मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

आयुर्वेदिक वटी भाग १

🌺🙏🏻🌺 *!! आयुर्वेदिक वटी भाग १ !!* 🌺🙏🏻🌺

         *!! कर्पूरादि बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* कर्पूरादि बटी के चूसने से मुँह के छाले, दाँतों के रोग, मुँह से बदबू आना, दाँतो से पस निकलना, गले के विभिन्न रोग, जिह्वा का कटना या लाल होना व शुष्क कास आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में ३ - ४ बार मुँह में रख्कर अकेले ही या मिश्री के टुकड़ों के साथ चूसें !!

           *!! कफघ्नी बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* नवीन कफ में कफघ्नी बटी का उपयोग विशेषतौर पर किया जाता है ! सर्दी, जुकाम की वजह से कफ की वृद्धि होकर ज्वर होना, सिर में दर्द, आँखें से पानी गिरना आदि लक्ष्णों में इस बटी के सेवन से उत्तम लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में २ - ३ बार चूसें या गर्म पानी के साथ लें !!

           *!! कांकायन अर्श बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* कांकायन बटी के सेवन से खूनी व बादी दोनों प्रकार की बवासीर में उत्तम लाभ प्राप्त होता है ! यह बवासीर के मस्से सूखाती है ! बवासीर में कब्ज रहने के कारण टट्टी के समय जो तकलीफ होती है ! वह मिट जाती है ! इसके अलावा मन्दाग्नि, उदरशूल, कोष्ठबद्धता, अग्निमांद्य व पांडुरोग में भी उत्तम लाभ मिलता है ! बवासीर के मूल कारणों को नष्ट करती है ! बवासीर की यह उत्तम औषधी है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ३ गोली, सुबह-शाम मट्ठा के साथ !!

             *!! एलादि बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* एलादि बटी के सेवन से रक्तपित्त, बुखार, वमन, सूखी खाँसी, जी घबराना, स्वरभेद, मुँह से खून गिरना, क्षय की खाँसी में उत्तम लाभ होता है ! यह पित्त शामक व कफदोष दूर करने वाली है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से ४ गोली, दिन भर में चूसें या दूध के साथ लें !!

           *!! अपतन्त्रकारि बटी !!*

           *!! हिस्टीरियाहर बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अपतन्त्रकारि बटी वातवाहिनी नाड़ी व मस्तिष्क पर अपना प्रभाव दिखाती है ! हिस्टीरिया रोग में यह विशेष रूप से लाभ प्रदान करती है ! यह रोग प्राय: युवावस्था में लड़कियों को काम वासना की अतृप्ति के कारण या मासिक धर्म साफ न होने से अथवा मानसिक अभिघात, चिन्ता शोक, भय आदि कारणों से होता है !!
      सामान्यत: ३० वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में इसके लक्षण अधिक पाए जाते हैं !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ गोली एक बार में देकर ऊपर से मांस्यादि क्वाथ पिलाएं ! इसी प्रकार दिन में ३ - ४ बार आवश्यकतानुसार दें !!

            *!! आदित्य बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* आदित्य बटी दीपन-पाचक और वायु शामक है व पाचक पित्त को उत्तेजित करने से अग्नि प्रदीपक भी है ! इसके सेवन से सब प्रकार के शूल, अग्निमांद्य, पेट फूलना, अजीर्ण आदि रोग दूर होते हैं ! इस गुटिका का असर वातवाहिनी नाड़ी व पाचक पित्त पर विश्रेष होता है ! किसी कारण से प्रकुपित वायु जठराग्नि को मन्द कर पाचक पित्त को कमजोर बना देता है, जिससे मन्दाग्नि व उदर में अन्य कर्इ तरह के वात संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे कि भूख न लगना, अजीर्ण, पेट भारी मालूम पड़ना, दर्द होना, आल्सय बना रहना, बद्धकोष्ठ आदि ! ऐसी दशा में इस गुटिका के सेवन से अच्छा लाभ प्राप्त होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ गोली, सुबह-शाम गर्म पानी के साथ !!

           *!! अमृतमन्जरी गुटिका !!*

*गुण व उपयोग : -* अमृतमनजरी गुटिका उत्तम दीपन-पाचन है ! इसके सेवन से अग्निमांद्य अजीर्ण, भंयकर आमवात, विसूचिका, क्षय, कीटाणुनाशक, कफदोष, आमदोष, सन्निपात आदि रोगों में उत्तम लाभ प्राप्त होता है ! इसमें मौजूद हिंगुल किटाणुनाशक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में २- ३ बार अदरक के रस और शहद के साथ या निवाए पानी के साथ !!

          *!! आमवातारि बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* आमवातारि बटी के सेवन से पांडु, अरूचि, ग्रन्थिशूल, आमवात, यकृत प्लीहादर, शूल गण्डमाला, कृमि, कुष्ठ, उदर रोग, कामला, सिर दर्द, अष्ठिला, गुल्म, वातरोग, गृध्रसी, गलगण्ड, भगन्दर, बवासीर व गुदा आदि के रोगों में उत्तम लाभ प्राप्त होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ गोली, सुबह- सांय रास्नादि क्वाथ के साथ !!

           *!! आनन्ददा बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* आनन्ददा बटी बल, वीर्य व पाचक अग्नि की वृद्धि करती है ! वीर्य स्तम्भन व बल वृद्धि के लिए मलार्इ या दूध के साथ इस बटी का कुछ रोज तक नियमित रूप से आनन्ददा बटी का सेवन करने से उत्तम लाभ प्राप्त होता हैं मैथुन से एक घण्टा पूर्व एक गोली मलार्इ या दूध के साथ सेवन कर, पुरूष स्त्री के साथ इच्छानुसार रमण कर सकता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ गोली, रात में सोने से घण्टा पूर्व मलार्इ या दूध या पान के बीड़े में रखकर खाएं !!

          *!! अमृतप्रभा बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अमृतप्रभा बटी उदर रोगों, अरूचि, अर्श, पांडु रोग, अधिमान, शूल, ग्रहणी रोग में प्रभावी परिणाम देती है ! इसके सेवन से सभी प्रकार के अजीर्ण रोगों में लाीा मिलता है ! इसके सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार, प्रात:-सांय सुखोष्ण पानी के साथ !!

          *!! अमरसुन्दरी बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* उन्माद, मिर्गी, श्वास, खाँसी, बवासीर व सन्निपात में अमरसुन्दरी बटी के उपयोग से अच्छा लाभ मिलता है ! पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो, उस समय इसकी २-३ गोली गर्म पानी के साथ देने से तत्काल लाभ मिलता है ! मोती झारा में यह अच्छा लाभ प्रदान करती है, प्रसूत व सन्निपात में दशमूल क्वाथ के साथ देने पर विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से ३ गोली, गर्म पानी के साथ !!

          *!! अमरसुन्दरी बटी !!*
               *(कस्तूरीयुक्त)*

*गुण व उपयोग : -* कस्तूरीयुक्त अमरसुन्दरी बटी, अमरसुन्दरी बटी से अधिक गुणकारी व प्रभावशाली है ! उन्माद, मिर्गी, श्वास, खाँसी, बवासीर व सन्निपात में इस दवा के उपयोग से अच्छा लाभ मिलता है ! पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो, उस समय इसकी २ - ३ गोली गर्म पानी के साथ देने से तत्काल लाभ मिलता है ! मोतीझारा में यह अच्छा लाभ प्रदान करती है, प्रसूत व सन्निपात में दशमूल क्वाथ के साथ देने पर विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २० से ऊपर आयु वालों को १ से २ गोली, दिन में २ से ३ बार शुद्ध या सुखोष्ण पानी के साथ या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

         *!! अग्निवर्द्धक बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अग्निवर्द्धक बटी मन्दाग्नि, पेट फूलना, दस्त, कब्ज रहना, अरूचि, भूख न लगना, पेट में आवाज होना, खट्टी डकारें आना आदि रोगों में सेवन से उत्तम लाभ मिलता है ! इसके सेवन से खुलकर भूख लगती है ! व जठराग्नि प्रदीप्त होती है ! मुँह का बिगड़ा हुआ स्वाद इसके सेवन से ठीक हो जाता है ! पुराने अजीर्ण के उपद्रवों जैसे कि पुट का भारीपन, आंव की वृद्धि, शरीर सुस्त रहना, हृदय का भरीपन, पित्त की कमजोरी आदि लक्षण में इसके से उत्तम लाभ प्राप्त होता है ! यह पाचक रस की वृद्धि कर खुलकर भूख लगती है ! उदरशूल में गर्म पानी के साथ दो गोली लेने से तुरन्त रामबाण की तरह लाभ प्रदान करती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १-१ गोली दिन में चार बार तक गर्म पानी के साथ या सीधे चूस लें !!

        *!! अरोग्यवर्द्धिनी बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अरोग्य‌‌‌वर्द्धिनी बटी (रस) के सेवन से अन्त्र, हृदय, यकृत-प्लीहा, बस्ति, वृक्क, गर्भाशय, हिक्का आदि से संबंधित सभी रोगों में लाभ होता है ! इसके सेवन से इससे पाचक रस की उत्पत्ति होती है ! यह उत्तम पाचन, दीपन, शरीर के स्रोतों का शोधन करने वाली, हृदय को बल देने वाली, मेद को कम करने वाला व मलों की शुद्धि करने वाली है ! मेद कम करने के लिए रोगी को केवल गाय के दूध पर रखकर महामंजिष्ठादि क्वाथ के अनुपान से इसका सेवन करना चाहिए ! यही बटी वृहदन्त्र तथा लघु अन्त्र की विकृति को नष्ट करती है ! जिससे आन्त्र-विषजन्य रक्त की विकृति दूर होने से कुष्ठ आदि रोग नष्ट हो जाते हैं ! यह पुराने वृक्क- विकार में भी लाभ करती है ! प्रमेह व कब्ज में अपचन होने पर भी यह लाभ करती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ४ गोली रोगानुसार पानी, दूध, पुनर्नवादि क्वाथ या केवल पुनर्नवादि क्वाथ, दशमूल क्वाथ के साथ !!

*विशेष : -* यह बटी गर्भावस्था में, दाह, मोह, तृष्णा, भ्रम व पित्त प्रकोपयुक्त रोगी को नही देना चाहिए !!

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