गुरुवार, 2 नवंबर 2023

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना) --बड़ी हरड का छिलका चुरण ढाई सौ ग्राम , सोडा बाइकार्ब 125 ग्राम, मिलाकर रखें । इसकी मात्रा 125 एमजी से 400 एमजी तक है, जो मैंने प्रयोग करवाई है । दिन में तीन-चार बार , गर्म पानी से देना चाहिए। इससे पूर्व की सेवन की हुई सभी औषध का प्रभाव खत्म हो जाता है । बच्चों को कम मात्रा देना चाहिए। शिवा

बुधवार, 1 नवंबर 2023

कंपवात हाथ कंम्प।

कंपवात    हाथ कंम्प।            जो हाथ कापता हो, उसका अंगूठा - मुट्ठी के अंदर दबाकर, मुट्ठी 2 मिनट कस के बांध के रखे इसी प्रकार दिन में दो-तीन बार करते रहने से , आराम महसूस होता है।  परंतु यही पूर्ण चिकित्सा नहीं है?  इसके लिए हमें अश्वगंधा घी में भूनकर , रात में सोते समय या आपके पाचन अनुसार इसे दो बार ले सकते हो , कारण यह अश्वगंधा मल को बांधता है, जिसकी मात्रा एक-एक चम्मच दूध से - दूध में बादाम तेल, अच्छे कंपनी का एक चम्मच मिलाकर पिए या बादाम को काटकर दूध में पकाकर दूध भी पी सकते हो । इससे स्नायु तंत्र की दुर्बलता कम होती है, सोते समय स्मृति सागर रस एक गोली सेवन करें ।  40 दिन के प्रयोग से , आपके हाथ कंप में काफी आराम हो सकता है  2- *संपूर्ण शरीर कंप*    यह व्याधि - मस्तिक की कमजोरी से मानी जाती है , इसमें उष्ण उपचार और शरीर पर मालिश से थोड़ा आराम मिलता है । विटामिन की पुर्ति करना चाहिए। इसकी दवा - बृहद वात चिंतामणि रस 5 ग्राम, एकांगवीर रस 5 ग्राम, महावात विद्वसन रस 5 ग्राम , यशद भस्म 5 ग्राम की 60 पुड़िया बनाकर , सुबह-शाम शहद से , इसके साथ में - भोजन बाद सारस्वतरिष्ट, अश्वगंधारिष्ट, दशमूलारिष्ट दो दो ढक्कन समान भाग पानी मिलाकर ।  *कंपवात चूर्ण* - अश्वगंधा 50 ग्राम, शतावर 50 ग्राम, बला मूल् 50 ग्राम,  चोपचीनी 50 ग्राम , सभी के बराबर कोच चूर्ण मिलाकर, भोजन बाद - एक-एक चम्मच,दुध गर्म से - यह भी अच्छी और अनुभूति दवाई मानी जाती है । शिवा

बुधवार, 15 मार्च 2023

नपुंसकता

🥦 *संजीवनी रोग समाधान पोस्ट - 20*🏥🥦

🥦 *नपुंसकता क्या है ?????*🥦


*नपुंसकता क्या है ????*

 🥙 (1) *संयोग के समय उत्तेजना तो होती है, किन्तु कठोरता का न होना या प्रारम्भ में कुछ कठोरता उत्पन्न होकर नरम हो जाना अथवा प्राकृतिक स्तम्भन शक्ति न्यून हो जाना नपुंसकता का प्रारम्भिक लक्षण है।*

🥙 (2) *सूक्ष्म चेतनता का होना और फिर शिथिल हो जाना दूसरी अवस्था का लक्षण है ।*

🥙 (3) *मैथुन की इच्छा होते हुए भी उत्तेजना का न होना या सूक्ष्म होना तीसरी अवस्था का लक्षण है ।*
🥙 (4) *कामेच्छा का न होना और उत्तेजना भी न होना नपुंसकता का अन्तिम लक्षण है।*

इस युग में थोड़े मनुष्य ऐसे हैं जो सद्विचारों और सद्चरित्रता के कारण पूर्ण स्वस्थ हो, वरना दुराचारी प्रत्येक मनुष्य नपुंसकता की किसी-न-किसी स्टेज से अवश्य गुजर रहा है। जिसका सर्व साधारण को भान नहीं होता । उनकी आंखें तब खुलती हैं, जबकि वह तृतीय या चतुर्थ अवस्था के निकट पहुंच चुकते हैं। अतएव प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि अपनी पुंसकता शक्ति और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए नियमों का पालन करे और समय पर किसी (Sexologist) यौन सम्बन्धी योग्य से परामर्श करता रहे। यदि निम्नलिखित चिन्हों में से किसी एक का लक्षण भी आप में उत्पन्न हो जाय तो तुरन्त सावधान हो जाइये और समय रहते हो उचित उपाय कीजिए ।

*नपुंसकता के चिन्ह*
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🥦(1) *जैसा कि हम पहले वर्णन कर चुके हैं कि आवश्यकता के समय उत्तेजना तो होती है किन्तु कुछ देर बाद गुप्तेन्द्रिय में शिथि लता आ जाती है, यह नपुंसकता का पूर्व रूप है ।*

🥦(2) *किसी स्त्री विशेष से सम्भोग करने में तो उत्तेजना होती है। किन्तु अन्य स्थान पर वह मिट जाती है। यह भी नपुंसकता का प्रारम्भिक चिन्ह है।*

🥦(3) *पुरुष का अंधकार या प्रकाश में उत्तेजित होना इसके विप- रीत न होना भी एक चिन्ह है ।*

🥦(4) *किसी विशेष वेश भूषा या रूप पर ही अथवा किसी आसन विशेष के समय ही कामेच्छा का जागृत होना और उसके विप- रीत न होने से भी यही अनुमान करना चाहिये ।*

🥦(5) *किसी समय विशेष अर्थात् अर्द्धरात्रि को या मध्याह्न में ही इच्छा होना, अन्य समय न होना या सर्वथा असम्भव होना ।*

🥦(6) *प्रबल इच्छा होकर कुछ क्षण बाद नाश हो जाना*

🥦 (7) *वीर्यपात के समय किसी प्रकार के आनन्द का अनुभव न होना।*

🥦(8) *संयोग के बाद एकदम शिथिलता और निर्बलता का अनुभव होना ।*

🥦(9) *स्त्री को आलिंगन चुम्बन करने से उत्तेजना होकर तत्काल गुप्तांग से लसिका-सी निकलकर शिथिल हो जाना या वीर्यपात हो जाना अथवा कार्य से पूर्व ही डिस्चार्ज हो जाना। यह नपुंसकता का बहुत ही खराब भेद है ।*

🥦(10) *प्रमेह, स्वप्नदोष भी इसी के पूर्व रूप हैं।*

🥦(11) *स्वस्थ अवस्था की अपेक्षा मूत्र धारा छोटी हो गई हो।*

🥦(12) *क्षणिक चेतनता बढ़ गई हो (यह हस्त मैथुन वालों को प्रायः ही होती है)।*

🥦(13) *मूत्र नली के मुख को तनिक दबाकर खोलने से यदि गोला दृष्टिगोचर हो तो भी प्रारम्भ समझें ।* 

🥦(14) *यदि सूत्र के साथ कभी-कभी सूक्ष्म धागे से आते हों या आगे- पीछे धातु गिरती हो ।*

🥦(15) *सोकर प्रातःकाल उठने पर थकावट अनुभव हो तो वह भी नपुंसकता की ओर बढ़ रहा है।*

🥦(16) *यदि मूत्र त्याग के समय कपकपी का तनिक-सा अनुभव हो तो यह नपुंसकता का संदेश समझना चाहिए।*

🥦(17) *यदि गुप्तांग या अण्कोष नीचे की ओर से अन्य शरीर को अपेक्षा कुछ शीतल हों या ढलकने लगे हों तो इसी का संक्षेप कारण समझ लें ।*

🥦(18) *सबसे अन्तिम नपुंसकता की वह सबसे बुरी किस्म है, जिसमें आलिंगन, चुम्बन, मर्दन तथा मानसिक उक्साहट पर भी उत्तेजित नहीं हो सकना ।*

मोटे मोटे चिन्ह बता दिए है पोस्ट लम्बी होने के कारण पोस्ट को विराम देते है

✍️🥒 *कोई भी सदस्य मेरी पोस्ट को काट कर या परिवर्तन कर अन्य ग्रुप में भेजता है तो उसे मेरे ग्रुप से विदा होना पड़ेगा ये विशेष ध्यान रखे।*🥒✍️

🥦Note - *कोई भी नुख्सा प्रयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरुर ले कुछ अनुचित होने पर आप खुद जिम्मेदार होगे लेखक नही*
🥦 *वैद्य गुरुवेंद्र सिंह* 
🥦 *आयुर्वेदिक संजीवनी उपचार केंद्र ,ललितपुर उत्तरप्रदेश,* 🥦
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सोमवार, 13 मार्च 2023

विटामिन



🥗🥗🥗विटामिन की कमी से जनित रोग एव उपाय:-

🥗🥗विटामिन- ए
यह आँखों के लिए ,स्किन के लिए ,इम्यून सिस्टम के लिए ,हड्डियों के लिए तथा हार्ट ,फेफड़े और गुर्दों के सुचारू ढंग से काम करने के लिए जरुरी होता है।

🥗लक्षण
1. कमजोर दांत
2. थकान
3. सूखे बाल
4. सुखी त्वचा
5. साइनस
6. क्रोनिक डायरिया
7. निमोनिया
8. सर्दी – जुखाम
9. वजन में कमी
10. नींद ना आना
11. नाईट ब्लाइंडनेस (रतौंधी)

🥗उपाय
यह गाजर, पालक, ब्रोकली, हरी पत्तेदार सब्जियां, कद्दू, पपीता, आम, आदि चीजों में ज्यादा पाया जाता हैं।
नारंगी और पीले रंग वाले फल और सब्जियों में विटामिन ए सबसे अधिक होता हैं

🥗🥗विटामिन- बी-1
पाचन तंत्र के लिए , ह्रदय के लिए जरुरी है 

🥗लक्षण
1-शरीर में विटामिन बी की कमी से थकान
2-एनीमिया
3- डिप्रेशन
4-भूख न लगने 
5-मसल्स में दर्द
6-बालों का झड़ना
7-एक्जिमा 

🥗उपाय
सूखे मेवे, अंकुरित अनाज, साबूत अनाज, पालक, फल्लीयां आदि में भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं।

🥗🥗विटामिन- बी-2
रेड ब्लड-सेल्स के लिए  याददाश्त ,आँखों के लिए , त्वचा के लिए ,ताकत के लिए जरुरी है।

🥗लक्षण
1- होंठों के किनारे फट जाना।
2- जीभ का रंग लाल होना,
3-छाले निकलना
4- जीभ का सूज जाना।
5- नाक का पकना व सूजना।
6-आंख में जलन व सूजन, धुंधलापन होना।
7-कान के पीछे खुजली होना।
8-योनि की खुजली।

🥗उपाय
बादाम ,मशरूम , सोयाबीन बीज, दही , फूलगोभी आदि से मिलता है।

🥗🥗 विटामिन- बी-3
लीवर के लिए ,शरीर में टोक्सिन कम करने के लिए , सिर दर्द व कोलेस्ट्रोल ठीक करने के लिए आवश्यक होता है।

🥗लक्षण
1-इसकी कमी से पेलेग्रा
2- चिड़चिड़ापन
3- भूख
4-भ्रम
5- चक्कर आना
6- कमजोरी आदि लक्षण प्रकट होता हैं।

🥗उपाय
मूंगफली, सूरजमुखी के बीज और मशरूम है। इसके अलावा आप ब्राउन चावल, साबुत अनाज, लाल शिमला मिर्च का सेवन करके विटामिन बी3 का फायदा ले सकते हैं।

🥗🥗विटामिन- बी-5
पैंटोथीनिक एसिड, फैटी एसिड के चयापचय में सह एंजाइम के रूप में कार्य करता है , यह वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के टूटने में मदद करता है।

🥗लक्षण
1-थकान
2-नींद में गड़बड़ी
3-ख़राब समन्वय
4-भूख में कमी
5-अनिद्रा
6- कब्ज
7-मतली और उल्टी

🥗उपाय
फलियाँ,  मूँगफली, साबुत अनाज

🥗🥗विटामिन- बी-6 
बायोटिन, शरीर में कार्बोहाइड्रेट, वसा और अमीनो एसिड के चयापचय/मेटाबोलिज्म में सहायता करता है। यह भ्रूण के सामान्य विकास के लिए अत्यंत ज़रूरी है। यह बालों और नाखूनों को मजबूत बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।

🥗लक्षण
शरीर मे कमी डायबिटीज/मधुमेह को गंभीर बना सकती है। ऐसा इसलिए होता है की बायोटिन ग्लूकोज के चयापचय में कई तरह से जुड़ा होता है। इसकी कमी से ग्लूकोज़ का सही से मेटाबोलिज्म नहीं हो पाता और यह ज्यादा मात्रा में खून में मौजूद रहता है।

🥗उपाय
फल, सब्जियों, दूध में मिलता है, सूखे मेवे बादाम, मूंगफली, अखरोट, सोयाबीन बीज फलियां, साबुत अनाज, अंकुरित अनाज, फूलगोभी, केले, मक्का, टमाटर मशरूम आदि में पाया जाता है।

🥗🥗विटामिन- बी-7
ह्रदय , पाचन , इम्यून सिस्टम , मासपेशियों , नर्वस सिस्टम , दिमाग का विकास आदि के लिए महत्चपूर्ण।

🥗लक्षण
1- बालों का झड़ना, गंजापन
2- बालों का रंग उड़ना
3- चेहरे पर लाल पपड़ीदार दाने
4- नाखूनों का टूटना, परतदार होना
5- नवजात शिशुओं में बालों में पपड़ीदार पैच, रूसी 
6- शिशु की आँख, माक, गाल पर रैशेज, डायपर रैशेज
7- सूखी पपड़ीदार त्वचा
8- होठों के कोने पर दरार पड़ना
9- मोटी, सूजी हुई मैजंटा रंग की जीभ
10- आँखों में सूखापन
11- भूख न लगना, टेस्ट न आना
12- थकान, कमजोरी नींद न आना
13- डिप्रेशन
14-भ्रम
15- कमज़ोर नाखून

🥗उपाय
आलू ,केला , बादाम , काजू , पिस्ता , साबुत अनाज आदि में पाया जाता है। 

🥗🥗विटामिन- बी-9
मुख्य काम फोलिक एसिड बनांना है

🥗लक्षण
1-यह गर्भ में पल रहे बच्चे के न्यूरल ट्यूब-दोष के जोखिम को कम करने में सहायक है।
2-यह बच्चे की रीढ़ की हड्डी और नर्वस सिस्टम के गठन के लिए महत्वपूर्ण है।
3-इसकी कमी से एनीमिया हो जाता है।
4-इससे छोटे बच्चों में न्यूरोजिकल डिसॉर्डर की समस्या हो जाती है।

🥗उपाय
ब्रोकली, स्प्राउट्स, पालक, बीन्स, हरी पत्तेदार सब्जियां, मटर, चना, चुकंदर, खजूर आदि इसके अच्छे स्रोत हैं।

🥗🥗विटामिन- बी-12
इसके प्रयोग से शरीर में रिक्ट्रेशिया की वृद्धि से रोग लग जाता है। इससे संक्रामक रोगों में बहुत लाभ होता है। टाइफस फीवर पैरा-एमिनो बेंजोइक एसिड से पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

🥗लक्षण
1-विटमिन  बी-12 हमारी कोशिकाओं में पाए जाने वाले जीन डीएनए को बनाने और उनकी मरम्मत में सहायता करता है।
2-यह ब्रेन, स्पाइनल कॉर्ड और न‌र्व्स के कुछ तत्वों की रचना में भी सहायक होता है।
3-हमारी लाल रक्त कोशिशओं  का निर्माण भी इसी से होता है।
4-यह शरीर के सभी हिस्सों के लिए अलग-अलग तरह के प्रोटीन बनाने का भी काम करता है। 
5-थकान
6-डिप्रेशन
7-हाथ पैर सुन्न होना
8-साँस लेने में दिक्कत
9-याददाश्त में कमी
10-एकाग्रता में कमी
11-ह्रदय की असामान्य धड़कन
12-भूख में कमी
13-इनडाइजेशन

🥗उपाय
आलू, गाजर मूली, शलजम, चुकंदर 

🥗🥗विटामिन- सी
रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है, जिसके कारण सर्दी, खांसी व अन्य तरह के इन्फेक्शन होने का खतरा कम होता है। 

🥗लक्षण
1-कैंसर
2-दाँत समस्या
3-आखो की समस्या
4-एनीमिया
5-चेहरे पर झुर्रियां

🥗उपाय
संतरा, मौसमी, अमरुद, निम्बू, स्ट्रॉबेरी, टमाटर आदि में होता हैं। इसके अलावा ब्रोकोली, गोभी, अंकुरित अनाज, पालक, आंवला आदि में भी पाया जाता हैं। विटामिन सी सबसे ज्यादा खट्टे-फलों में भी उपस्थित होता हैं।

🥗🥗विटामिन- डी
यह शरीर में कैल्शियम लेवल को कण्ट्रोल में रखता हैं। जिससे नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली और हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद मिलती हैं। यह बॉडी के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करता हैं।

🥗लक्षण
1- मसल्स कमजोर हो जाना
2- जोड़ो में दर्द होता हैं
3-मोर्निंग सिकनेस
4-शारीरिक कमजोरी 
🥗उपाय
बेहतरीन श्रोत सूरज की रौशनी है पर्याप्त विटामिन-D  प्राप्त करने के लिए धूप की आवश्यकता होती है यह मशरूम , मक्खन ,आवंला आदि से भी प्राप्त होता है

🥗🥗विटामिन- ई 
यह त्वचा को जवां बनाये रखता हैं। स्त्री-पुरुषो की कमजोरी को दूर करता हैं। शरीर को जल्दी बुढा नही होने देता हैं। इससे स्किन सेल्स रिपेयर होते हैं, यह आँखों के लिए फायदेमंद होता हैं। कोलेस्ट्रॉल को कण्ट्रोल में रखता हैं।

1-चेहरे पर मुहांसे
2-बांझपन की समस्या

🥗उपाय
विटामिन ई सूरजमुखी के बीज, बादाम, आम, हरी मिर्च, एवोकाडो, कीवी, टमाटर, ब्रोकोली, पालक आदि में भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं।

🥗🥗विटामिन- के
शरीर में कहीं से भी होने वाले रक्तस्राव को रोकने की इसमें अदभुत क्षमता होती है, यह मजबूत हड्डियों को बनाए रखने और ऑस्टियोपोरोसिस को रोकने में भी मदद करता है।

🥗लक्षण
1- धमनियाँ सख़्त
2-हड्डियां कमजोर
3-मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव
4-मसूड़ों से व नाक से रक्त आना 

🥗उपाय
हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन इस विटामिन पाने को पाने का सबसे अच्छा तरीका है। यह हरी पत्तेदार सब्जियों, गोभी, पालक, शलजम साग, सरसों का साग, ब्रसेल्स स्प्राउट्स, ब्रोकोली आदि में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पौधों में पाया जाने वाला क्लोरोफिल उन्हें हरा रंग देता है और विटामिन K प्रदान करता है।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

कृमि रोग चिकित्सा

कृमि रोग चिकित्सा

कृमि दो प्रकार के होते है एक बाहर का एक भीतर का
बाहरवालो का जन्म दो स्थानों से होता है एक मल से दूसरे पानी से ।

*भीतर के कृमि की उत्पत्ति*- अजीर्ण में भोजन खाने से ओर डेली मीठा खाने से , खट्टा पतला खाय भोजन करके परिश्रम न करे दिन में सोए और विरुद्ध भोजन करे तो पेट में कृमि पड़ जाते है ये कृमि गिडोला आदि से 20 प्रकार के होते है।

*उदर में गिडोला(उदर कृमि)पड़ गए हो उसके लक्षण*-
ज्वर हो आवे और शरीर का रंग और का ओर हो जाये, पेट मे शूल हो, हृदय दुःखे, वमन, भृम, भोजन में अरुचि, अतिसार ये लक्षण जिसके हो तो उसके पेट मे कृमि जाने ।

*कृमि रोग को दूर करने के लक्षण*- खुरासानी अजवाइन 8 gm बासी पानी से 7 दिन ले ।

अथवा

पलास के बीज 8 gm पानी मे पीस शहद डाल के ले । 5 दिन ले

अथवा

8 gm बायविडंग पीस के 8 दिन शहद से ले ।

अथवा

वायविंडग, सेंधानमक, हरड़ की छाल जवाखार प्रत्येक सम भाग पीस के रख ले और इसमें से 8 gm सुबह खाली पेट मट्ठा यानी छाछ से ले । ये 8 दिन करे ।

*बाहर के कृमि*-

*सिर के जूं , लीख पड़ जाए उसे दूर करने का यत्न*-

धतूरे के पत्तों के रस में अथवा नागर वेल के पत्तों के रस में पारा मिला कर लेप करें तो जूं , लीख मर जाती है।

*गुदा में चुन्ने पड़े हो उसको दूर करने का उपाय*- हींग को जल में पीस कर लेप करें तो चुन्ने जाए , अथवा काहू के फूल , बायविडंग, कलिहारी की जड़, सफेद चंदन, राल , खस ,भिलावा लोवान इन सबको बराबर मिलाय धूनी दे तो चुन्ने, घर के मच्छर, खटमल, भी जाये यह बैद्य रहस्य और बैद्य विनोद में रखा है ।

डॉ. गुरुवेंद्र सिंह
9466623519
7985817113

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

*अतिसार(डायरिया)*

*अतिसार(डायरिया)*

नमस्कार दोस्तों आज मैं (डॉ गुरुवेन्द्र सिंह ) संजीवनी परिवार के सौजन्य से आज आपको अतिसार यानी डायरिया से अवगत कराऊंगा व उसके रोकथाम के उपाय भी देगें

ये रोग 4 प्रकार का होता है

1. *ब्लौस डायरिया* - इसको आयुर्वेद में पक्वातिसार कहते है इसमें पतले दस्त होते है कुछ गाढ़ा व कुछ पीला मल निकलता है

2. *म्यूकस डायरिया*- गांठ लेकर गाढ़ा व पीला मल निकलता है।

3- *सिरस डायरिया* - पानी की तरह पतले दस्त

4- *सिम्पेथेटिक डायरिया* - पतले , गाढ़े भिन्न भिन्न रंगों के दस्त होते है

*लक्षण*
*साधारणतया डायरिया में दस्त होते है , वमन होती है, स्वांस में दुर्गन्ध आती है, पेट फूल जाता है, तथा उसमें पीड़ा होती है रोगी को शीत लगता है कमजोरी आती है प्यास लगती है जीभ का रंग मैला से हो जाता है*।

*डायरिया के कारण*- अत्यंत गर्म भोजन करना मिर्च आदि तीक्ष्ण चीजें खाना , उपबास के उपरांत गर्म पदार्थ खाना , नियम पूर्वक आहार विहार का पालन करना , शोक व भय आदि डायरिया को पैदा करते है।

बालको को दूध के दाँत निकलते समय , तथा गर्भवती प्रसूता स्त्रियों को भी ये यह रोग होता है ।

*पेचिश(Dysentery)*

Dysentery को आयुर्वेद में *प्रवाहिका* और हिकमत में *पेचिश* कहा जाता है ।ये तीन प्रकार की होती है ।

*प्रथम दर्जा*- बड़ी आंतों में सूजन हो जाती है इसलिए मरोड़ा की पीड़ा होकर पतले दस्त होते है।

*दूसरा दर्जा* -खामेड्सनामक पर्दे में जख्म हो जाता है इस लिए उस समय आंव व खून के दस्त होते है ।

*तीसरा दर्जा*- वही पर्दा काला और निर्बल हो जाता है उस समय हरे पीले आदि तरह तरह के दस्त आते है।

*Dysentery के लक्षण*

इस रोग में रोगी के पेट मे सुई चुभने जैसा दर्द होता है थोड़ी थोड़ी देर में पाखाना जाना पड़ता है भूख बन्द हो जाती है प्यास लगती है पेट पर अफारा आ जाता है तथा रोगी के शरीर से दुर्गन्ध आती है ।

  यह रोग चिकित्सा करने के बाद भी बढ़ता जाए तो ये असाध्य हो जाता है पहले दर्जे में ये सुख साध्य ,दूसरे दर्जे में कष्ट साध्य और तीसरे दर्जे में असाध्य हो जाता है।

*Dysentery के कारण* - अत्यंत गर्मी, गर्म व खुश्क पदार्थ , कच्चे फल, कच्चे अन्न, तथा देर से पचने वाले पदार्थ इस रोग के प्रमुख कारण है *इसके अतिरिक्त मलेरिया से भी ये रोग पैदा होता है*

*अतिसार चिकित्सा*
अतिसार रोग में रोगी के बार बार पाखाना जाने से और किसी प्रकार का आहार न ले पाने से शरीर मे पानी की कमी हो जाती है ये जल की कमी डिहाइड्रेशन (निर्जलीकरण) जान लेवा भी सिद्ध हो सकती है इसलिए W.H.O का O.R.S घोल ले यदि ये न मिले तो इलेक्ट्रोल पाउडर का प्रयोग करे अथवा घर पर ये घोल बनाये 200 ml ताजा जल में 2 चम्मच ग्लूकोज या शक्कर ओर 2 चुटकी नमक मिला कर । रोगी को आवश्यकता नुसार थोड़ी थोड़ी देर में दे इसके अलावा रोगी को मीठी शिकंजी , नारियल पानी चावल का मांड जौ का पानी , दाल का पानी , मट्ठा अथवा फलों का रस भी दिया जा सकता है।
मामूली रोग में इस प्रयोग से ठीक हो जाते है ।

इसके अलावा -

गृहणी कपाट वटी, अमेविका tab, डायरोल tab, अतिसारांतक कैप्सूल, डायोनिल कैप्सूल, ओजस tab, दीपन tab, डायोरेक्स tab

कोई भी एक दो tab चिकित्सक की देख रेख में ले ।

व साथ मे डायडिन सीरप , अर्क कपूर, क्लोरोडिन पेय, अमृत धारा पुदीन हरा , धारा का प्रयोग चिकित्सक की देख रेख में कर सकते हो ।

Note- *रोगी के दस्त में आराम हो जाए तो एकदम न रोके क्योकि दस्त अपच के कारण होते है इससे पाचन तंत्र और शरीर की शुद्धि होती है ऐसे में दीपक और पाचक दवाएं दे* ।

*पेचिश(Dysentery)* *की चिकित्सा*

डायोरेक्स tab, डायोरेन tab, ग्रहणी कपाट वटी, डिसेन्ट्रोल tab, डायारिल पेय चिकित्सानुसार दे।

*अतिसारों में कुछ शास्त्रोक्त दवाएं*

पथ्यादि क्वाथ, पाठादि चूर्ण, शुंठी पुटपाक, समंगादि चूर्ण,गंगाधर चूर्ण, बृहतगंगाधर चूर्ण, , कुटजावलेह, बत्सकावलेह, लौह पर्पटी, स्वर्ण पर्पटी, जाति फलादि वटी, करपुरादि वटी, चंद्रकली वटी, विजयावलेह, बिल्बादि चूर्ण, अतिसार गज केसरी चूर्ण, खदिरादि वटी, अतिसारांतक चूर्ण, रसांजनादि चूर्ण आदि चिकित्सानुसार सेवन कर सकते है ।

*अतिसार कुछ घरेलू उपाय*

1- सोंठ, काली मिर्च,पीपर, हींग, वच, हरड़, और काला नमक प्रत्येक का समभाग बनाया गया चूर्ण गर्म जल से सेवन करने से आमातिसार नष्ट हो जाता है।

2 - भांगरे का रस दही से सेवन करने से समस्त प्रकार का अतिसार ठीक होता है।

3- बेलगिरी या कच्चे बेल को जल में उबालकर शहद के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से समस्त प्रकार का अतिसार और प्रवाहिका रोग नष्ट होता है।

3- बबूल की कोमल पत्तियां अधिक मात्रा में लेकर जल के साथ पीसकर पीने से अतिसार ठीक होता है।

डॉ. गुरुवेन्द्र सिंह
9466623519
7985817113

रविवार, 12 अप्रैल 2020

*घी की जानकारी कम शब्दों में*

*घी की जानकारी कम शब्दों में*

एक वर्ष रखा हुआ घी पुराना कहलाता है ।कोई कोई बैद्य लिखते है कि 10 वर्ष का रखा हुआ घी पुराना कहलाता है । 100 वर्ष और 1000 वर्ष का रखा हुआ घी *क्रौंच* कहलाता है  ।और 1000 हजार वर्ष से पुराना घी *महाघृत* कहलाता है । घी जितना अधिक पुराना होगा उतना ही गुणकारी। मूर्च्छा, कोढ़, उन्माद,मृगी,तिमिर,कान के रोग, नेत्र के रोग , सिर दर्द, सूजन, योनि - रोग, बबासीर,गोला, और पीनस रोग में *पुराना घी* बहुत ही लाभदायक होता है । यह घाव भरता है , कीड़े नष्ट करता है , त्रिदोष शामक है पुराना घी गुदा में पिचकारी लगाने और सुंघाने के काम आता है ।

*सौ बार का धोया घी*- घाव , खुजली, और फोड़े फुंसी,एवं रक्त विकार में बहुत लाभदायक है । 1000 बार धुला हुआ घी 100 बार के धुले हुए घी से भी उत्तम होता है शरीर मे दाह और मूर्च्छा में यह बड़ा अच्छा काम करता है।

*घी धोने की बिधि*- जब घी को  धोना हो तो तब घी को पीतल या काँसी की थाली में रख लो । उसे हाथ से फेंटते जाए हर बार नया पानी डालते जाए और पहले बाला पानी फेकते जाए ।  जितने बार धोना हो उतनी बार पानी से धोएं ।

*गाय का घी*- आंखों के रोग के लिए गाय का घी सबसे अधिक फायदेमंद है ।गाय का घी तागतवर ,अग्निदीपक , पचने पर मीठा , वात , पित्त, तथा कफ नाशक होता है बुद्धि , ओज, सुंदरता , कांति और तेज बढाने वाला होता है । उम्र की बृद्धि करने बाला भारी , पवित्र , सुगन्ध युक्त रसायन और रुचिकारक होता है । सब प्रकार के घृत कक अपेक्षा गाय का घी अच्छा होता है ।

*भैंस का घी*- भैस का घी मीठा ,ठंडा, कफ करने वाला तागतवर, भारी ,पचने पर मीठा होता है यह घी पित्त , खून - फिसाद और बादी को बढ़ाता है।

*बकरी का दूध*- बकरी का घी अग्निकारक , आंखों के लिए फायदेमंद , बल बढाने वाला और पचने पर चरपरा होता है । खांसी स्वांस और  क्षय रोग में बकरी का घी विशेषतः लाभदायक होता है।

*नौनी घी*- यह घी स्वाद में सब तरह के घृतों से अच्छा होता है यह घी शीतल, हल्का, अग्निदीपक, और मल को बांधने बाला होता है ।
डॉ. गुरुवेन्द्र सिंह
9466623519
7985817113

शनिवार, 11 अप्रैल 2020

*बच्चे के सिर से महिला के स्तन में चोट या सूजन हो जाये*

*बच्चे के सिर से महिला के स्तन में चोट या सूजन हो जाये*

*अगर बालक के दूध पीते पीते माथे की चोट मारने से सूजन आ गयी हो तो महिला को चाहिए कि कंघी जिससे बाल खींचते है को ऊपर से नीचे धीरे-धीरे  स्तन पर फेरती जाए और ऊपर से दूसरी औरत या स्त्री का पति या कोई भी सुहाता सुहाता गर्म जल स्तन पर डालती जाए । कंघी नीचे से ऊपर नही लानी चाहिए , बार बार ऊपर से नीचे फेरनी चाहिए और ऊपर से गर्म जल जिससे जल न जाये इतना गर्म हो डालना चाहिए तीन दिन में निश्चय ही लाभ होता है अनुभूत है ।*

*डॉ. गुरुवेन्द्र सिंह*
*9466623519*
*7985817113*

*स्त्री बाँझ होना चाहे*

*स्त्री बाँझ होना चाहे*

अगर कोई स्त्री बाँझ होना चाहे तो  बो थूहर की लकड़ी लेकर छाया में सुखा कर जला के कोयला बना ले और उसे पीस के राख कर ले फिर इस राख के बराबर शक्कर या मिश्री मिला ले और फिर 2 gm ये दवा रोज रात को ले अगर 21 दिन ले लेती है तो उसकी गर्भ धारण की शक्ति खत्म हो जाती है । और गर्भ नही ठहरता है ।

Note- काफी लोगो के निवेदन के बाद लिखा हूँ। इस प्रयोग को गलत उद्देश्य से प्रयोग करने बालों का सर्वनाश होते मैंने देखा है इसलिए कोई भी किसी की जिंदगी और परिवार के साथ न खेले नही यो भगवान फिर उसके साथ खेलेगा।

डॉ. गुरुवेंद्र सिंह
7985817113
9466623519

*हैजा या विषूचिका

*हैजा या विषूचिका*

       नमस्कार दोस्तों अब समय गर्मी का आ गया है ऐसे में हैजा और विषूचिका रोग बहुत होते है इस रोग में उल्टी और दस्त रुकने का नाम नही लेते है बहुत लोग तो  मर कर ऊपर तक पहुँच जाते है । अंग्रेजी में एक कहावत है (prevention is better than cure) यानी इलाज करने की अपेक्षा रोग का रोकना अच्छा है ।  जैसा अभी कोरोना के लिए कहा जा रहा है । इसलिए इस रोग को रोकने के उपाय करने चाहिए ।

उपाय -
नीम के पत्ते 10 gm
कपूर - .125 gm
हींग - .125 gm

इन तीनो को पीस कर इसमे 6 gm गुड़ मिला कर चना बराबर गोली बना ले ।

सेवन बिधि- रोज रात को एक गोली सोने से पहले खा ले ।

लाभ- इससे हैजा होने का खतरा नही होता है।

ये प्रयोग खुद करे व गाँव के अन्य लोगो को भी बताए व पोस्ट को आगे शेयर करें।
लेखक - *डॉ. गुरुवेंद्र सिंह*
      9466623519
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सोमवार, 6 जनवरी 2020

कर्ण रोग हर तेल

*कर्ण रोग हर तेल*

अर्क पत्र स्वरस,
धतूर पत्र स्वरस
सहजन पत्र स्वरस
लहसुन की लुग्दी प्रत्येक 50 -50ग्राम
तिल का तेल 200 ग्राम

*निर्माण विधि*- प्रथम तीनो स्वरस तेल में डालकर पकाये फिर लहसुन की लुगदी डाल कर पाक करे और ठंडा होने पर छान कर रख ले ।

उपयोग- इस तेल की 2 से 4 बून्द तक दिन में 2-3 बार डालने से कान के रोग, जैसे कर्ण शूल, कर्ण शोध, एवं कर्ण स्राव में लाभ होता है

बैद्य गुरुवेंद्र सिंह
9466623519
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*मुख्य admin संजीवनी परिवार*

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना) --बड़ी हरड का छिलका चुरण ढाई सौ ग्राम , सोडा बाइकार्ब 125 ग्राम, मिलाकर रखें । इसकी मात्रा 125 एम...