गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

आयुर्वेदिक घृत

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         *!! त्रिफला घृत !!*

*गुण व उपयोग :-* त्रिफला घृत के सेवन से आंख की ज्योति बढ़ती है ! तथा रतौंधी, आंखों से पानी बहना, खुजली पड़ना, रक्त दृष्टि, नेत्र पीड़ा और नेत्र विकार दूर होते हैं ! त्रिफला के पूर्ण गुण होने के साथ-साथ स्निग्धता भी आती है ! और पेट साफ रहता है !!

*मात्रा व अनुपान :-* ५ से १० ग्राम प्रातः-सायं दूध के साथ !!

        *!! शतावरी घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह पौष्टिक, शीतवीर्य एवं बाजीकरण है ! इसके सेवन से रक्तपित्त, वातरक्त, शुक्र रोग, शरीर की जलन, पित्तज्वर, योनिशूल, मूत्रकृच्छ आदि रोगों में शीघ्र लाभ मिलता है ! यह शरीर को बल प्रदान करने वाला है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम, मिश्री के साथ चटाकर ऊपर से गौ-दुग्ध पिलाएं !!

      *!! महातिक्त घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* इसके सेवन से कुष्ठ, रक्तपित्त, खूनी बवासीर, विसर्प, अम्लपित्त, वातरक्त, पांडु रोग, विस्फोट, यक्ष्मा, उन्माद, कामला, पामा, कण्डु, जीर्ण ज्वर, रक्तप्रदर आदि रोगों में शीघ्र लाभ मिलता है ! चर्म रोगों में इसका इस्तेमाल विशेष रूप से किया जाता है !!

*मात्रा व अनुपान: -* ६ से १० ग्राम, गर्म पानी के साथ, दिन में दो बार !!

        *!! महाचैतस घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह उन्माद एवं अपस्मार (मिर्गी) रोग, मस्तिष्क की दुर्बलता, गलदोष, प्रतिश्याय, तृतियक और चातुर्थिक ज्वर, श्वास - कास आदि रोगों में लाभ करता है ! मस्तिष्क, शुक्राशय व गर्भाश्य को ताकत प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम, मिश्री के साथ चटाकर ऊपर से गौ-दुग्ध पिलाएं !!

       *!! बलादि घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह हृदय रोग, शूल, उर:क्षत, रक्तपित्त, खांसी आदि में लाभ करता है ! यह शरीर को बल प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, दूध या गर्म पानी में मिलाकर, दिन में दोबार !!

       *!! ब्राह्मी घृत !!*
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*गुण व अनुपान : -* यह दिमाग की कमजोरी हटाकर स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला है ! इसके सेवन से अपस्मार, उन्माद, हकलापन बोलना, बुद्धि की निर्भबलता, मनोदोष, वातरक्त एवं कुष्ठ रोग आदि में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, बराबर मिश्री के साथ देकर ऊपर से दूध पिलाएं !!

       *!! फलकल्याण घृत !!*

*गुण व अनुपान: -* यह सभी प्रकार के स्त्री रोगों में लाभदायक है !!
   इसके सेवन से गर्भाश्य की कमजोरी, बार-बार गर्भपात होना, बांझपन, रजोदोष, कमर दर्द व शरीर की कमजोरी में शीघ्र लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान: -* ६ से १० ग्राम, मिश्री मिलाकर, गाय के दूध के साथ !!

        *!! पंचतिक्त घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* इसके सेवन से कुष्ठ, वात-पित्त एवं कफज रोग, दुष्टव्रण, कृमि रोग, अर्श, ज्वर, कास, रक्त व चर्म रोग आदि में लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम, मिश्री के साथ चटाकर, ऊपर से गौ-दुग्ध पिलाएं !!

       *!! पंचगव्य घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह उन्माद एवं अपस्मार, क्षय, श्वास, पेट-दर्द, हाथ-पांव की सूजन, पेट की वायु, कब्ज, धातु क्षीणता, भगन्दर, पांडु-कामला, दमा-खांसी, हल्का बुखार आदि में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान: -* ५ से १० ग्राम, गर्म पानी के साथ !!

      *!! दूर्वादि घृत !!*

*गुण व अनुपान: -* शरीर के किसी भी अंग जैसे कान, आँख, नाक, लिंग, वृक्क आदि से रक्त निकलता हो ऐसी अवस्था में यह शीघ्र लाभ करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, बराबर मिश्री मिलाकर, दिन में दो बार !!

      *!! महात्रिफलादि घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह रक्तदृष्टि, रक्तस्राव, रतौंधी, तिमिर, आँखों में ज्यादा दर्द होना, आँखों से कम दिखार्इ पड़ना व अन्य प्रकार के नेत्ररोगों में लाभदायक है !!
     इसका विशेष उपयोग आँखों की तकलीफों में किया जाता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, बराबर मिश्री मिलाकर, दिन में दो बार !!

         *!! जात्यादि घृत !!*

              *(मरहम)*

*गुण व अनुपान : -* इसके सेवन से नाड़ीव्रण (नासूर), घाव, जले का घाव व अन्य प्रकार के गहरे घाव आदि में लगाने से लाभ मिलता है !!

          *!! चैतस घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* इसका मुख्यत: उपयोग मानसिक रोगों में किया जाता है ! यह उन्माद, रोग की प्रारम्भिक अवस्था, हिस्टीरिया, मिर्गी (अपस्मार), मूर्छा आदि रोगों में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, गर्म दूध या पानी के साथ !!

      *!! चित्रकादि घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* इसके सेवन से तिल्ली, गुल्म, सूजन, उदर रोग, बवासीर, संगहणी, पुराना अतिसार, पेट फूलना व अरूचि आदि रोगों में शीघ्र लाभ करता है ! इसके सेवन से भूख खुलकर लगती है !!

*मात्रा व अनुपान: -* ५ से १० ग्राम, गर्म पानी के साथ !!

       *!! कामदेव घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह उत्तम पौष्टिक और वाजीकरण है ! यह वीर्यक्षय, शरीर की कृशता (दुबलापन) और नपुंसकता, रक्तपित्त, क्षत-क्षीणता, कामला, वातरक्त, हलीमक, पांडु, स्वरक्षय (गला बैठ जाना), मूत्रकृच्छ, हृदय की दाह एवं पसली के दर्द को दूर करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १५ ग्राम देकर ऊपर से गाय का दूध पिलाएं !!

       *!! अशोक घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह स्त्रियों के सभी प्रकार के प्रदर रोग, कुक्षि का दर्द, योनि की पीड़ा, मन्दाग्नि, अरूचि, पांडु, कामला, कमर दर्द, दुबलापन, श्वास आदि रोगों में लाभ करता है ! यह हाथ-पांव व आँखों की जलन, भूख कम लगना, कमर दर्द, सिर दर्द व स्त्रियों के अन्य रोगों में भी लाभ प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ५ से १० ग्राम, दिन में दो बार दूध या गर्म पानी के साथ !!

        *!! कल्याण घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह उन्माद, अपस्मार, हिस्टीरीया, दिमाग की कमजोरी, तुतलाना, अग्निमांद्य, पांडु, कण्डु, जहर, सूजन, प्रमेह, कास, श्वास, ज्वर, पारी का ज्वर, वातरोग, जुकाम, वीर्य की कममी, बांझपन, बुद्धि की कमी, कमजोरी, मूत्रकृच्छ, विसर्प आदि रोगों में लाभ करता है ! यह दिमाग व गर्भाश्य को ताकत देने वाला है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ५ ग्राम !!

       *!! कासीसादि घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* इस घृत की शरीर पर मालिश करने से समस्त प्रकार के कुष्ठ, दाद, पामा, विचर्चिका, विसर्प, वातरक्त-जनित विस्फोट, सिर के फोड़े, उपदंश, नाड़ी व्रण, शोथ, भगन्दर, मकड़ी के विष-जनित फफोले आदि विकार नष्ट होते हैं !!
       यह घृत व्रणशोधक, व्रण रोपक और व्रण (फोड़ों के दागों) को मिटाकर त्वचा के वर्ण को सुधारता है !!

     *!! कुमारकल्याण घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* इसके सेवन से बल, वर्ण, रूचि, जठराग्नि, मेधा और कांति बढ़ती है ! दाँत आने के समय बालकों को इसके सेवन कराने से बिना तकलीफ के दाँत निकल आते हैं !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम, गर्म दूध में डाल कर पिलाएं व बच्चों में आयु अनुसार !!

       *!! अश्वगन्धादि घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* यह सभी प्रकार के वात रोग, संधि-षूल ( जोड़ों का दर्द ), कमर दर्द, किसी भी अंग में कमजोरी, चक्कर आना, अनिन्द्रा आदि विकारों में शीघ्र लाभ प्रदान करता है !!
       यह सभी धातुओं को पुष्ट कर पौरूष शक्ति में वृद्धि करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम, मिश्री के साथ चटाकर ऊपर से गो-दुग्ध पिलाएं !!

         *!! अर्जुन घृत !!*

*गुण व अनुपान : -* इसके सेवन से दिल की घबराहट, कमजोरी व इससे जुड़े अन्य रोग शीघ्र ठीक हो जाते हैं ! व हृदय की क्रिया को यह व्यवस्थित करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम, मिश्री के साथ चटाकर ऊपर से गो-दुग्ध पिलाएं !!

*!! इसी प्रति के साथ आयुर्वेदिक घृत प्रकरण समाप्त हुआ !!*

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