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बुधवार, 17 जनवरी 2018

भस्मो के प्रयोग

🌹✍🏻     भस्मो के प्रयोग        ✍🏻🌹

जासु कृपा कर मिटत सब आधि,व्याधि अपार

तिह प्रभु दीन दयाल को बंदहु बारम्बार

🌳🌺महिला संजीवनी 🌺🌳

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विविध भस्मों के अनुभूत घरेलू प्रयोग

ऐसा कहा जाता हें की राख या भस्म सृष्टि के पञ्च तत्वों का सार हें और इसीलिए भगवान् शिव ने इसे अपने अंगो पर धारण किया है राख, विभूति या उदी कही जाने वाली भस्म को बहुत ही धार्मिक व औषधीय महत्व प्राप्त है जिस भी पदार्थ की जब भस्म बनाई जाती है तब सारा भाग जल कर जो अवशेष शेष बचते हें उसे ही भस्म कहा जाता हें जो मुख्य स्वरूप में पदार्थ के होने की तुलना में ज्यादा गुणकारी बन जाती है इसीलिए औषधि या जडी-बूटी से बेहद कम मात्रा में उपयोग करने पर भी भस्म उत्तम लाभ देती है-

आयुर्वेद में भस्मो से उपचार की विधि प्राचीन और शाश्त्रोक्त है भस्मे तुरंत असर करने वाली औषधि है लेकिन उचित मात्रा एवं शास्त्रोक्त उपयोग करने पर आयुर्वेदिक भस्मो का उत्तम लाभ प्राप्त होता है आयुर्वेद में धातु, खनिज, जड़ी-बूटियों और रत्नों से भस्म बनाई जाती है जो कई रोगों में चमत्कारिक लाभ करती हें लेकिन आज ह्म आपको हर्बल चिकित्सा में प्रयोग किये जाने वाले भस्मो के कुछ अनुभूत नुस्खे बताएँगे जो आप घर पर आसानी से कर सकते है व स्वास्थ लाभ पा सकते हैं-

कैसे बनाई जाए भस्म-

जिस भी पदार्थ या औषधीय जड़ी बूटी की भस्म बनानी है उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें या कूट ले अब लोहे की कढ़ाई में धीमी आंच पर इसे भून ले भूनकर यह औषधि पहले गुलाबी फिर लाल और फिर काली पड़ने लगे तब तक इसे भूनते रहना है जब औषधि काली पड़ जाए तथा चूर्ण बनने लगे तब इसे किसी पात्र में निकाल लेना है ठंडा होने पर इसे खरल करके अच्छे से चूर्ण बना लेना है तथा सूती कपड़े से छानकर किसी साफ बर्तन में या शीशी में इसे भर लेना है-

विविध भस्मों के अनुभव घरेलू प्रयोग-

1- बरगद के कोमल पत्तों को की भस्म को तिल के तेल में मिलाकर खाज खुजली तथा एक्जिमा पर लगाने से त्वचा रोगों में आराम मिलता है-

2- नारियल की छाल या जटा लेकर उसे धूप में 1 दिन सुखा लें फिर इसे मिट्टी के बर्तन में भूनकर इसकी भस्म बना ले इस भस्म को 3 ग्राम की मात्रा में गाय के मीठे दही के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से बवासीर के मस्सों में राहत मिलती है, मस्सों का आकार कम हो जाता है तथा खूनी बवासीर में लाभ मिलता है यह प्रयोग रक्तप्रदर में भी उत्तम लाभ है-

3- आंवले की गुठली या बीज को अच्छे से धो कर सुखा कर उसकी भस्म बनाकर यह भस्म नारियल तेल में खूब खरल करके मरहम जैसा बना ले यह मरहम एक्जिमा दाद खाज खुजली पर लगाने से खाज खुजली की समस्या दूर होती है-

4- मयूर पंख की भस्म को शहद के साथ चाटने से (हीक्का रोग) यानी हिचकी आना बंद होता है एक रत्ती मयूरपंख की भस्म को तीन रत्ती सहद के साथ लेने से श्वास दमा में राहत मिलती है किसी भी ऑपरेशन के बाद होने वाली उल्टी तथा हिचकियों में मयूर पंख की बस उत्तम औषधि है-

5- बरगद के पत्ते साफ करके धुप में अच्छे से सुखा लें उन पत्तों पर अलसी का तेल लगाकर उसे जला कर राख बना ले इस राख को 4 गुना अलसी के तेल में मिलाकर रात को सर में जहां बाल उड़ गए हो या बाल कम हो गए हो वहां लगाकर मालिश करने से झड़े हुए बाल वापस आते हैं तथा बाल झड़ना भी कम हो जाता है-

6- केले के पत्तों को जलाकर भस्म बनाकर यह भस्म 5-5 ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार शहद के साथ चाटने से कुकुर खांसी में राहत मिलती है-

7- बादाम के छिलकों को जलाकर उसकी भस्म बनाकर उस भस्म से दांत मांजने से दांतों की जड़ें मजबूत होती है अगर उसमें हल्दी व सेंधा नमक मिलाया जाए तो पायरीया जैसी समस्याओं में भी लाभ मिलता है-

8- खारीक या खजूर की गुठली को जलाकर उसकी भस्म में कपूर तथा हींग मिलाकर पानी से लेप बना ले यह लेप दाद खाज खुजली पर लगाने से लाभ होता है-

9- आवला को जलाकर उसकी भस्म तिल के तेल में मिलाकर पूरे शरीर की मालिश करने से तथा धूप स्नान करके उसके बाद स्नान करने से शरीर की खुजली तथा त्वचा रोग  मिटते हैं-

10- तूअर के पत्ते या फली को जलाकर भस्म बनाकर दही में मिलाकर लगाने से खरुज तथा दद्रु रोग मिटता है-

11- हल्दी को जलाकर उसकी राख तथा चूने को मिलाकर फोड़े पर लेप करने से फ़ोड़ा फुटकर मवाद जल्दी बाहर निकल जाता है तथा त्वचा पर इसके निशान भी नहीं रहते हैं-

12- चक्रमर्द के बीज को भूनकर उसकी भस्म बनाकर उससे चाय बनाकर पीने से रक्तविकार दूर होते हैं फ़ोड़े, खाज खुजली, कील मुहांसे जैसी समस्या मिटती है-

13- आम के पत्तों की भस्म बनाकर उसे घी के साथ खरल करके मुलायम मलहम जैसा बना लें इसे जले हुए स्थान पर लगाने से तुरंत राहत मिलती है वह जले के निशान भी त्वचा पर नहीं रहते-

14- भुट्टे में से मकई के दाने निकाल कर खाली भुट्टे को जलाकर उसकी भस्म बना लें तथा कपड़छन करके यह भस्म एक-एक  ग्राम की मात्रा में सुबह शाम पानी से लेने दे पथरी का दर्द तथा कष्ट मूत्र जैसी समस्याएं दूर होती है-

15- कुलथी को भूनकर उसकी भस्म बनाकर उस में गुड़ डालकर पीने से पित्त प्रकोप से हुई त्वचा संबंधी तकलीफें दूर होती है-

16- अनार के पत्तों को तथा अनार की छाल को जलाकर राख बना लें इस राख को घी मैं खरल करके मुलायम मरहम बना ले यह मरहम अर्श मस्सो पर बांधने से बवासीर के मस्से दूर होते हैं इस राख को पानी में घोलकर इससे गुदाद्वार साफ करने से भी बवासीर की समस्या में लाभ होता है-

17- एक रोटी जलाकर राख कर लें फिर आधे गिलास पानी में डाल दें रोटी घुल जायेगी तब उसका ऊपर ऊपर का पानी पिला दें यह उलटी की रामबाण दवा है-

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🌳🕉🌺महिला संजीवनी 🌺🕉🌳
गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
जिला -एटा , उत्तर प्रदेश
9466623519
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शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

यार्सागुम्बा

🌹✍🏻        यार्सागुम्बा         ✍🏻🌹

जासु कृपा कर मिटत सब आधि,व्याधि अपार

तिह प्रभु दीन दयाल को बंदहु बारम्बार

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यार्सागुम्बा को हिमालयन वियाग्रा भी कहा जाता है अंग्रेज़ी में इसे Cordiceps कहते हैं, जबकि इसका पूरा नाम Cordiceps Sinesis है. इसे ख़ासकर पॉवर, स्टैमिना और सेक्सुअल पॉवर बढ़ाने के लिए यूज़ किया जाता है. यह चमत्कारी गुणों से भरपूर औषधि है और इसके कई सारे दुसरे फ़ायदे भी हैं, तो आईये जानते हैं यार्सागुम्बा या हिमालयन वियाग्रा के बारे में  पूरी डिटेल - 

यार्सागुम्बा हिमालयन एरिया में पाया जाता है, नेपाल, चीन, तिब्बत जैसे देशों में मिलता है. 

इसे कई नामों से जाना जाता है यार्सागुम्बा इसका तिब्बतियन नाम है. अंग्रेज़ी में इसे Cordiceps Sinesis, Caterpillar Fungus, Caterpillar Mushroom और Chinese Caterpillar Fungus जैसे नामों से जाना जाता है. नेपाली में इसे किरा झार या कीड़ा झार कहा जाता है. 

यह एक तरह का फंगस है जिसे कीड़ा और मशरूम का मिश्रण कह सकते हैं. जैसा कि इसे देखने से ही पता चलता है इसके रूट या जड़ की तरफ कीड़ा है जबकि ऊपर का भाग फंगस या एक तरह का मशरूम है. यह बहुत ही रेयर होता है, जिसकी वजह से काफी महँगा भी है. सूखे हुवे यार्सागुम्बा की बहुत डिमांड होती यौन शक्तिवर्धक दवा के रूप में. इसके एक किलो की क़ीमत 60 लाख रुपया से भी ज़्यादा है. 

यार्सागुम्बा कई तरह के विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होता है, इसमें विटामिन बी -1, विटामिन बी -2, विटामिन बी- 12, विटामिन K जैसे विटामिन्स के अलावा कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं. 

यार्सागुम्बा के औषधीय गुण - 

यह एक बेहतरीन यौन शक्ति वर्धक, पॉवर-स्टैमिना बढ़ने वाला, टॉनिक, एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी एजिंग, एंटी ट्यूमर, एंटी कैंसर, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है. 

यार्सागुम्बा या हिमालयन वियाग्रा के फ़ायदे - 

यौन शक्ति बढ़ाने के लिए वियाग्रा की तरह ही इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, इम्पोटेंसी में बेहद असरदार है. पॉवर और स्टैमिना बढ़ाने के लिए यह दुनियाभर में पोपुलर है. 

यह टॉनिक की तरह भी काम करता है, शारीरिक कमज़ोरी, थकान, चिंता- तनाव को दूर करता है. 

एंटी एजिंग है, बुढ़ापे के लक्षणों को कम करता है चुस्ती-फुर्ती लाता है और इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाता है. 

दिल, दिमाग, नर्वस सिस्टम और फेफड़ों को तकत देता है, मेमोरी लॉस, खाँसी, ब्रोंकाइटिस में फ़ायदेमंद है.

खून की कमी को दूर करता है, कोलेस्ट्रॉल कम करता है.

किडनी और ब्लैडर की बीमारियों में भी इफेक्टिव है, रात में बार-बार पेशाब होना और किडनी फेलियर में फ़ायदेमंद है. 

यार्सागुम्बा के इस्तेमाल से महिलाओं में यौनेक्षा की कमी दूर होती है. कुल मिलाकर देखा जाये तो यह न सिर्फ पॉवर और स्टैमिना को बढ़ाता है बल्कि टॉनिक और हेल्थ सप्लीमेंट की तरह भी काम करता है. 

यार्सागुम्बा का डोज़ और इस्तेमाल करने का तरीका- 

250 mg से 1.5 ग्राम तक रोज़ दो बार खाना खाने के दो-तीन घंटे के बाद पानी से  लेना चाहिए. इसका डोज़ पाचन शक्ति और बॉडी की कंडीशन पर डिपेंड करता है. इसे कई लोगों में शुरू में ज़्यादा डोज़ भी दिया जाता है एक हफ्ते तक, उसके बाद नार्मल Maintaining डोज़. इसे मैक्सिमम तीन महीने तक यूज़ कर सकते हैं. 

यार्सागुम्बा का साइड इफ़ेक्ट - 

इसे ऑलमोस्ट सेफ़ दवा माना जाता है पर हर किसी यह सूट नहीं करती. पेट की ख़राबी, डायरिया, चक्कर, सर दर्द और मुँह सुखना जैसी प्रॉब्लम हो सकती है, अगर आपको यह सूट न करे. 

इसका कैप्सूल और टेबलेट मार्केट में मिल जाता है,




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गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
जिला -एटा , उत्तर प्रदेश
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रुद्रवन्ती

🌹✍🏻       रुद्रवंती (रुदंती)           ✍🏻🌹

जासु कृपा कर मिटत सब आधि,व्याधि अपार

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रुद्रवंती (रुदंती) – Rudravanti (Rudanti)

रुद्रवंती - रुदंती

रुद्रवंती (रुद्रवन्ती) को रुदंती भी कहा जाता है। यह आयुर्वेद में एक रसायन और क्षयकृमिनाशक माना जाता है। इस का प्रयोग क्षय रोग, कास, श्वास (asthma) और अन्य श्वसन प्रणाली की बीमारियों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। यह आंतरिक शक्ति और शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है। शरीर को बल प्रदान कर शारीरिक कमजोरी को दूर करता है।


इसका मुख्य प्रभाव फेफड़ों पर होता है। यह फेफड़ों में होने वाले घाव के इलाज के लिए अति उपयुक्त दवा है। यह एक कफहर और जंतुघ्न हर्ब है जो श्वसन प्रणाली में होने वाले संक्रमणों में भी लाभकारी है।

यक्ष्मा रोग में इसका प्रयोग स्वर्ण भस्म या वसंत मालती रस (स्वर्ण युक्त) के साथ करने पर यह उत्तम लाभ करता है। यह राजयक्ष्मा के जीवाणुओं की वृद्धि रोक देता है और उनका नाश करता है।

खांसी में यह तब प्रयोग करना चाहिए जब छाती में कफ जमा हो या छाती में से घरघराहट या सीटी बजने जैसी आवाज आये। यह दमा रोग में सीने में होने वाली जकड़न में भी प्रभावी है और सांस की तकलीफ को दूर करती है।

यदि रोगी को गले में खुजली या खरखराहट के बाद खांसी हो रही हो तो इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह रुक्ष होती है और गले की खरखराहट और बड़ा सकती है। ऐसी अवस्था में वासापत्र का प्रयोग मुलेठी, प्रवाल पिष्टी आदि के साथ करने से ज्यादा लाभ मिलता है। यदि कभी इस का प्रयोग करना भी पड़े तो इसको दूध के साथ देना चाहीहे या अन्य औषधियों के साथ मिलकर देना चाहिए।


सर्भ प्रथम इसका प्रयोग शांग्रधर संहिता में मिलता है। इस संहिता में इसे रसायन कहा गया है।

रुद्रवंती के बारे में विवाद
रुद्रवन्ती की वास्तविक प्रजाति के बारे में सूचना विवादास्पद है। हिंदी में रुद्रवंती या रुदंती कही जाने वाली ३ जड़ी बुटीयां है।

Astragalus Candoleanus
Capparis Moonii
Cressa Cretica
हालांकि इन तीनो के औषिधीय गुण कर्म और औषिधीय प्रयोग एवं लाभ में लगभग समानता है और यह सब उष्ण वीर्य है।

यह भी देखें  सौंफ (Saunf) के अद्भुत फायदे, प्रयोग, गुण-कर्म, सेवन विधि और दुष्प्रभाव के बारे में जानें
Capparis Moonii के फल ही बाजार में उपलब्ध होते है और रुदंती या रुद्रवंती के नाम से बेचे जाते है। इन्हीं का प्रयोग अधिक होता है। क्योंकि यह बाजार में आसानी से मिल जाती है और हम इसी का प्रयोग अपने क्लिनिक पर करते है। इसमें सभी गुण है जो इस लेख में लिखे गए है। यक्ष्मा रोग (टी.बी.) में ख़ास तौर पर फायदेमंद है।

Cressa Cretica एक बहुत ही दुर्लभ हर्ब है जो हिमालयी क्षेत्र में मिलती है। यह कदाचित ही प्रापत होती है। इसके गुणों और Capparis Moonii के गुणों में ज्यादा समानता है।

Astragalus Candoleanus उत्तराखंड में मिलने वाली बूटी है जिसका प्रयोग भी श्वसन प्रणाली और पेट के रोगों में किया जाता है। ऐसे भी रुद्रवंती कहा जाता है।

उपयोगी अंग (Medicinal Parts)
Capparis Moonii: फल
Cressa Cretica: पंचांग विशेषतः पत्ते और शाखाएं
आयुर्वेदिक गुण धर्म एवं दोष कर्म
रस (Taste) कटु, तिक्त,
गुण (Property) लघु, रुक्ष, तीक्ष्ण
वीर्य (Potency) उष्ण (गरम)
विपाक (Metabolic Property) कटु
दोष कर्म (Dosha Action) वात – कफ शामक, पित्त संशोधक
औषधीय कर्म (Medicinal Actions)
रुद्रवंती (रुदंती) में निम्नलिखित औषधीय गुण है:

क्षयकृमिनाशक
रक्तपित्तघ्न
रसायन
कफहर
श्वासहर
प्रमेहहर
कासहर
श्लेष्मपूतिहर
पाचन – पाचन शक्ति बढाने वाली
अनुलोमन
दीपन
पितसारक
ज्वरहर
आमपाचन
कोथप्रश्नम
जंतुघ्न
जीवाणु नाशक
जीवनीय
रसायन
रक्तवर्धक
चिकित्सकीय संकेत (Indications)
रुद्रवंती निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:

कास
श्वास – दमा (अस्थमा)
यक्ष्मा (tuberculosis)
पुरानी खांसी
ज्वर सहित खांसी
फेफड़ों के संक्रमण
प्रमेह
नव ज्वर
औषधीय लाभ एवं प्रयोग (Benefits & Uses)
रुद्रवन्ती (रुदन्ती) का मुख्य प्रयोग टी.बी. की चिकित्सा में किया जाता है। इसका जीवाणुनाशक गुण टी.बी. के जीवाणु की वृद्धि रोक देता है और इस का नाश करता है। यह श्वसन प्रणाली के अन्य संक्रमणों में भी उत्तम लाभ करता है। कास और श्वास के यह एक बहुत ही फायदेमंद औषिधि है।

सर्दी, जुकाम और बुखार
रुद्रवंती का चूर्ण सर्दी, जुकाम और बुखार में लाभदायक है। यह सर्दी जुकाम के लक्षणों को कम करता है और बुखार उतारता है। यह बुखार में होने वाले बदन दर्द और सिर दर्द को चिरायता की तरह ही कम कर देता है। यह बार बार होने वाली छींके, नजला और नाक के बंद होने में आराम करता है।

सर्दी, जुकाम और बुखार में रुदंती का चूर्ण 1 से 2 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लिया जा सकता है।  या फिर इस का क्वाथ बना कर प्रयोग किया जा सकता है। काढ़ा बनाने के लिए 10 ग्राम फल चूर्ण या पंचांग को 240 मिलीलीटर पानी में डाल कर उबाले और जब यह कम हो कर 60 मिलीलीटर करीब रह जाये तो छान कर सुबह और शाम को लें। यह भोजन के 1 घंटे बाद लिया जा सकता है।

बलगम वाली खाँसी
रुद्रवंती बलगम वाली खाँसी में बहुत लाभकर है। यह श्वास नलियों की सूजन को कम करता है। बलगम बनना कम करता है और बनी हुई बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है। अच्छे परिणाम के लिए इसका प्रयोग हरीतकी, तुलसी और कंटकारी या बिभीतकी या त्रिकटु चूर्ण के साथ किया जा सकता है।


अगर बलगम कुछ चिकनी सी और पीले भूरे या हरे रंग की हो या बलगम में रक्त हो, तो रुद्रवंती का अकेले प्रयोग न करना ही उचित है। या फिर ऐसी अवस्था में इसको कम मात्रा में मुलेठी, प्रवाल पिष्टी, वासापत्र, और बनफ्शा के साथ करने से उचित लाभ मिलता है।

दमा या साँस संबंधित समस्याएँ
रुद्रवन्ती दमा रोगी के लिए भी लाभदायी है। यदि  छाती में घरघराहट जा सिटी बजने के सामान आवाज आए और फेफड़ों या श्वास नलियों में बलगम जमा हुआ हो तो यह अधिक लाभ करती है। यह बलगम उत्पादन कम कर देती है और श्वास नलियों को खोल देती है जिस से साँस लेने में आसानी होती है। ऐसे केस में इसको शहद या गरम पानी के साथ लिया जा सकता है।

यदि मरीज को सांस लेने में तकलीफ हो और बलगम का स्राव और उत्पादन सामान्य हो, तो इसे गर्म दूध के साथ लिया जाना चाहिए।

क्षयरोग
क्षयरोग में रुद्रवन्ती क्षय के जीवाणुओ की वृद्धि को रोकता है और उनका नाश करता है। रक्त की विषाक्तता को दूर करता है। यह फेफड़ों के घावों को भी कम करने में सहायक है। रुदंती के फल का लगातार ६ माह प्रयोग करने से फेफड़ों के घाव पूरी तरह ठीक हो जाते है और एक्स-रे के द्वारा जांच करने पर घाव दिखाई नहीं पड़ते।

क्षयरोग में रुद्रवन्ती चूर्ण को 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इससे वजन बढ़ता है, भूख लगती है और शारीरिक कमजोरी दूर हो कर शरीर को ताकत मिलती है। यह बदन दर्द और थकान को भी कम करता है।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
रुद्रवंती फल चूर्ण की सामान्य औषधीय मात्रा  व खुराक इस प्रकार है:

औषधीय मात्रा (Dosage)
बच्चे 500 मिलीग्राम से 1.5 ग्राम
वयस्क 1 से 3 ग्राम (कभी कभी 6 ग्राम तक भी दिया जा सकता है।)
सेवन विधि
दवा लेने का उचित समय (कब लें?) सुबह और शाम
दिन में कितनी बार लें? 2 या 3 बार
अनुपान (किस के साथ लें?) रोग अनुसार अनुपान – शहद (मधु), गुनगुने पानी या दूध के साथ
उपचार की अवधि (कितने समय तक लें) कम से कम 6 से 12 महीने
आप के स्वास्थ्य अनुकूल रुद्रवंती की उचित मात्रा के लिए आप अपने चिकित्सक की सलाह लें।

दुष्प्रभाव (Side Effects)
यदि रुद्रवंती चूर्ण का प्रयोग व सेवन निर्धारित मात्रा (खुराक) में चिकित्सा पर्यवेक्षक के अंतर्गत किया जाए तो रुद्रवंती के कोई दुष्परिणाम नहीं मिलते। अधिक मात्रा में रुद्रवंती के साइड इफेक्ट्स की जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है।

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गुरुवेंद्र सिंह शाक्य
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मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017

!! आक / अकवन/ अकौवा

🌺🙏🏻🌺 *!! आक / अकवन/ अकौवा के कुछ प्रयोग !!* 🌺🙏🏻🌺

        आक का हर अंग दवा है ! हर भाग उपयोगी है ! यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायन हैं ! कहीं-कहीं इसे 'वानस्पतिक पारद' भी कहा गया है !!

*!! आक के कुछ कारगर प्रयोग !!*

*१ :-*  आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक लें व अर्क निचोड कर कान में डालने से आधा शिर दर्द जाता रहता है ! व बहरापन दूर होता है ! दाँतों और कान की पीडा शाँत हो जाती है !!

*२ :-* आक के कोमल पत्ते पर मीठा तेल लगाकर गरमकर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है !!

*३ :-* आक के पत्ते कडुवे तेल में जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है !!

*४ :-* आक के पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है ! तथा हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन पचक जाती है !!

*५ :-* आक के कोमल पत्तों के धूँआ से बवासीर शाँत होती है ! व कोमल पत्ते खाय तो ताप तिजारी रोग दूर हो जाता है !!

*६ :-* आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है ! सूजन दूर हो जाती है !!

*७ :-* आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है !!
दूध पीते बालक को माता अपनी दूध में देवे तथा मदार के फल की रूई ! रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है !!

*८ :-*  आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोवे फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाय ९ दिन में कुत्ते का विष शाँत हो जाता है ! परंतु कुत्ता काटने के दिन से ही खाये !!

*९ :-*  आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है !!
यहाँ यह ध्यान दें कि यदि आपकी बाईं आँख दुख रही है तो दाहिने पैर के अँगूठे पर व दाईं आँख दुख रही है तो बांये पैर के अँगूठे पर आक का दूध लगाना है !!
*गलती से भी आँख पर दूध न लगने पाये !!*

*१० :-* आक का दूध बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं !!

*११ :-*  जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं ! तलुओं पर लगाने से महीने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है !!

*१२ :-*  आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लकवा सीधा हो जाता है !!

*१३ :-*  आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है !!

*१४ :-*  आक की जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है !!

*१५ :-* आक का दूध बर्रे काटे स्थान में लगाने से दर्द नहीं होता ! चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है !!

*नोट  :-*   यह सभी प्रयोग सफेद औकौवे पर अाजमाए हुए है !!

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शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

गूलर का औषधीय प्रयोग

🌺🙏🏻🌺 *!! गूलर का औषधीय प्रयोग !!* 🌺🙏🏻🌺

गूलर का बृक्ष भिन्न भिन्न प्रदेशों में भाषा के अनुरूप भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है, महाराष्ट्र में तो ऐसा माना जाता है की गूलर के वृक्ष में भगवान् दत्तात्रेय का वास होता है ! वैसे तो सम्पूर्ण भारत में इसे गुलर के नाम से जाना जाता है किन्तु संकृत में इसे उदुम्बर जन्नूफल, मराठी में उम्बर, गुजराती में उम्बरो,बंगला में यज्ञ डूम्बुरा, अंग्रेजी में क्लस्टर फिग आदि नामों से जाना जाता है !!

गुण धर्म की दृष्टि से यदि देखा जाए तो यह कफ पित्त शामक, दाह प्रशमन, अस्थि संघानक तथा सोत, रक्त पित्त, प्रदर,प्रमेह,अर्श, गर्भाशय विकार आदि नाशक है. चिकित्सा की दृष्टि से गूलर की छाल, पत्ते, जड़, कच्चाफल व पक्का फल सभी उपयोगी है ! गूलर का कच्चा फल कसैला व उदार के दाह का नाशक होता है, पके फल के सेवन और कप्पल भाति की क्रिया करने से कब्ज मिटता है !! पकाफल मीठा, शीतल, रुचिकारक, पित्तशामक, श्रमकष्टहर, द्राह- तृष्णाशामक, पौष्टिक व कब्ज नाशक होता है !! कुछ दिनों तक लगातार इसकी जड़ का अनुपातिक काढ़ा पीने से व योग के अंतर्गत आने वाले कपाल भाति की प्रक्रिया से मधुमेह पूरी तरह से नियंत्रित हो जाता है !!

खुनी बवासीर में इसके पत्तों का रस लाभकारी होता है ! गूलर का दूध शरीर से बाहर निकालने वाले विभिन्न स्रावों को नियंत्रित करता है ! हाथ पैर की चमड़ी फटने से होने होने वाली पीड़ा कम करने के लिए गूलर के दूध का लेप करना लाभकारी सिद्ध हुआ है !!
मुँह में छाले, मसूढ़ों से खून आना आदि विकारों में इसकी छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ली करने से विशेष लाभ होता है !!
ग्रीष्म ऋतु की गर्मी या अन्य जलन पैदा करने वाले विकारों एवं चेचक आदि में पके फल को पीसकर उसमे शक्कर मिलाकर उसका शर्बत बनाकर पीने से राहत मिलती है ! इस प्रकार इसकी असंख्य उपयोगिताओं के कारण ही तो इसे पवित्र वृक्षों की श्रेणी में रखा गया है !!

• १ बताशे में १० बूंद गूलर का दूध डालकर सुबह-शाम सेवन करने और १ चम्मच की मात्रा में गूलर के फलों का चूर्ण रात में सोने से पहले लेने से धातु दुर्बलता दूर हो जाती है इस प्रकार से इसका उपयोग करने से शीघ्रपतन रोग भी ठीक हो जाता है !!

*मर्दाना शक्तिवर्द्धक :-*
• १ छुहारे की गुठली निकालकर उसमें गूलर के दूध की २५ बूंद भरकर सुबह रोजाना खाये इससे वीर्य में शुक्राणु बढ़ते हैं तथा संतानोत्पत्ति में शुक्राणुओं की कमी का दोष भी दूर हो जाता है !!

• १ चम्मच गूलर के दूध में २ बताशे को पीसकर मिला लें और रोजाना सुबह-शाम इसे खाकर उसके ऊपर से गर्म दूध पीएं इससे मर्दाना कमजोरी दूर होती है !!

• पका हुआ गूलर सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें इस चूर्ण में इसी के बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी बोतल में भर कर रख दें। इस चूर्ण में से २ चम्मच की मात्रा गर्म दूध के साथ सेवन करने से मर्दाना शक्ति बढ़ जाती है ! २-२ घंटे के अन्तराल पर गूलर का दूध या गूलर का यह चूर्ण सेवन करने से दम्पत्ति वैवाहिक सुख को भोगते हुए स्वस्थ संतान को जन्म देते हैं !!

*बाजीकारक (काम उत्तेजना):-*
• ४ से ६ ग्राम गूलर के फल का चूर्ण और बिदारी कन्द का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पौरुष शक्ति की वृद्धि होती है ! व बाजीकरण की शक्ति बढ़ जाती है ! यदि इस चूर्ण का उपयोग इस प्रकार से स्त्रियां करें तो उनके सारे रोग ठीक हो जाएंगे !!

• गर्मी के मौसम में गूलर के पके फलों का शर्बत बनाकर पीने से मन प्रसन्न होता है और शरीर में शक्ति की वृद्धि होती है तथा कई प्रकार के रोग जैसे- कब्ज तथा खांसी और दमा आदि ठीक हो जाते हैं !!

*उपदंश (फिरंग):-*
• ४० ग्राम गूलर की छाल को १ लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर पीने से उपदंश की बीमारी ठीक हो जाती है !!

*शरीर को शक्तिशाली बनाना:-*
• लगभग १०० ग्राम की मात्रा में गूलर के कच्चे फलों का चूर्ण बनाकर इसमें १०० ग्राम मिश्री मिलाकर रख दें ! अब इस चूर्ण में से लगभग १० ग्राम की मात्रा में रोजाना दूध के साथ लेने से शरीर को भरपूर ताकत मिलती है !!

*प्रदर:-*
• गूलर के फूलों के चूर्ण को छानकर उसमें शहद एव मिश्री मिलाकर गोली बना लें रोजाना १ गोली का सेवन करने से ७ दिन में प्रदर रोग से छुटकार मिल जाता है !!

• गूलर के पके फल को छिलके सहित खाकर ऊपर से ताजे पानी पीयें इससे श्वेत प्रदर रोग ठीक हो जाता है !!

• गूलर के फलों के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग में आराम मिलता है !!

*रक्तप्रदर :-*
• रक्तप्रदर में गूलर की छाल ५ से १०ग्राम की मात्रा में या फल २ से ४की मात्रा में सुबह-शाम चीनी मिले दूध के साथ सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है तथा रक्तप्रदर रोग ठीक हो जाता है !!

• २५ ग्राम गूलर की ताजी छाल को २५० मिलीलीटर पानी में उबालें जब यह ५० मिलीलीटर की मात्रा में बच जाए तो इसमें २५ ग्राम मिश्री और २ ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर सेवन करें इससे रक्तप्रदर रोग में लाभ मिलता है !!

• पके गूलर के फलों को सुखाकर इसे कूटे और पीसकर छानकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी ढक्कनदार बर्तन में भर कर रख दें। इसमें से ६ ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम दूध या पानी के साथ सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है !!

• पके गूलर के फल को लेकर उसके बीज को निकाल कर फेंक दें, जब उसके फल शेष रह जायें तो उसका रस निकाल कर शहद के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ मिलता है ! रोगी इसके सब्जी का सेवन भी कर सकते हैं !!

• १ चम्मच गूलर के फल का रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में न केवल रक्त प्रदर ठीक होता है बल्कि मासिकधर्म में खून अधिक आने की तकलीफ भी दूर होती है !!

*श्वेत प्रदर:-*
• रोजाना दिन में ३-४ बार गूलर के पके हुए फल खाने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है !!

• गूलर का रस ५ से १० ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर इससे लेप करें इससे श्वेत प्रदर रोग में आराम मिलता है !!

• १ किलो कच्चे गूलर लेकर इसके ३ भाग कर लें इसमें से कच्चे गूलर १ भाग उबाल लें और इनकों पीसकर १ चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा इसकी रोटी बना लें रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें इस प्रकार शेष २ भागों से इसी प्रकार की क्रिया २ दिनों तक करें इससे श्वेत प्रदर रोग की अवस्था में आराम मिलता है !!

• १०-१५ ग्राम गूलर की छाल को पीसकर, २५० मिलीलीटर पानी में डालकर पकाएं पकने के बाद १२५ मिलीलीटर पानी शेष रहने पर इसे छान लें और इसमें मिश्री व लगभग २ ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें तथा भोजन में इसके कच्चे फलों का काढ़ा बनाकर सेवन करें श्वेत प्रदर रोग में लाभ मिलता है !!

*गर्भपात रोकना:-*
• गर्भावस्था में खून का बहना और गर्भपात होने के लक्षण दिखाई दें तो तुरन्त ही गूलर की छाल ५ से १० ग्राम की मात्रा में अथवा २ से ४ गूलर के फल को पीसकर इसमें चीनी मिलाकर दूध के साथ पीएं ! जब तक रोग के लक्षण दूर न हो तब तक इसका प्रयोग ४ से ६ घंटे पर उपयोग में लें !!

• गूलर की जड़ अथवा जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भस्राव अथवा गर्भपात होना बंद हो जाता है !!

*भगन्दर:-*
• गूलर के दूध में रूई का फोहा भिगोंकर इसे नासूर और भगन्दर के ऊपर रखें और इसे प्रतिदिन बदलते रहने से नासूर और भगन्दर ठीक हो जाता है !!

*खूनी बवासीर:-*
• गूलर के पत्तों या फलों के दूध की १० से २० बूंदे को पानी में मिलाकर रोगी को पिलाने से खूनी बवासीर और रक्तविकार दूर हो जाते हैं ! गूलर के दूध का लेप मस्सों पर भी लगाना लाभकारी है !!

• १० से १५ ग्राम गूलर के कोमल पत्तों को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें ! २५०ग्राम गाय के दूध की दही में थोड़ा सा सेंधानमक तथा इस चूर्ण को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खूनी बवासीर के रोग में लाभ मिलता है !!

*आंव (पेचिश):-*
• ५ से १० ग्राम गूलर की जड़ का रस सुबह-शाम चीनी मिले दूध के साथ सेवन करने से आमातिसार (पेचिश) ठीक हो जाता है !!

• बताशे में गूलर के दूध की ४-५ बूंदे डालकर रोगी को खिलाने से आमातिसार (आंव) ठीक हो जाता है !!

• गूलर के पके फल खायें इससे पेचिश रोग ठीक हो जाता है !!

• गूलर को गर्म जल में उबालकर छान लें और इसे पीसकर रोटी बना लें फिर इसे खाएं इससे पेचिश में लाभ होता है !!

*दस्त:-*
• दस्त और ग्रहणी के रोग में ३ ग्राम गूलर के पत्तों का चूर्ण और ५ दाने कालीमिर्च के थोड़े से चावल के पानी के साथ बारीक पीसकर, उसमें कालानमक और छाछ मिलाकर फिर इसे छान लें और इसे सुबह-शाम सेवन करें इससे लाभ मिलेगा !!

• गूलर की १० ग्राम पत्तियां को बारीक पीसकर ५० मिलीलीटर पानी में डालकर रोगी को पिलाने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं !!

*बच्चों का आंव:-*
• गूलर के दूध की ५-६ बूंदे चीनी के साथ बच्चे को देने से बच्चों के आंव ठीक हो जाते हैं !!

*विसूचिका:-*
• विसूचिका (हैजा) के रोगी को गूलर का रस पिलाने से रोगी को आराम मिलता है !!

*रक्तपित्त (खूनी पित्त):-*
• पके हुए हुए गूलर, गुड़ या शहद के साथ खाना चाहिए अथवा गूलर की जड़ को घिसकर चीनी के साथ खाने से लाभ मिलेगा और रक्तपित्त दोष दूर हो जाएगा !!

• हर प्रकार के रक्तपित्त में गूलर की छाल ५ ग्राम से १० ग्राम तथा उसका फल २ से ४ ग्राम तथा गूलर का दूध १० से २० मिलीलीटर की मात्रा के रूप में सेवन करने से लाभ मिलता है !!

*फोडे़:-*
• फोड़े पर गूलर का दूध लगाकर उस पर पतला कागज चिपकाने से फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है !!

*घाव:-*
• शरीर के अंगों में घाव होने पर गूलर की छाल से घाव को धोएं इससे घाव जल्दी ही भर जाते हैं !!

• गूलर के पत्तों को छांया में सूखा कर इसे पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद घाव को साफ करकें इसके ऊपर इस चूर्ण को छिड़के तथा इस चूर्ण में से ५-५ ग्राम की मात्रा सुबह तथा शाम को पानी के साथ सेवन करें इससे लाभ मिलेगा !!

• गूलर के दूध में बावची को भिगोंकर इसे पीस लें और १-२ चम्मच की मात्रा में रोजाना इससे घाव पर लेप करें इससे घाव जल्दी ही ठीक हो जाते हैं !!

• गूलर के पत्तों को पानी के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पीने से मधुमेह रोग में लाभ मिलता है !!

• गूलर के ताजे फल को खाकर ऊपर से ताजे पानी पीये इससे मधुमेह रोग में आराम मिलता है !!

*शीतला (चेचक):-*
• गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को गाय के ताजे दूध में पीसकर इसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर चेचक से पीड़ित रोगी को पिलाये इससे उसका यह रोग ठीक हो जाएगा !!

*सूजन:-*
• भिलावें की धुएं से उत्पन्न हुई सूजन को दूर करने के लिए गूलर की छाल को पीसकर इससे सूजन वाली भाग पर लेप करें !!

*गांठ:-*
• शरीर के किसी भी अंग पर गांठ होने की अवस्था में गूलर का दूध उस अंग पर लगाने से लाभ मिलता है !!

*पेशाब अधिक आना:-*
• १ चम्मच गूलर के कच्चे फलों के चूर्ण को 2 चम्मच शहद और दूध के साथ सेवन करने से पेशाब का अधिक मात्रा में आने का रोग दूर हो जाता है !!

*पेशाब के साथ खून आना:-*
• पेशाब में खून आने पर गूलर की छाल ५ ग्राम से १० ग्राम या इसके फल २ से ४ लेकर पीस लें और इसमें चीनी मिलाकर दूध के साथ खायें इससे यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है !!

*मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) होना:-*
• प्रतिदिन सुबह गूलर के २-२ पके फल रोगी को सेवन करने से मूत्रकच्छ (पेशाब की जलन) में लाभ मिलता है !!

• गूलर के ८-१० बूंद को २ बताशों में भरकर रोजाना सेवन करने से मूत्ररोग (पेशाब के रोग) तथा पेशाब करने के समय में होने वाले कष्ट तथा जलन दूर हो जाती है !!

*मधुमेह:-*
• १ चम्मच गूलर के फलों के चूर्ण को १ कप पानी के साथ दोनों समय भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से पेशाब में शर्करा आना बंद हो जाता है। इसके साथ ही गूलर के कच्चे फलों की सब्जी नियमित रूप से खाते रहना अधिक लाभकारी होता है ! मधुमेह रोग ठीक हो जाने के बाद इसका सेवन करना बंद कर दें !!

*दांतों की मजबूती के लिए :-*
• गूलर की छाल के काढे़ से गरारे करते रहने से दांत और मसूड़ों के सारे रोग दूर होकर दांत मजबूत होते हैं !!

*कंठमाला (गले में गिल्टी होना):-*
• गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को पीसकर इसे मीठे या दही मिला दें और इसमें चीनी मिलाकर रोजाना १ बार सेवन करें इससे कंठमाला के रोग से मुक्ति मिलती है !!

*खांसी:-*
• रोगी को बहुत तेज खांसी आती हो तो गूलर का दूध रोगी के मुंह के तालू पर रगड़ने से आराम मिलता है !!

• गूलर के फूल, कालीमिर्च और ढाक की कोमल कली को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में ५ ग्राम शहद में मिलाकर रोजाना २-३ बार चाटने से खांसी ठीक हो जाती है !!

*नाक से खून बहना:-*
• पके गूलर में चीनी भरकर घी में तलें, इसके बाद इस पर काली मिर्च तथा इलायची के दानों का आधा-आधा ग्राम चूर्ण छिड़कर प्रतिदिन सुबह के समय में सेवन करें तथा इसके बाद बैंगन का रस मुंह पर लगाएं इससे नाक से खून गिरना बंद हो जाता है !!

• गूलर का पेड़, शाल पेड़, अर्जुन पेड़, और कुड़े के पड़े की पेड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर चटनी बना लें। इन सब चीजों का काढ़ा भी बनाकर रख लें १ इसके बाद इस चटनी तथा इससे ४ गुना ज्यादा घी और घी से ४ गुना ज्यादा काढ़े को कढ़ाही में डालकर पकाएं ! पकने पर जब घी के बराबर मात्रा रह तो इसे उतार कर छान लें ! अगर नाक पक गई हो तो इस घी को नाक पर लगाने से बहुत जल्दी आराम मिलता है !!

*रक्तस्राव (खून का बहना):-*
• नाक से, मुंह से, योनि से, गुदा से होने वाले रक्तस्राव में गूलर के दूध की १५ बूंदे १ चम्मच पानी के साथ दिन में ३ बार सेवन करने से लाभ मिलता है !!

• शरीर में कहीं से भी किसी कारण से रक्तस्राव (खून बहना) हो रहा हो तो गूलर के पत्तों का रस निकालकर वहां पर लगाएं इससे तुरन्त खून का आना बंद हो जाता है !!

• मुंह में छाले हो अथवा खून आता हो या खूनी बवासीर हो तो १ चम्मच गूलर के दूध में इतनी ही पिसी हुई मिश्री मिलाकर रोजाना खाने से रक्तस्राव (खून बहना) होना बंद हो जाता है ! तथा इसके सेवन से मुंह के छाले भी ठीक हो जाते हैं !!

*चोट लगने पर खून का बहना:-*
• गूलर के पत्तों का रस चोट लगे हुए स्थान पर लगने से खून बहना रुक जाता है !!

• गूलर के रस को रूई में भिगोकर इसे चोट पर रखकर पट्टी बांध लें इससे चोट जल्दी भरकर ठीक हो जाएगा !!

*शिशु का दुबलापन:-*
• गूलर का दूध कुछ बूंदों की मात्रा में मां या गाय-भैंस के दूध के साथ मिलाकर नियमित रूप से कुछ महीने तक रोजाना १ बार बच्चों को पिलाने से शरीर हृष्ट-पुष्ट और सुडौल बनाता है लेकिन गूलर के दूध बच्चों उम्र के अनुसार ही उपयोग में लेना चाहिए !!

*सूखा (रिकेट्स) रोग:-*
• 5 बूंद गूलर के दूध को 1 बताशे पर डालकर इसका सेवन बच्चों को कराएं इससे सूखा रोग (रिकेटस) ठीक हो जाता है !!

*बच्चों के गाल पर सूजन होना:-*
• बच्चों के गाल की सूजन को दूर करने के लिए उनके गाल पर गूलर के दूध का लेप करें इससे लाभ मिलेगा !!

*बिच्छू का जहर:-*
• जहां पर बिच्छू ने काटा हो उस स्थान पर गूलर के अंकुरों को पीसकर लगाए इससे जहर चढ़ता नहीं है और दर्द से आराम मिलता है !!

*आग से जलने पर :-*
• जलने पर गूलर की हरी पत्तियां पीसकर लेप करने से जलन दूर हो जाती है !!

• गूलर के पत्तों को पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जलन मिट जाती है और छाले के निशान भी नही पड़ते !!

*दमा:-*
• गूलर की पेड़ की छाल उतारकर छाया में सुखा लें और फिर इसे पीसकर चूर्ण बना लें और फिर इसे छानकर बोतल में भरकर ढक्कन लगाकर रख दें ! इसमें से चूर्ण का सेवन प्रतिदिन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है !!

• सितम्बर से मार्च तक की हर पूर्णमासी की रात में जितना खीर खा सकें, उतने दूध में चावल (इस खीर में अरबा चावल उत्तम माने जाते हैं) डालकर खीर बनाएं इस खीर को कांसे की थाली में डालकर फैलाकर, इस पर ढाई चम्मच गूलर की छाल का चूर्ण चारो और छिड़क दें ! खीर रात को नौ बजे तक तैयार कर लें ! इसे रात को नौ बजे से सुबह के चार बजे तक खुले स्थान पर चांदनी में रखें। सुबह चार बजे के तुरन्त बाद इसे भर पेट खा लें ! खीर खाने से पहले मंजन करके मुंह को साफ कर लें !आम के हरे पत्ते से खीर खाएं ! इसके बाद धीरे-धीरे थकान नहीं हो तब तक घूमते रहें ! इससे दमा रोग में लाभ मिलता है !!

*जिगर का रोग:-*
• १० ग्राम की मात्रा में जंगली गुलर की जड़ की छाल पीसकर गाय के मूत्र में मिला लें और इसे छानकर २५ ग्राम की मात्रा में रोजाना पीने से से यकृत वृद्धि खत्म जाती है !!

*वमन (उल्टी):-*
• गूलर के दूध की १० बूंदे सुबह और शाम दूध में मिलाकर बच्चों को पिलाने से बच्चों को उल्टी आना बंद हो जाता है !!

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नाखून सड़ना ,पेरोनिसिया ,हात पैर के नाखून सडणा/ खराब होना.

  पेरोनिसिया  हात पैर के नाखून सडणा/ खराब होना. आयुर्वेदिक  मुलेठी 50ग्राम बडी सोफ 50 ग्राम  अच्छी हळदी 50 ग्राम  नीम पत्ते चुर्ण 50 ग्राम  ...