बुधवार, 22 अप्रैल 2020

कृमि रोग चिकित्सा

कृमि रोग चिकित्सा

कृमि दो प्रकार के होते है एक बाहर का एक भीतर का
बाहरवालो का जन्म दो स्थानों से होता है एक मल से दूसरे पानी से ।

*भीतर के कृमि की उत्पत्ति*- अजीर्ण में भोजन खाने से ओर डेली मीठा खाने से , खट्टा पतला खाय भोजन करके परिश्रम न करे दिन में सोए और विरुद्ध भोजन करे तो पेट में कृमि पड़ जाते है ये कृमि गिडोला आदि से 20 प्रकार के होते है।

*उदर में गिडोला(उदर कृमि)पड़ गए हो उसके लक्षण*-
ज्वर हो आवे और शरीर का रंग और का ओर हो जाये, पेट मे शूल हो, हृदय दुःखे, वमन, भृम, भोजन में अरुचि, अतिसार ये लक्षण जिसके हो तो उसके पेट मे कृमि जाने ।

*कृमि रोग को दूर करने के लक्षण*- खुरासानी अजवाइन 8 gm बासी पानी से 7 दिन ले ।

अथवा

पलास के बीज 8 gm पानी मे पीस शहद डाल के ले । 5 दिन ले

अथवा

8 gm बायविडंग पीस के 8 दिन शहद से ले ।

अथवा

वायविंडग, सेंधानमक, हरड़ की छाल जवाखार प्रत्येक सम भाग पीस के रख ले और इसमें से 8 gm सुबह खाली पेट मट्ठा यानी छाछ से ले । ये 8 दिन करे ।

*बाहर के कृमि*-

*सिर के जूं , लीख पड़ जाए उसे दूर करने का यत्न*-

धतूरे के पत्तों के रस में अथवा नागर वेल के पत्तों के रस में पारा मिला कर लेप करें तो जूं , लीख मर जाती है।

*गुदा में चुन्ने पड़े हो उसको दूर करने का उपाय*- हींग को जल में पीस कर लेप करें तो चुन्ने जाए , अथवा काहू के फूल , बायविडंग, कलिहारी की जड़, सफेद चंदन, राल , खस ,भिलावा लोवान इन सबको बराबर मिलाय धूनी दे तो चुन्ने, घर के मच्छर, खटमल, भी जाये यह बैद्य रहस्य और बैद्य विनोद में रखा है ।

डॉ. गुरुवेंद्र सिंह
9466623519
7985817113

बुधवार, 15 अप्रैल 2020

*अतिसार(डायरिया)*

*अतिसार(डायरिया)*

नमस्कार दोस्तों आज मैं (डॉ गुरुवेन्द्र सिंह ) संजीवनी परिवार के सौजन्य से आज आपको अतिसार यानी डायरिया से अवगत कराऊंगा व उसके रोकथाम के उपाय भी देगें

ये रोग 4 प्रकार का होता है

1. *ब्लौस डायरिया* - इसको आयुर्वेद में पक्वातिसार कहते है इसमें पतले दस्त होते है कुछ गाढ़ा व कुछ पीला मल निकलता है

2. *म्यूकस डायरिया*- गांठ लेकर गाढ़ा व पीला मल निकलता है।

3- *सिरस डायरिया* - पानी की तरह पतले दस्त

4- *सिम्पेथेटिक डायरिया* - पतले , गाढ़े भिन्न भिन्न रंगों के दस्त होते है

*लक्षण*
*साधारणतया डायरिया में दस्त होते है , वमन होती है, स्वांस में दुर्गन्ध आती है, पेट फूल जाता है, तथा उसमें पीड़ा होती है रोगी को शीत लगता है कमजोरी आती है प्यास लगती है जीभ का रंग मैला से हो जाता है*।

*डायरिया के कारण*- अत्यंत गर्म भोजन करना मिर्च आदि तीक्ष्ण चीजें खाना , उपबास के उपरांत गर्म पदार्थ खाना , नियम पूर्वक आहार विहार का पालन करना , शोक व भय आदि डायरिया को पैदा करते है।

बालको को दूध के दाँत निकलते समय , तथा गर्भवती प्रसूता स्त्रियों को भी ये यह रोग होता है ।

*पेचिश(Dysentery)*

Dysentery को आयुर्वेद में *प्रवाहिका* और हिकमत में *पेचिश* कहा जाता है ।ये तीन प्रकार की होती है ।

*प्रथम दर्जा*- बड़ी आंतों में सूजन हो जाती है इसलिए मरोड़ा की पीड़ा होकर पतले दस्त होते है।

*दूसरा दर्जा* -खामेड्सनामक पर्दे में जख्म हो जाता है इस लिए उस समय आंव व खून के दस्त होते है ।

*तीसरा दर्जा*- वही पर्दा काला और निर्बल हो जाता है उस समय हरे पीले आदि तरह तरह के दस्त आते है।

*Dysentery के लक्षण*

इस रोग में रोगी के पेट मे सुई चुभने जैसा दर्द होता है थोड़ी थोड़ी देर में पाखाना जाना पड़ता है भूख बन्द हो जाती है प्यास लगती है पेट पर अफारा आ जाता है तथा रोगी के शरीर से दुर्गन्ध आती है ।

  यह रोग चिकित्सा करने के बाद भी बढ़ता जाए तो ये असाध्य हो जाता है पहले दर्जे में ये सुख साध्य ,दूसरे दर्जे में कष्ट साध्य और तीसरे दर्जे में असाध्य हो जाता है।

*Dysentery के कारण* - अत्यंत गर्मी, गर्म व खुश्क पदार्थ , कच्चे फल, कच्चे अन्न, तथा देर से पचने वाले पदार्थ इस रोग के प्रमुख कारण है *इसके अतिरिक्त मलेरिया से भी ये रोग पैदा होता है*

*अतिसार चिकित्सा*
अतिसार रोग में रोगी के बार बार पाखाना जाने से और किसी प्रकार का आहार न ले पाने से शरीर मे पानी की कमी हो जाती है ये जल की कमी डिहाइड्रेशन (निर्जलीकरण) जान लेवा भी सिद्ध हो सकती है इसलिए W.H.O का O.R.S घोल ले यदि ये न मिले तो इलेक्ट्रोल पाउडर का प्रयोग करे अथवा घर पर ये घोल बनाये 200 ml ताजा जल में 2 चम्मच ग्लूकोज या शक्कर ओर 2 चुटकी नमक मिला कर । रोगी को आवश्यकता नुसार थोड़ी थोड़ी देर में दे इसके अलावा रोगी को मीठी शिकंजी , नारियल पानी चावल का मांड जौ का पानी , दाल का पानी , मट्ठा अथवा फलों का रस भी दिया जा सकता है।
मामूली रोग में इस प्रयोग से ठीक हो जाते है ।

इसके अलावा -

गृहणी कपाट वटी, अमेविका tab, डायरोल tab, अतिसारांतक कैप्सूल, डायोनिल कैप्सूल, ओजस tab, दीपन tab, डायोरेक्स tab

कोई भी एक दो tab चिकित्सक की देख रेख में ले ।

व साथ मे डायडिन सीरप , अर्क कपूर, क्लोरोडिन पेय, अमृत धारा पुदीन हरा , धारा का प्रयोग चिकित्सक की देख रेख में कर सकते हो ।

Note- *रोगी के दस्त में आराम हो जाए तो एकदम न रोके क्योकि दस्त अपच के कारण होते है इससे पाचन तंत्र और शरीर की शुद्धि होती है ऐसे में दीपक और पाचक दवाएं दे* ।

*पेचिश(Dysentery)* *की चिकित्सा*

डायोरेक्स tab, डायोरेन tab, ग्रहणी कपाट वटी, डिसेन्ट्रोल tab, डायारिल पेय चिकित्सानुसार दे।

*अतिसारों में कुछ शास्त्रोक्त दवाएं*

पथ्यादि क्वाथ, पाठादि चूर्ण, शुंठी पुटपाक, समंगादि चूर्ण,गंगाधर चूर्ण, बृहतगंगाधर चूर्ण, , कुटजावलेह, बत्सकावलेह, लौह पर्पटी, स्वर्ण पर्पटी, जाति फलादि वटी, करपुरादि वटी, चंद्रकली वटी, विजयावलेह, बिल्बादि चूर्ण, अतिसार गज केसरी चूर्ण, खदिरादि वटी, अतिसारांतक चूर्ण, रसांजनादि चूर्ण आदि चिकित्सानुसार सेवन कर सकते है ।

*अतिसार कुछ घरेलू उपाय*

1- सोंठ, काली मिर्च,पीपर, हींग, वच, हरड़, और काला नमक प्रत्येक का समभाग बनाया गया चूर्ण गर्म जल से सेवन करने से आमातिसार नष्ट हो जाता है।

2 - भांगरे का रस दही से सेवन करने से समस्त प्रकार का अतिसार ठीक होता है।

3- बेलगिरी या कच्चे बेल को जल में उबालकर शहद के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से समस्त प्रकार का अतिसार और प्रवाहिका रोग नष्ट होता है।

3- बबूल की कोमल पत्तियां अधिक मात्रा में लेकर जल के साथ पीसकर पीने से अतिसार ठीक होता है।

डॉ. गुरुवेन्द्र सिंह
9466623519
7985817113

रविवार, 12 अप्रैल 2020

*घी की जानकारी कम शब्दों में*

*घी की जानकारी कम शब्दों में*

एक वर्ष रखा हुआ घी पुराना कहलाता है ।कोई कोई बैद्य लिखते है कि 10 वर्ष का रखा हुआ घी पुराना कहलाता है । 100 वर्ष और 1000 वर्ष का रखा हुआ घी *क्रौंच* कहलाता है  ।और 1000 हजार वर्ष से पुराना घी *महाघृत* कहलाता है । घी जितना अधिक पुराना होगा उतना ही गुणकारी। मूर्च्छा, कोढ़, उन्माद,मृगी,तिमिर,कान के रोग, नेत्र के रोग , सिर दर्द, सूजन, योनि - रोग, बबासीर,गोला, और पीनस रोग में *पुराना घी* बहुत ही लाभदायक होता है । यह घाव भरता है , कीड़े नष्ट करता है , त्रिदोष शामक है पुराना घी गुदा में पिचकारी लगाने और सुंघाने के काम आता है ।

*सौ बार का धोया घी*- घाव , खुजली, और फोड़े फुंसी,एवं रक्त विकार में बहुत लाभदायक है । 1000 बार धुला हुआ घी 100 बार के धुले हुए घी से भी उत्तम होता है शरीर मे दाह और मूर्च्छा में यह बड़ा अच्छा काम करता है।

*घी धोने की बिधि*- जब घी को  धोना हो तो तब घी को पीतल या काँसी की थाली में रख लो । उसे हाथ से फेंटते जाए हर बार नया पानी डालते जाए और पहले बाला पानी फेकते जाए ।  जितने बार धोना हो उतनी बार पानी से धोएं ।

*गाय का घी*- आंखों के रोग के लिए गाय का घी सबसे अधिक फायदेमंद है ।गाय का घी तागतवर ,अग्निदीपक , पचने पर मीठा , वात , पित्त, तथा कफ नाशक होता है बुद्धि , ओज, सुंदरता , कांति और तेज बढाने वाला होता है । उम्र की बृद्धि करने बाला भारी , पवित्र , सुगन्ध युक्त रसायन और रुचिकारक होता है । सब प्रकार के घृत कक अपेक्षा गाय का घी अच्छा होता है ।

*भैंस का घी*- भैस का घी मीठा ,ठंडा, कफ करने वाला तागतवर, भारी ,पचने पर मीठा होता है यह घी पित्त , खून - फिसाद और बादी को बढ़ाता है।

*बकरी का दूध*- बकरी का घी अग्निकारक , आंखों के लिए फायदेमंद , बल बढाने वाला और पचने पर चरपरा होता है । खांसी स्वांस और  क्षय रोग में बकरी का घी विशेषतः लाभदायक होता है।

*नौनी घी*- यह घी स्वाद में सब तरह के घृतों से अच्छा होता है यह घी शीतल, हल्का, अग्निदीपक, और मल को बांधने बाला होता है ।
डॉ. गुरुवेन्द्र सिंह
9466623519
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शनिवार, 11 अप्रैल 2020

*बच्चे के सिर से महिला के स्तन में चोट या सूजन हो जाये*

*बच्चे के सिर से महिला के स्तन में चोट या सूजन हो जाये*

*अगर बालक के दूध पीते पीते माथे की चोट मारने से सूजन आ गयी हो तो महिला को चाहिए कि कंघी जिससे बाल खींचते है को ऊपर से नीचे धीरे-धीरे  स्तन पर फेरती जाए और ऊपर से दूसरी औरत या स्त्री का पति या कोई भी सुहाता सुहाता गर्म जल स्तन पर डालती जाए । कंघी नीचे से ऊपर नही लानी चाहिए , बार बार ऊपर से नीचे फेरनी चाहिए और ऊपर से गर्म जल जिससे जल न जाये इतना गर्म हो डालना चाहिए तीन दिन में निश्चय ही लाभ होता है अनुभूत है ।*

*डॉ. गुरुवेन्द्र सिंह*
*9466623519*
*7985817113*

*स्त्री बाँझ होना चाहे*

*स्त्री बाँझ होना चाहे*

अगर कोई स्त्री बाँझ होना चाहे तो  बो थूहर की लकड़ी लेकर छाया में सुखा कर जला के कोयला बना ले और उसे पीस के राख कर ले फिर इस राख के बराबर शक्कर या मिश्री मिला ले और फिर 2 gm ये दवा रोज रात को ले अगर 21 दिन ले लेती है तो उसकी गर्भ धारण की शक्ति खत्म हो जाती है । और गर्भ नही ठहरता है ।

Note- काफी लोगो के निवेदन के बाद लिखा हूँ। इस प्रयोग को गलत उद्देश्य से प्रयोग करने बालों का सर्वनाश होते मैंने देखा है इसलिए कोई भी किसी की जिंदगी और परिवार के साथ न खेले नही यो भगवान फिर उसके साथ खेलेगा।

डॉ. गुरुवेंद्र सिंह
7985817113
9466623519

*हैजा या विषूचिका

*हैजा या विषूचिका*

       नमस्कार दोस्तों अब समय गर्मी का आ गया है ऐसे में हैजा और विषूचिका रोग बहुत होते है इस रोग में उल्टी और दस्त रुकने का नाम नही लेते है बहुत लोग तो  मर कर ऊपर तक पहुँच जाते है । अंग्रेजी में एक कहावत है (prevention is better than cure) यानी इलाज करने की अपेक्षा रोग का रोकना अच्छा है ।  जैसा अभी कोरोना के लिए कहा जा रहा है । इसलिए इस रोग को रोकने के उपाय करने चाहिए ।

उपाय -
नीम के पत्ते 10 gm
कपूर - .125 gm
हींग - .125 gm

इन तीनो को पीस कर इसमे 6 gm गुड़ मिला कर चना बराबर गोली बना ले ।

सेवन बिधि- रोज रात को एक गोली सोने से पहले खा ले ।

लाभ- इससे हैजा होने का खतरा नही होता है।

ये प्रयोग खुद करे व गाँव के अन्य लोगो को भी बताए व पोस्ट को आगे शेयर करें।
लेखक - *डॉ. गुरुवेंद्र सिंह*
      9466623519
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*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना) --बड़ी हरड का छिलका चुरण ढाई सौ ग्राम , सोडा बाइकार्ब 125 ग्राम, मिलाकर रखें । इसकी मात्रा 125 एम...