंकि पेशाब से ही शरीर का कचरा निकलता है.

ऐसी स्थिति में चंद्रप्रभा वटी बहुत कारगर है, इसे 2-2 गोली तीन बार पुनर्नवारिष्ट के साथ लेना चाहिए.

स्वप्नदोष, पेशाब पैखाने के साथ वीर्य निकलने पर -

नवयुवकों यह समस्या ज़्यादा पाई जाती है. शुक्रवाहिनी नाड़ीयों की कमज़ोरी की वजह से.

स्वप्नदोष का आयुर्वेदिक फ़ार्मूला

अगर पेशाब या टॉयलेट के पहले या बाद में वीर्य निकल जाता हो. स्वप्नदोष हो जाता हो, या किसी सुन्दर स्त्री को देखते ही या बात चित करते ही वीर्य निकल जाता हो, शीघ्रपतन की समस्या हो तो ऐसी अवस्था में चन्द्रप्रभा वटी 2-2 गोली सुबह शाम गिलोय या गुरीच के काढ़े के साथ खाने से फायदा होता है.


सुज़ाक की बीमारी में -

पुराने सुज़ाक में भी इसका उपयोग किया जाता है. चन्द्रप्रभा वटी को चन्दनासव के साथ लेने से पुराने सुज़ाक में फायदा होता है इस से रिलेटेड रोग दूर होकर पेशाब साफ़ आने लगता है.

स्त्री रोगों और गर्भाशय की कमजोरी में -

चन्द्रप्रभा वटी पुरुष रोगों के साथ-साथ स्त्री रोगों में भी फ़ायदेमंद है. यह गर्भाशय को शक्ति प्रदान कर उसकी विकृति को दूर कर के शरीर निरोग बना देता है. ज़्यादा सेक्स करने या अधिक संतान होने से कमज़ोर स्त्री के लिए यह बहुत ही फ़ायदेमंद है. शरीर में दर्द और पीरियड्स में दर्द होने पर भी लाभकारी है.

कुल मिलाकर देखा जाये तो चन्द्रप्रभा वटी स्त्री पुरुष के रोगों के लिए महान दवा है जो हज़ारों साल पहले भी असरदार थी और आज भी काम करती है.


यह दवा बनी बनाई मार्केट में मिल जाती है, आयुर्वेदिक कंपनियां इसका निर्माण करती हैं.

चन्द्रप्रभा वटी निर्माण विधि-

सिद्ध योग संग्रह का यह फ़ार्मूला है. इसके लिए आपको ये सब चाहिए होगा - कपूरकचरी, बच, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, देवदारु, हल्दी, अतीस, दारू-हल्दी, चित्रकमूल छाल, धनियाँ, बड़ी हर्रे, बहेड़ा, आंवला, चव्य, वायविडंग, गजपीपल, छोटी पीपल, सोंठ, काली मिर्च, स्वर्णमाक्षिक भस्म, सज्जी खार, यवक्षार, सेंधा नमक, सोंचर नमक, सांभर नमक, छोटी ईलायची के बीज, कबाबचीनी, गोखुरू और सफ़ेद चन्दन प्रत्येक 5-5 ग्राम 
निशोथ, दन्तिमूल, तेज़पात, दालचीनी, बड़ी इलायची, और बंशलोचन प्रत्येक 20-20 ग्राम

लौह भस्म 40 ग्राम, मिश्री 80 ग्राम, शुद्ध शिलाजीत और शुद्ध गुगुल प्रत्येक 160 ग्राम.

सभी जड़ी बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें और गुगुल को इमामदस्ते में कूटें जब गुगुल नर्म हो जाये तो शिलाजीत, भस्म और जड़ी-बूटियों का चूर्ण मिला कर गिलोय के रस में तिन दिनों तक खरल में डाल कर मर्दन करना चाहिए. और इसके बाद 500 मिलीग्राम की गोलियां बना कर सुखा कर रख लें.

तो दोस्तों, आज आप ने जाना आयुर्वेदिक दवा चन्द्रप्रभा वटी के बारे में. कुछ बात समझ न आई हो तो कमेंट से मुझसे पूछिये.


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गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
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रजः प्रवर्तनी वटी

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रजः प्रवर्तनी वटी एक आयुर्वेदिक दवा है जिसके इस्तेमाल से महिलाओं के पीरियड की सारी प्रॉब्लम दूर होती है, पीरियड नहीं होना, पीरियड कम होना, पीरियड के दौरान दर्द होना जैसे प्रॉब्लम दूर होते हैं

भैषज्य रत्नावली का यह योग बड़ा ही असरदार है और स्त्री रोगों में इसका प्रयोग सदियों से किया जा रहा है

इसे मुसब्बर, शुद्ध हींग, शुद्ध टंकण और शुद्ध कसीस सभी बराबर मात्रा में लेकर घृत कुमारी के रस की भावना देकर बनाया जाता है

यह क्लासिकल शास्त्रीय फ़ॉर्मूला है और इसी फार्मूले की यह दवा बैद्यनाथ, डाबर जैसी कंपनियों की मिलती है

जबकि दिव्य रजः प्रवर्तनी वटी में सोया बीज, गाजर बीज, उलटकम्बल और बंस भी मिला होता है

आईये अब जानते हैं रजः प्रवर्तनी वटी  के फ़ायदे-

यह शरीर से वात दोष को दूर करती है, गर्भाशय में ब्लड फ्लो को बढाती है जिस से रुका पीरियड चालू हो जाता है

पीरियड नहीं होने की प्रॉब्लम में इसे अशोकारिष्ट या कुमार्यासव के साथ लेना चाहिए

रजः प्रवर्तनी वटी के इस्तेमाल से पीरियड न होना, कम होना, देर से होना या दर्द के साथ होना जैसी प्रॉब्लम दूर होती है

कुल मिलाकर देखा जाये तो पीरियड रिलेटेड प्रॉब्लम के लिए इस से बढ़िया कोई दवा नहीं है

रजः प्रवर्तनी वटी की मात्रा और सेवन विधि-

1 से 2 गोली(250 से 500 mg) तक दिन में दो बार भोजन के एक घंटा के बाद लेना चाहिए

डॉक्टर की सलाह से ही इसका डोज़ तय करना चाहिए, ज्यादा डोज़ होने पर हैवी ब्लीडिंग हो सकती है

कोमल प्रकृति की महिलाओं को इसकी जगह पर 'कन्यालोहादी वटी' का इस्तेमाल करना चाहिए.

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गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
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🏻 कांकायन वटी (कांकायन गुटिका)

🌹✍🏻          कांकायन वटी (कांकायन गुटिका)        ✍🏻🌹

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कांकायन वटी (कांकायन गुटिका)

कांकायन वटी (Kankayan Vati या Kankayan Gutika) बादी बवासीर के लिए एक सर्वोत्तम आयुर्वेदिक दवा है। यह बवासीर के मस्से के आकार को कम कर देती है और कब्ज को राहत देता है। इस औषधि के उपयोग से मस्से सूख जाते हैं और बवासीर में होने वाली कब्ज के कारण मल त्याग में जो तकलीफ होती है, वो भी दूर हो जाती है। बवासीर के साथ साथ अग्निमांद्य और पाण्डु रोग में भी लाभ मिलता है। यह भूख बढाता हैं और पाचन क्रिया में सुधार लाती है।


कांकायन वटी कफ दोष को कम कर देता है, वात दोष को शांत करता है, और पित्त दोश को बढ़ाता है। इसलिए, यह तब काम करती है जब मरीज की जीभ पर सफेद कोटिंग हो, भूख कम लगती हो, पाचन क्षमता कम हो, कब्ज हो, खुजली हो। यह जिगर के कार्यों में सुधार करता है और पित्त के प्रवाह को बढ़ाता है, जिससे कब्ज में भी राहत मिलती है।  इसके अलावा, यह गैस, आंतों की कीड़े, आदि के इलाज के लिए भी फायदेमंद है।

कांकायन वटी में भिलावा होता है जो बहुत ही उष्ण वीर्य वाला होता है। इसलिए इसका प्रयोग खुनी बवासीर में नहीं करना चाहिए। अन्यथा यह खून के प्रवाह को बढा देती है जिससे मरीज और परेशान होता है। ऐसी अवस्था में अर्शोघ्नी वटी एक उत्तम औषधि है और यह रक्तस्राव कम करने में सहायक सिद्ध होती है।

घटक द्रव्य एवं निर्माण विधि
हरड़ का वक्कल 48 ग्राम
काली मिर्च 48 ग्राम
जीरा 48 ग्राम
पीपल 48 ग्राम
पीपलामूल 96 ग्राम
चव्य 144 ग्राम
चीता 192 ग्राम
सोंठ 240 ग्राम
शुद्ध भिलावा 384 ग्राम
जिमीकन्द 768 ग्राम
यवक्षार 96 ग्राम
गुड़ उपरोक्त सभी औषधियों की दुगनी मात्रा

निर्माण विधि
कांकायन बटी (अर्श) के निर्माण के लिए सामग्री है – हरड़ का वक्कल 240 ग्राम, काली मिर्च, जीरा और पीपल प्रत्येक 48 ग्राम, पीपलामूल 96 ग्राम, चव्य 144 ग्राम, चीता 192 ग्राम, सोंठ 240 ग्राम, शुद्ध भिलावा 384 ग्राम, जिमीकन्द 768 ग्राम, यवक्षार 96 ग्राम और इन सभी औषधियों की दुगनी मात्रा में गुड़। इन सभी को अच्छी तरह मिला लें और 4 – 4 रत्ती की गोलियां बना लें।

औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
कांकायन वटी में निम्नलिखित औषधीय गुण है:


बवासीरहर
पाचन – पाचन शक्ति बढाने वाली
अनुलोमन – उदर से मल और गैस को बाहर निकालने वाला
क्षुधावर्धक – भूख बढ़ाने वाला
उदर शूलहर
चिकित्सकीय संकेत
कांकायन वटी निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:

बादी बवासीर
कब्ज
मंदाग्नि या अग्निमांद्य या भूख में कमी
रक्ताल्पता
गैस
आंतों कीड़ा
पेट दर्द – कफ या वात के कारण होने वाला दर्द
मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
कांकायन वटी (Kankayan Vati) की सामान्य औषधीय मात्रा  व खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे (10 साल से बड़े बच्चे) ½ से 2 गोली (250 मिलीग्राम से 1 ग्राम)
वयस्क 2 से 4 गोली (1 ग्राम से 2 ग्राम)
सेवन विधि
दवा लेने का उचित समय (कब लें?) भोजन के बाद
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) छाछ (मठ्ठा) के साथ लें
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) कम से कम 4 हफ्ते या चिकित्सक की सलाह लें
आप के स्वास्थ्य अनुकूल कांकायन वटी की उचित मात्रा के लिए आप अपने चिकित्सक की सलाह लें।

कांकायन वटी दुष्प्रभाव (Side Effects)
अज्ञानता के कारण यदि कांकायन वटी का प्रयोग पित्त प्रकोप रोगों में या पित्त प्रकृति रोगियो में किया जाये तो निम्नलिखित दुष्प्रभाव हो सकते है: –

मुंह शुष्क होना (सामान्य दुष्प्रभाव)
जलन का अहसास
शरीर में बढ़ी हुई गर्मी का महसूस होना
सिर में चक्कर आना
सिरदर्द होना
बहुत ज़्यादा पसीना आना
बेचैनी

गर्भावस्था और स्तनपान
गर्भावस्था दौरान कांकायन वटी प्रयोग नहीं कारण चाहिए। स्तनपान दौरान कांकायन वटी का प्रयोग करने से पहिले चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
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दिव्य हृदयामृत वटी

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दिव्य हृदयामृत वटी

दिव्य हृदयामृत वटी (Divya Hridyamrit Vati) दिल से सम्बंधित रोगो और ह्रदय रोगों के लिए एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है। इसका सेवन मुख्य रूप से ह्रदय सम्बंधित रोगो का उपचार करने के लिए किया जाता हैं। यह औषधि मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करती हैं और दिल से सम्बंधित रोगो की कठिनाईयों को दूर करती हैं। इसमें मौजूद घटक उच्च रक्तचाप को कम करने में भी सहायक हैं और इसके अलावा यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने, हार्ट अटैक जैसे रोग को रोकने और शरीर के अंगो में रक्त की आपूर्ति करने में भी सहायक हैं।


दिव्य हृदयामृत वटी के घटक द्रव्य (Ingredients)
घटक द्रव्यों के नाम मात्रा
अर्जुन छाल – Terminalia Arjuna 157.61 मिलीग्राम
निर्गुन्डी – Vitex Negundo 11 मिलीग्राम
रासना – Pluchea Lanceolata 11 मिलीग्राम
मकोय (काकमाची) – Solanum Nigrum 11 मिलीग्राम
गिलोय – Tinospora Cordifolia 11 मिलीग्राम
पुनर्नवा – Boerhavia Diffusa 11 मिलीग्राम
चित्रक – Plumbago Zeylanica 11 मिलीग्राम
नागरमोथा – Cyperus Rotundus 11 मिलीग्राम
वायविडंग – Embelia Ribes 11 मिलीग्राम
हरीतकी  (हरड़ छोटी) – Terminalia Chebula 11 मिलीग्राम
अश्वगंधा – Withania Somnifera 11 मिलीग्राम
शुद्ध शिलाजीत  – Asphaltum 11 मिलीग्राम
शुद्ध गुग्गुलु  – Commiphora Mukul 21 मिलीग्राम
संजयस्व पिष्टी 0.1 मिलीग्राम
अकीक पिष्टी 0.1 मिलीग्राम
मुक्ता पिष्टी 0.05 मिलीग्राम
हीरक भस्म 0.005 मिलीग्राम
रजत भस्म 0.03 मिलीग्राम
जहरमोहरा पिष्टी 0.005 मिलीग्राम
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
ह्रदय
रक्तभारशामक
प्रतिउपचायक (एंटीऑक्सीडेंट)
रक्त वाहिकाएं में वसा के जमा होने को रोकने
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
हृदय की निर्बलता या कमजोरी
दिल का दौरा पड़ने की रोकथाम के लिए
हृदय की मांसपेशियों को ताकत देने के लिए
हृद्‍शूल (हृदयार्ति) – Angina Pectoris
उच्च रक्तचाप
उच्च कोलेस्ट्रॉल
दिल की धड़कन कम या ज्यादा होना
अन्य दिल के रोग

दिव्य हृदयामृत वटी के लाभ एवं प्रयोग
दिव्य हृदयामृत वटी में मौजूद सभी घटकों का ह्रदय पर प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक घटक के प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए यहाँ कुछ महत्वपूर्ण लाभ लिखे हैं।

दिल की बीमारियां
दिव्य हृदयामृत वटी में पायी जाने वाली जड़ी बूटियां जैसे मकोय, हीरक भस्म और रजत भस्म दिल को मजबूत बनाती हैं जिससे ह्रदय की धमनियों के अवरोध दूर होते हैं और इससे दिल सामान्य रूप से काम करना शुरू कर देता हैं और इसी तरह से ही यह औषधि दिल की बिमारियों को दूर करने में मदद करती हैं। इस औषधि के नियमित सेवन से ह्रदय स्वस्थ रहता हैं।

कोलेस्ट्रॉल (cholesterol)
दिव्य हृदयामृत वटी धमनियों के अवरोधो को दूर करती हैं जिससे धमनियों में जमी वसा भी दूर होती हैं और इसके परिणामस्वरूप कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य रहता हैं और लिपिड स्तर भी कम होकर संतुलित होता हैं।

हार्ट अटैक, हृदय शूल (Angina) और ह्रदय के अन्य रोग
दिव्य हृदयामृत वटी ह्रदय की कोशिकाओं को क्रियाशील बना देती हैं और दिव्य हृदयामृत वटी दिल की मांसपेशियों को भी पोषण प्रदान करती है। जिससे दिल के दौरे, हृदय शूल (Angina) और ह्रदय के अन्य रोगो की रोकथाम में सहायता मिलती हैं तथा इससे ह्रदय को भी ताकत मिलती हैं। अगर किन्ही कारणों से किसी का ह्रदय का आपरेशन हुआ हो तो उन्हें रोज़ाना दिव्य हृदयामृत वटी का सेवन करना चाहिए ताकि ह्रदय स्वस्थ रहे। तीब्र और लगातार एनजाइना दर्द से भी राहत मिलती हैं।


उच्च रक्तचाप , रक्त के उचित संचालन, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना
दिव्य हृदयामृत वटी जिन औषधियों से बनी हैं वो शरीर के विभिन्न रोगो को दूर करने के लिए बहुत मददगार हैं और इनका शरीर पर कोई दुर्प्रभाव नही पड़ता जैसे पुनर्नवा जो उच्च रक्तचाप को कम करने में सहायक हैं, अश्वगंधा जो पुरे शरीर में खून का उचित संचालन करने में मदद करता हैं, हरीतकी ऐसी औषधि हैं जो दिल के साथ साथ पाचन की समस्यायों को भी दूर करता हैं और गिलोय जो ह्रदय के साथ साथ पुरे शरीर के लिए उपयोगी एक औषधि हैं।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
दिव्य हृदयामृत वटी की मात्रा आपके स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। दिव्य हृदयामृत वटी की सामान्य खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे 1 गोली
वयस्क 1 से 2 गोली
आप के स्वास्थ्य अनुकूल हृदयामृत वटी की उचित मात्रा के लिए आप अपने चिकित्सक की सलाह लें।

सेवन विधि
दवा लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और शाम
दिन में कितनी बार लें? 2 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) गुनगुने पानी या दूध के साथ या अर्जुन क्षीर पाक (Arjuna Ksheer Pak) से
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) कम से कम 3 महीने
दुष्प्रभाव (Side Effects)
यदि हृदयामृत वटी का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो इस के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते। अधिक मात्रा में हृदयामृत वटी के साइड इफेक्ट्स की जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है

note- आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श करें
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🌳🕉🌺महिला संजीवनी 🌺🕉🌳
गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
जिला -एटा , उत्तर प्रदेश
9466623519
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