रविवार, 22 अक्तूबर 2017

आयुर्वेदिक पाक/ अवलेह भाग २

🌺🙏🏻🌺 *!! आयुर्वेदिक पाक/ अवलेह भाग २ !!* 🌺🙏🏻🌺

         *!! च्यवनप्राशावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* च्यवनप्राशावलेह शरीर को बल व स्फूर्ति प्रदान करने वाला है ! यह बल, वीर्य, कान्ति व बुद्धि को बढ़ाता है ! यह वीर्य विकार, स्वप्नदोष, राजयक्ष्मा, खाँसी, श्वास, प्यास, वातरक्त, छाती का जकड़ना, वातरोग, पित्तरोग, शुक्रदोष व मूत्रदोष में उत्तम लाभ देता है ! यह फेफड़े मजबूत करता है, दिल को ताकत देता है, पुरानी खाँसी व दमा में लाभ करता है ! इसके सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है ! यह वृद्धि व स्मरण-शक्तिवर्द्धक एवं मैथुन में आनन्द देने वाला है ! रोग के पश्चात् की दुर्बलता दूर करता है ! इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन ‘सी’ होता है ! स्त्रियों के गर्भाशय व पुरूषों के वीर्य- दोष को मिटा कर उनको सन्तान सुख देने योग्य बनाता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दिन में दो बार दूध के साथ !!

         *!! चोपचीनी पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* चोपचीनी उपदंश, व्रण, कुष्ठ, वातव्याधि, भगन्दर, धातुक्षय से उत्पन्न खाँसी, जुकाम, सूजाक व उपदंश के कारण पेदा हुर्इ रस -ग्रन्थियों की सूजन, पुराना नजला, लकवा, हाथ- पैरों में सूजन व यक्ष्मा आदि में उत्तम होता है ! यह काम शक्तिवर्द्धक, बाजीकरण करने वाला व शरीर को पुष्ट करने वाला है ! यह रक्तशोधक है व खून को साफ कर फोड़े-फुंसियों का नष्ट करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १-१ लड्डू, दिन में दो बार !!

         *!! चित्रक हरीतकी !!*

*गुण व उपयोग : -* चित्रक हरीतकी पुराने श्वास, जुकाम, खाँसी, पीनस, कृमि रोग, गुल्म, उदावर्त, अर्श, मन्दाग्नि में श्रेष्ठ लाभ करती है ! इसके सेवन काल में नाक में दो बार षड़बिन्दु तेल डालने से विशेष लाभ मिलता है ! पुराने या बिगड़े हुए जुकाम में यह बहुत ही लाभकारी है ! इसके सेवन करते समय, इसमें अभ्रक भस्म १०० मिलीग्राम मिला ली जाए तो इसके गुण और भी बढ़ जाते हैं !!

*मात्रा व अनुपान : -* ५ से ७ ग्राम, दिन में दो बार गाय के गर्म दूध के साथ !!

           *!! चन्दनादि अवलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* चन्दनादि अवलेह हृदय रोग, भ्रम, ‌‌मूर्च्छा, वमन व भंयकर का नाश करता है ! अम्लपित्त में इसे प्रवाल के भस्म चन्द्रपुटी २५० मिलीग्राम के साथ सेवन करने से विशेष लाभ मिलता है ! इससे पाचन शक्ति बढ़ती है व भूख खुलकर लगती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दिन में दो बार पानी या दूध के साथ !!

          *!! गोखरू पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* गोखरू पाक अर्श, प्रमेह, क्षय, मूत्रपिंड की सूजन, शरीर की दुर्बलता, बस्तिशोथ, शुक्रजनित व बलवर्द्धक है ! यह काम-शक्ति बढ़ाता है ! व गर्भाशय को शक्ति देता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३ से ६ ग्राम तक दूध या ठण्डे पानी के साथ !!

             *!! गुलकन्द !!*

*गुण व उपयोग : -* गुलकन्द दाह, पित्तदोष, जलन, गर्भाशय की गर्मी, आन्तरिक गर्मी बढ़ना, मासिक धर्म में अधिक रक्त आना, हाथ- पैरों में जलन व कब्ज आदि रोगों में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम !!

        *!! खमीरे गावजवान !!*

*गुण व उपयोग : -* खमीरे गावजवान भूख बढ़ाने वाला, उदर शुद्धि करने वाला, दृष्टि में लाभदायक व दिल एवं दिमाग को पुष्ट बनाने वाला है !!

*मात्रा व अनुपान :-* १० ग्राम चाँदी का वर्क मिलाकर १२० ग्राम गावजवान अर्क या ताजे पानी के साथ !!

         *!! गुलकन्द - प्रवालमिश्रित !!*

*गुण व उपयोग : -* प्रवालमिश्रित गुलकन्द सामान्य गुलकन्द से अधिक गुणकारी होता है ! यह दाह, पित्तदोष, जलन, गर्भाशय की गर्मी, आन्तरिक गर्मी बढ़ना, मासिक धर्म में अधिक रक्त आना, हाथ- पैरों में जलन व कब्ज आदि रोगों में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, पानी या दूध के साथ !!

          *!! कुष्माण्ड (खण्ड) अवलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* कुष्माण्ड खण्ड शीतप्रधान है ! यह रक्त-पित्त, क्षय, खाँसी, श्वास, छर्दि, अधिक प्यास लगना, ज्वर, रक्तपित्त आदि में उत्तम लाभ करता है ! यह बलवर्द्धक, वर्णशोधक, उर:संधान कारक, वृंहण, स्वर को तीव्र करने वाला, अतिऊत्तम रसायन है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दूध के साथ !!

         *!! कुटजावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* कुटजावलेह अतिसार, दु:साध्य संग्रहणी व प्रवाहिका (पेचिश), मरोड़ के दस्तों, दस्तों के साथ खून आना, बवासीर, रक्तपित्त, प्रमेह, कामला, पुरानी आँव आदि में रोगों में उत्तम लाभ करता है ! रक्तातिसार में इसका विशेष उपयोग किया जाता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ४ से ६ ग्राम, दिन में दो बार शहद के साथ !!

           *!! कासकण्डनावलेह !!*

*गुण व उपयोग :-* कासकण्डनावलेह पुरानी खाँसी, मन्द ज्वर, मन्दाग्नि, रक्त की कमी, कफ का जमना, छाती में दर्द आदि मेंउत्तम लाभ करता है ! इसके सेवन से छाती में जमा हुआ कफ बाहर निकलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ४ गाम, दिन में दो बार शहद या गर्म पानी के साथ !!

          *!! कामेश्वर मोदक !!*

*गुण व उपयोग : -* कामेश्वर मोदक बाजीकरण व कामाग्नि संदीपन है ! यह निर्बल पुरूषों को बल देता है ! व उर:क्षत, राजयक्ष्मा, कास, श्वास, अतिसार, अर्श, ग्रहणी, प्रमेह व श्लेष्मप्रकोप आदि व्यादियों को नष्ट करता है !!

*मात्रा व अनुपान :-* १ से ३ ग्राम, गो-दुग्ध के साथ, प्रात: काल !!

        *!! कल्याणावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* कल्याणावलेह याददाश्त बढ़ाने वाला व स्वर को कोकिल के समान बनाने वाला है ! इसका सेवन कुछ दिन तक लगातार करने से याददाश्त बढ़ती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ४ ग्राम, दिन में दो बार गोघृत के साथ !!

          *!! कंटकार्यवलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* कंटकार्यवलेह श्वास, कास, हिचकी, कफ का छाती में जमना, सूखी व गीली खाँसी आदि में लाभ प्रदान करता है ! भीतर जमे हुए कफ को बाहर निकलता है ! ज्वर में भी यह लाभकारी है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दिन में दो बार उचित अनुपान के साथ !!

          *!! एरण्ड पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* अरणड पाक लकवा, पंगुलवात, आमवात, ऊरूस्तम्भ, शिरागत वायु, कटिवात, बस्तिवात, कोष्ठगत वात, वृषणवृद्धि, सूजन, उदर शूल, अपेण्डीसाइटिस आदि रोगों में लाभदायक है ! इसके सेवन से कमजोरी दूर हो कर बलवृद्धि होती है ! स्त्रियों में दूध की मात्रा को बढ़ाता है ! इसके सेवन से पाचन शक्ति में वृद्धि होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, गर्म दूध या पानी के साथ !!

          *!! आर्द्रक पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* ‌‌‌आर्द्रक पाक अरूचि, स्मरण- शक्ति कम कमी, सूजन, ग्रहणी, दर्द, उदर रोग, श्वास, कास, स्वरभंग, गुल्म आदि रोगों में लाभ करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० से २० ग्राम, दिन में दो बार !!

          *!! आरग्वद्यावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* आरग्वद्यावलेह औषधीउत्तम अग्निप्रदीपक, वातनुलोमक व मृदुसारक है ! यह अजीर्ण, के कारण कब्जियत आदि में लाभदायक है ! इसके सेवन से पेट साफ होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ६ से १० ग्राम, दोष, काल, बल व अवस्थानुसार गर्म पानी के साथ !!

           *!! आम्रपाक !!*

*गुण व उपयोग : -* आम्रपाक क्षय, संगहणी, श्वास, रक्तपित्त, वीर्यविकार, ग्रहणी, अम्लपित्त, अरूचि, रक्तपित्त, पांडु रोग, कब्ज, संग्रहणर, शुक्र-विकार आदि रोगों में यह विशेष लाभ करता है ! यह अत्यन्त बाजीकरण, पौष्टिक, बलदायक है ! अल्पशुक्र वाले व्यक्तियों को इसके सेवन से शुक्र की वृद्धि हो कर काम शक्ति जागृत होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ ग्राम, भोजन से पहले, गो-दुग्ध या पानी के साथ !!

          *!! आमलक्याद्यवलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* आमलक्याद्यवलेह पांडु, कामला, रक्तपित्त, पित्तविकार, अम्लपित्त, अन्र्तदाह, बाह्यदाह, प्यास की अधिकता, हृदय की धड़कन बढ़ना आदि में विशेष लाभ देता है ! इसका उपयोग पांडु रोग में विशेष रूप से किया जाता है !!

*मात्रा व अनुपान: -* ६ से १० ग्राम, गोमूत्र या छाछ के साथ !!

         *!! आँवला मुरब्बा !!*

*गुण व उपयोग : -* आँवले का मुरब्बा दाह, सिर दर्द, पित्तकोप,, चक्कत, नेत्र जलन, बद्धकोष्ठ, अर्श, रक्तविकार, त्वचा दोष, प्रमेह व वीर्य के विकारों में लाभ कर शरीर को बलवान बनाता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ आँवले !!

         *!! अश्वगन्धा पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* अश्वगन्धा पाक पौष्टिक, बलवर्द्धक व अग्निप्रदीक है ! यह प्रमेह, धातु की दुर्बलता, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु आना, वात-विकार, वात के कारण दर्द आदि रोगों में विशेष लाभ करता है ! इसका असर वृक्क, शुक्राशय एवं वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० ग्राम, दिन में दो बार शहद, गो-दुग्ध या पानी के साथ !!

          *!! अव्टांगावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* अव्टांगावलेह विशेष रूप से खाँसी, श्वास, कफ ज्वर, न्यूमोनिया में कफ का न आना आदि में लाभदायक है ! इसके सेवन से जमा हुआ कफ पिघल कर बाहर आता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ ग्राम, दिन में दो बार !!

         *!! अम्लपित्तहर पाक !!*

*गुण व उपयोग : -* अम्लपित्तहर पाक में अभ्रकभस्म व लौहभस्म का सम्मिश्रण होने से यह अम्लपित्त में विशेष लाभ देता है ! यह अम्लपित्त, अरूचि, शूल, हृदय रोग, वमन, कण्ठदाह, हृदय की जलन, सिर दर्द आदि रोगों में लाभदायक है ! यह बलवर्द्धक व पौष्टिक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० ग्राम, दिन में दो बार गर्म दूध या पानी के साथ !!

        *!! अमृतभल्लातक !!*

*गुण व उपयोग : -* अमृत भल्लातक कफ, वातरोगों, जीर्ण प्रतिष्याय, पक्षाघात, कमर दर्द आदि में लाभदायक है ! यह वीर्यवर्द्धक व बाजीकरण है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १० ग्राम, दिन में दो बार !!

         *!! अमृतप्राशावलेह !!*

*गुण व उपयोग : -* अमृतप्राशावलेह खाँसी, दमा, तृषा, रक्तपित्त व शुक्रक्षय में अच्छा लाभ प्रदान करता है ! कमजोरी से मुक्ति दिलाता है ! यह उत्तम पौष्टिक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ५ से १० ग्राम, बकरी के दूध के साथ !!

        *!! अभयादि मोदक !!*

*गुण व उपयोग : -* अभयादि मोदक कब्जियत, मन्दाग्नि, विषज्वर, उदर रोग, पांडु व वातरोग आदि में लाभदायक है ! यह विरेचक है !!

*मात्रा व अनुपान: -* १ से २ गोली, दिन में दो बार ठण्डे पानी के साथ !!

        *!! अगस्त्य हरीतकी !!*

*गुण व उपयोग : -* अगस्त्य हरीतकी दमा, क्षय, खाँसी, ज्वर, अर्श, अरूचि, पीनस, ग्रहणी, बदहजमी, अपचन, हृदय व रक्तवाहिनी सिराओं की शिथिलता, संग्रहणी, अतिसार आदि रोगों में लाभदायक है ! इसके सेवन से भूख खुलकर लगती है ! यह मृदु विरेचक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* वैद्य की सलाहनुसार !!

🌺🙏🏻🌺🌿🌷🌷🌷🌿🌺🙏🏻🌺

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना) --बड़ी हरड का छिलका चुरण ढाई सौ ग्राम , सोडा बाइकार्ब 125 ग्राम, मिलाकर रखें । इसकी मात्रा 125 एम...