शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

आयुर्वेदिक पाक/ अवलेह भाग १

🌺🙏🏻🌺 *!! आयुर्वेदिक पाक/ अवलेह भाग १ !!* 🌺🙏🏻🌺

           *!! हरिद्रा खण्ड !!*

*गुण व उपयोग : -* हरिद्रा खण्ड शीतपित्त, उदर्द, चकते, कण्डु, खुजली, ‌‌‌एग्जिमा-छाजन, जीर्णज्वर, कृमि, पांडुरोग, शाथ आदि रोगों में उत्तम लाभ करता है ! यह मृदु विरेचक भी है !!

*मात्रा व अनुपान : -*
६ से १० ग्राम, पानी के साथ !!

          *!! हरीतकी खण्ड !!*

*गुण व उपयोग : -* हरीतकी खण्ड अम्लपित्तजन्य दर्द व अम्लपित्त, अर्श, काष्ठगत विकार, वातरोग, कटिशूल में उत्तम लाभ करता है ! यह उत्तम विरेचक भी है !!

*मात्रा व अनुपान : -*
    ६ से १० ग्राम, बलानुसार गर्म दूध या पानी के साथ !!

          *!! सौभग्य शुण्ठीपाक !!*

*गुण व उपयोग : -* सौभग्य शुण्ठीपाक बल एवं आयु की वृद्धि करता है ! पुरूषों के लिए भी बल-वर्द्धक है ! स्त्रियों के लिए अमृत-तुल्य लाभकारी है ! इसके सेवन से योनिविकार, प्रदर, कष्टार्तव आदि रोग नष्ट होते हैं ! प्रसूता स्त्रियों के लिए विशेष लाभप्रद है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से २० ग्राम, दिन में दो बार !!

           *!! सुपारी पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* सुपारी पाक के सेवन से स्त्रियों की योनि से होने वाले विभिन्न प्रकार के स्राव (प्रदर) नष्ट होते हैं ! बन्ध्यत्व दोष को नष्ट करके उन्हे सन्तानोपत्ति योग्य बना देता है ! पुरूषों के शीघ्रपतन व शुक्रपतन एवं शुक्रमेह रोग में अत्यन्त गुणकारी है ! गर्भाशय को शक्ति देता है व योनि को संकुचित करता है !!
       विशेषतय: प्रसूता स्त्रियों के लिए अतिशय गुणकारी है ! इसके सेवन से प्रौढ़ा स्त्री भी कान्तियुक्त हो जाती है ! प्रदर रोग के कारण होने वाले कमर दर्द, सिर दर्द रहना, कमजोरी आदि में उत्तम लाभ करता है ! स्त्रियों में अमृततुल्य लाभ करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, सुबह-शाम, गाय के दूध के साथ !!

         *!! व्याघ्री हरीतकी !!*

*गुण व उपयोग : -* व्याघ्री हरीतकी खाँसी, श्वास रोग, बद्धकोष्ठ, गले की खराबी आदि में उत्तम लाभकारी है ! कफ व वात प्रधान रोगों में इससे विशेष लाभ होता है ! कास व श्वास रोगी के लिए यह अमृत के समान लाभ प्रदान करता है !!
*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, दिन में दो बार, पानी या दूध के साथ !!

         *!! वासाहरीतकी अवलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* वासाहरीतकी अवलेह खाँसी, क्षय, श्वास, रक्तपित्त, प्रतिश्याय, रक्तस्राव, रक्त मिश्रित दस्त, बवासीर, रक्तप्रदर, हृदय की कमजोरी, कब्ज आदि में लाभदायक है ! यह विशेष रूप से श्वास नलिका, खाँसी, कफ रोग आदि में लाभ करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम अवलेह चटाकर ऊपर से गाय का गर्म दूध पीना चाहिए !!

            *!! वासावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* वासावलेह के सेवन से खाँसी, श्वास, रक्तप्रदर, रक्तपित्त, खूनी बवासीर, रक्तमिश्रित दस्त, पुरानी कफज खाँसी, श्वास-नलिका की सूजन, न्यूमोनिया, प्लूरिसी, इन्फ्लुएन्जा के बाद की खाँसी आदि में लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, दिन में दो बार शहद या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

        *!! लऊक सपिस्ताँ !!*

*गुण व उपयोग : -* लऊक सपिस्ताँ के सेवन से कठिन से कठिन नजला, जुकाम आदि रोग शीघ्र नष्ट होते हैं ! कास-श्वास रोग में भी उत्तम ‌‌‌लाभकारी है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, ‌‌‌प्रात: शाम चाटकर ऊपर से सुखोष्ण पानी पी लें !!

          *!! मूसली पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* मूसली पाक अत्यन्त पौष्टिक, बल-वीर्य व कामशक्ति-वर्द्धक और नंपुसकता- नाशक है ! इसके सेवन से धातु- दौर्बल्य नष्ट होकर शरीर स्वस्थ, कान्तियुक्त व बलशाली बनता है ! स्त्रियों के प्रदर रोग व पुरूषों के वीर्य दोष को नष्ट करने में यह अतिउत्तम है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, दूध या पानी के साथ !!

        *!! माजनू फलासफा !!*

*गुण व उपयोग : -* माजनू फलासफा दिल, दिमाग, वातनाड़ियों व स्नायु मण्डल की कमजोरी में उत्तम लाभ प्रदान करता है ! इसके सेवन से वातरोगों में विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ५ से ६ ग्राम !!

           *!! मदनानन्द मोदक !!*

*गुण व उपयोग : -* मदनानन्द मोदक के उपयोग से बल- वीर्य की वृद्धि, रति- शक्ति की वृद्धि व स्तम्भन शक्ति प्राप्त होती है ! यह अपस्मार, ज्वर, उन्माद क्षय, वातव्याधि, कासव्याधि, कासश्वास, शोथ, भगन्दर, अर्श, ग्रहणी, बहुमूत्र, प्रमेह, शिरोरोग, अरूचि व वातिक- पैतिज और कफज रोग आदि में लाभ प्रदान करता है ! यह संग्रहणी व मन्दाग्नि की उत्तम दवा है ! इसका सेवन वैद्य की देखेरख में ही करना चाहिए !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम, दूध या पानी के साथ !!

             *!! भार्गी गुड़ !!*

*गुण व उपयोग : -* भार्गी गुड़ पुराने कास- श्वास वाले रोगी के लिए अमृत के समान लाभ करता है, क्योंकि इसका प्रभाव वातवाहिनी व कफवाहिनी नाड़ियों पर विशेष होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दिन में दो बार !!

        *!! ब्राह्मी रसायन !!*

*गुण व उपयोग : -* ब्राह्मी रसायन खाँसी, दमा, क्षय, कब्जियत आदि में लाभ करती है ! इसके सेवन से शरीर व दिमाग की कमजोरी दूर हो कर आयु, बल, कान्ति व स्मरण शक्ति की वृद्धि होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० ग्राम, गाय के दूध या पानी के साथ !!

         *!! नारिकेल खण्ड पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* नारिकेल खझउ पाक के सेवन से पुरूषत्व निद्रा व बल की वद्धि होती है ! और यह अम्लपित्त, परिणामशूल, शुक्र-क्षयादि, अपचन, उदरशूल, खट्टी डकारें व क्षय आदि रोगों मे विशेष लाभकारी है ! इसके सेवन से पौरूष की बढ़ोत्तरी हो कर शरीर को बल मिलता है ! यह शीतवीर्य, स्निग्ध व पौष्टिक है ! अम्लपित्त रोग में यह विशेष लाभकारी है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दिन में दो बार दूध या पानी के साथ !!

          *!! बाहुशाल गुड़ !!*

*गुण व उपयोग : -* बाहुशाल गुड़ के सेवन से बवासीर, गुल्म, पीनस, पांडु, हलीमक, उदर रोग, मन्दाग्नि, ग्रहणी, क्षय, आमवात, संग्रहणी, प्रमेह प्रतिश्याय आदि रोगों में उत्तम लाभ मिलता है ! यह बल, मेधा व कान्तिवर्द्धक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १०- १० ग्राम, दिन में दो बार, दूध या पानी के साथ !!

          *!! बादाम पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* बादाम पाक बल, वीर्य व औज की वृद्धि करता है ! यह रस- रक्तादि धातुओं को बढ़ाकर शरीर को कान्तियुक्त बना देता है ! ध्वजभंग, नंपुसकता, स्नायु दौर्बल्य में बहुत लाभदायक है ! मस्तिष्क, हृदय की कमजोरी व शुक्र- क्षय, पित्त-विकार, नेत्र और शिरोरोग में लाभकारी है ! इसके सेवन से शरीर पुष्ट होता है ! यह सर्दियों में सेवन करने योग्य उत्तम पुष्टर्इ है ! दिमागी काम करने वाले व सिर दर्द वाले को इस पाक का सेवन अवश्य करना चाहिए !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, गाय के दूध या पानी के साथ !!

         *!! धात्री रसायन !!*

*गुण व उपयोग : -* धात्री रसायन कास, श्वास, क्षय, दुर्बलता, फेफड़ों की दुर्बलता, खाँसी, स्नायविक दुर्बलता आदि में उत्तम लाभ करता है ! यह पौष्टिक, वीर्यवर्द्धक रसायन व उत्तम बाजीकरण है ! यह आमाशय, मस्तिष्क, हृदय व आँतों को बलवान बनाता है ! एवं जठराग्नि को प्रदीप्त करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ४ से ६ ग्राम, सुबह भोजन से ३ घण्टा पूर्व गाय के दूध के साथ, रात्रि को सोने से आधा घण्टा पहले !!

          *!! दाड़िमावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* दाड़िमावलेह पित्त, क्षय, रक्तपित्त, प्यास, अतिसार, संगहणी, दुर्बलता, नेत्ररोग, शिरोरोग, दाह, अम्लपित्त, धातुस्राव, अरूचि आदि रोगों में लाभदायक है ! इसके सेवन से हृदय व मस्तिष्क को ताकत मिलती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, दिन में दो से तीन बार !!

            *!! जीवन कल्प !!*

*गुण व उपयोग : -* जीवन कल्प के सेवन से रक्ताल्पता, आल्स्य, कामला, श्वास, कास, शारीरिक क्षीणता आदि विकार नष्ट हो कर शरीर हृष्ट-पुष्ट व बलवान बनता है ! शीतकाल में इसका सेवन विशेष लाभकारी होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, आवश्यकतानुसार दूध के साथ !!

          *!! जीरकादि अवलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* जीरकादि अवलेह प्रमेह, प्रदर, ज्वर, दुर्बलता, मन्द-मन्द ज्वरांश बना रहना, भूख कम या बिल्कुल न लगना, अरूचि, श्वास, तृषा, दाह व यक्ष्मा आदि रोगों में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० ग्राम, दिन में दो बार ठण्डे पानी या दूध के साथ !!

          *!! छुहारा पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* छुहारा पाक शरीर को बल देने वाला है ! इसके सेवन से रति शक्ति में वृद्धि होती है ! व स्वप्नदोषादि रोग नष्ट होते हैं ! इससे शुक्रक्षीणता के कारण पुरूष की व रजोदोष के कारण स्त्री की कमजोरी दूर होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दूध या पानी के साथ !!

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