मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

आयुर्वेदिक वटी भाग १

🌺🙏🏻🌺 *!! आयुर्वेदिक वटी भाग १ !!* 🌺🙏🏻🌺

         *!! कर्पूरादि बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* कर्पूरादि बटी के चूसने से मुँह के छाले, दाँतों के रोग, मुँह से बदबू आना, दाँतो से पस निकलना, गले के विभिन्न रोग, जिह्वा का कटना या लाल होना व शुष्क कास आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में ३ - ४ बार मुँह में रख्कर अकेले ही या मिश्री के टुकड़ों के साथ चूसें !!

           *!! कफघ्नी बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* नवीन कफ में कफघ्नी बटी का उपयोग विशेषतौर पर किया जाता है ! सर्दी, जुकाम की वजह से कफ की वृद्धि होकर ज्वर होना, सिर में दर्द, आँखें से पानी गिरना आदि लक्ष्णों में इस बटी के सेवन से उत्तम लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में २ - ३ बार चूसें या गर्म पानी के साथ लें !!

           *!! कांकायन अर्श बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* कांकायन बटी के सेवन से खूनी व बादी दोनों प्रकार की बवासीर में उत्तम लाभ प्राप्त होता है ! यह बवासीर के मस्से सूखाती है ! बवासीर में कब्ज रहने के कारण टट्टी के समय जो तकलीफ होती है ! वह मिट जाती है ! इसके अलावा मन्दाग्नि, उदरशूल, कोष्ठबद्धता, अग्निमांद्य व पांडुरोग में भी उत्तम लाभ मिलता है ! बवासीर के मूल कारणों को नष्ट करती है ! बवासीर की यह उत्तम औषधी है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ३ गोली, सुबह-शाम मट्ठा के साथ !!

             *!! एलादि बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* एलादि बटी के सेवन से रक्तपित्त, बुखार, वमन, सूखी खाँसी, जी घबराना, स्वरभेद, मुँह से खून गिरना, क्षय की खाँसी में उत्तम लाभ होता है ! यह पित्त शामक व कफदोष दूर करने वाली है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से ४ गोली, दिन भर में चूसें या दूध के साथ लें !!

           *!! अपतन्त्रकारि बटी !!*

           *!! हिस्टीरियाहर बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अपतन्त्रकारि बटी वातवाहिनी नाड़ी व मस्तिष्क पर अपना प्रभाव दिखाती है ! हिस्टीरिया रोग में यह विशेष रूप से लाभ प्रदान करती है ! यह रोग प्राय: युवावस्था में लड़कियों को काम वासना की अतृप्ति के कारण या मासिक धर्म साफ न होने से अथवा मानसिक अभिघात, चिन्ता शोक, भय आदि कारणों से होता है !!
      सामान्यत: ३० वर्ष से कम उम्र की लड़कियों में इसके लक्षण अधिक पाए जाते हैं !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ गोली एक बार में देकर ऊपर से मांस्यादि क्वाथ पिलाएं ! इसी प्रकार दिन में ३ - ४ बार आवश्यकतानुसार दें !!

            *!! आदित्य बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* आदित्य बटी दीपन-पाचक और वायु शामक है व पाचक पित्त को उत्तेजित करने से अग्नि प्रदीपक भी है ! इसके सेवन से सब प्रकार के शूल, अग्निमांद्य, पेट फूलना, अजीर्ण आदि रोग दूर होते हैं ! इस गुटिका का असर वातवाहिनी नाड़ी व पाचक पित्त पर विश्रेष होता है ! किसी कारण से प्रकुपित वायु जठराग्नि को मन्द कर पाचक पित्त को कमजोर बना देता है, जिससे मन्दाग्नि व उदर में अन्य कर्इ तरह के वात संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे कि भूख न लगना, अजीर्ण, पेट भारी मालूम पड़ना, दर्द होना, आल्सय बना रहना, बद्धकोष्ठ आदि ! ऐसी दशा में इस गुटिका के सेवन से अच्छा लाभ प्राप्त होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ गोली, सुबह-शाम गर्म पानी के साथ !!

           *!! अमृतमन्जरी गुटिका !!*

*गुण व उपयोग : -* अमृतमनजरी गुटिका उत्तम दीपन-पाचन है ! इसके सेवन से अग्निमांद्य अजीर्ण, भंयकर आमवात, विसूचिका, क्षय, कीटाणुनाशक, कफदोष, आमदोष, सन्निपात आदि रोगों में उत्तम लाभ प्राप्त होता है ! इसमें मौजूद हिंगुल किटाणुनाशक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में २- ३ बार अदरक के रस और शहद के साथ या निवाए पानी के साथ !!

          *!! आमवातारि बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* आमवातारि बटी के सेवन से पांडु, अरूचि, ग्रन्थिशूल, आमवात, यकृत प्लीहादर, शूल गण्डमाला, कृमि, कुष्ठ, उदर रोग, कामला, सिर दर्द, अष्ठिला, गुल्म, वातरोग, गृध्रसी, गलगण्ड, भगन्दर, बवासीर व गुदा आदि के रोगों में उत्तम लाभ प्राप्त होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ गोली, सुबह- सांय रास्नादि क्वाथ के साथ !!

           *!! आनन्ददा बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* आनन्ददा बटी बल, वीर्य व पाचक अग्नि की वृद्धि करती है ! वीर्य स्तम्भन व बल वृद्धि के लिए मलार्इ या दूध के साथ इस बटी का कुछ रोज तक नियमित रूप से आनन्ददा बटी का सेवन करने से उत्तम लाभ प्राप्त होता हैं मैथुन से एक घण्टा पूर्व एक गोली मलार्इ या दूध के साथ सेवन कर, पुरूष स्त्री के साथ इच्छानुसार रमण कर सकता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ गोली, रात में सोने से घण्टा पूर्व मलार्इ या दूध या पान के बीड़े में रखकर खाएं !!

          *!! अमृतप्रभा बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अमृतप्रभा बटी उदर रोगों, अरूचि, अर्श, पांडु रोग, अधिमान, शूल, ग्रहणी रोग में प्रभावी परिणाम देती है ! इसके सेवन से सभी प्रकार के अजीर्ण रोगों में लाीा मिलता है ! इसके सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार, प्रात:-सांय सुखोष्ण पानी के साथ !!

          *!! अमरसुन्दरी बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* उन्माद, मिर्गी, श्वास, खाँसी, बवासीर व सन्निपात में अमरसुन्दरी बटी के उपयोग से अच्छा लाभ मिलता है ! पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो, उस समय इसकी २-३ गोली गर्म पानी के साथ देने से तत्काल लाभ मिलता है ! मोती झारा में यह अच्छा लाभ प्रदान करती है, प्रसूत व सन्निपात में दशमूल क्वाथ के साथ देने पर विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से ३ गोली, गर्म पानी के साथ !!

          *!! अमरसुन्दरी बटी !!*
               *(कस्तूरीयुक्त)*

*गुण व उपयोग : -* कस्तूरीयुक्त अमरसुन्दरी बटी, अमरसुन्दरी बटी से अधिक गुणकारी व प्रभावशाली है ! उन्माद, मिर्गी, श्वास, खाँसी, बवासीर व सन्निपात में इस दवा के उपयोग से अच्छा लाभ मिलता है ! पेट में वायु भर जाने से पेट फूल जाता हो, उस समय इसकी २ - ३ गोली गर्म पानी के साथ देने से तत्काल लाभ मिलता है ! मोतीझारा में यह अच्छा लाभ प्रदान करती है, प्रसूत व सन्निपात में दशमूल क्वाथ के साथ देने पर विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २० से ऊपर आयु वालों को १ से २ गोली, दिन में २ से ३ बार शुद्ध या सुखोष्ण पानी के साथ या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

         *!! अग्निवर्द्धक बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अग्निवर्द्धक बटी मन्दाग्नि, पेट फूलना, दस्त, कब्ज रहना, अरूचि, भूख न लगना, पेट में आवाज होना, खट्टी डकारें आना आदि रोगों में सेवन से उत्तम लाभ मिलता है ! इसके सेवन से खुलकर भूख लगती है ! व जठराग्नि प्रदीप्त होती है ! मुँह का बिगड़ा हुआ स्वाद इसके सेवन से ठीक हो जाता है ! पुराने अजीर्ण के उपद्रवों जैसे कि पुट का भारीपन, आंव की वृद्धि, शरीर सुस्त रहना, हृदय का भरीपन, पित्त की कमजोरी आदि लक्षण में इसके से उत्तम लाभ प्राप्त होता है ! यह पाचक रस की वृद्धि कर खुलकर भूख लगती है ! उदरशूल में गर्म पानी के साथ दो गोली लेने से तुरन्त रामबाण की तरह लाभ प्रदान करती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १-१ गोली दिन में चार बार तक गर्म पानी के साथ या सीधे चूस लें !!

        *!! अरोग्यवर्द्धिनी बटी !!*

*गुण व उपयोग : -* अरोग्य‌‌‌वर्द्धिनी बटी (रस) के सेवन से अन्त्र, हृदय, यकृत-प्लीहा, बस्ति, वृक्क, गर्भाशय, हिक्का आदि से संबंधित सभी रोगों में लाभ होता है ! इसके सेवन से इससे पाचक रस की उत्पत्ति होती है ! यह उत्तम पाचन, दीपन, शरीर के स्रोतों का शोधन करने वाली, हृदय को बल देने वाली, मेद को कम करने वाला व मलों की शुद्धि करने वाली है ! मेद कम करने के लिए रोगी को केवल गाय के दूध पर रखकर महामंजिष्ठादि क्वाथ के अनुपान से इसका सेवन करना चाहिए ! यही बटी वृहदन्त्र तथा लघु अन्त्र की विकृति को नष्ट करती है ! जिससे आन्त्र-विषजन्य रक्त की विकृति दूर होने से कुष्ठ आदि रोग नष्ट हो जाते हैं ! यह पुराने वृक्क- विकार में भी लाभ करती है ! प्रमेह व कब्ज में अपचन होने पर भी यह लाभ करती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ४ गोली रोगानुसार पानी, दूध, पुनर्नवादि क्वाथ या केवल पुनर्नवादि क्वाथ, दशमूल क्वाथ के साथ !!

*विशेष : -* यह बटी गर्भावस्था में, दाह, मोह, तृष्णा, भ्रम व पित्त प्रकोपयुक्त रोगी को नही देना चाहिए !!

बिंदु घृत

🌺🙏🏻🌺 *!! बिंदु घृत !!* 🌺🙏🏻🌺

*पेट का कचरा की सफाई/ दस्त लाने के लिए !*

             *!! प्रयुक्त सामग्री !!*
√ आक का दूध ८ तोले, थूहर (सेहुड़) का दूथ २४ तोले , और निसोथ , हरड़ , कबीला, दन्ती, विष्णुकांता, चीता, पीपर, अमलतास का गूदा, शंखाहूली , नीलिनी  सब ४/४ तोले ! इन सबको पानी के साथ पीसकर लुगदी कर लें !!

     *बिंदु घृत बनाने की विधि !!*

सबसे पहले एक बर्तन पर एक सेर गोघृत और लुगदी और चार सेर पानी डालकर मंद आग पर पकाएं ! जब सारा पानी जल जाये व घी शेष रहे तब उतार कर छान लें व कांच के बर्तन में घी को सुरक्षित करें व नाम लिख दें !!

      *!! मात्रा व सेवन विधि !!*

इस बिन्दु घृत को अत्यंत दूषित कोठे (उदर ) / सूजनयुक्त पेट, आठो प्रकार के उदर रोग , दुष्टगुल्म , व भगन्दर आदि रोगों में प्रयुक्त करना चाहिए !

       इस बिन्दु घृत की मात्रा एक बूंद की है ! इस घी की जितनी बूंदे पी जाती हैं ! उतने ही दस्त होते हैं !! कहते हैं कि इस घृत को पेट पर लगाने मात्र से दस्त होने लगते हैं ! वैदक शास्त्र में यह घृत अनेक जगह लिखा है व विधि कुछ भिन्न है !! यह घृत उदर के अनेक विकारों को शान्त करता है !!

🌺🙏🏻🌺🌿🌷🌷🌷🌿🌺🙏🏻🌺

नारास घृत

🌺🙏🏻🌺 *!! नारास घृत !!* 🌺🙏🏻🌺

      *विरेचन / जुलाब के लिए !!*

            *!! प्रयुक्त सामग्री !!*
√ थूहर का दूध, दंती, हरड़ , बहेड़ा, आंवला, बायविडंग, कटेरी की जड़, निशोथ और चीते की जड़ की छाल, सब एक एक तोला , सबको पानी के साथ सिलपर घोटकर लुगदी बना लें !!

          *घृत बनाने की विधि !!*
अब उपर्युक्त लुगदी और गौघृत सोलह तोले और पानी चौंसठ तोले मिलाकर मंद आंच पर पकाये ! पानी जल जाने पर जब घृत शेष रहे तब उतार कर छान लें और जार में सुरक्षित कर लें !!

          *उपयोग विधि !!*
अब जुलाब लेने के लिए एक से दो तोला घी पीकर ऊपर से गरम जल पीना चाहिए ! दस्त हो जाने पर योग्य पेय या योग्य रस पीना चाहिए !!
     जैसे तीर निसाने पर लगता है वैसे ही यह घृत ठीक विधि से पीने पर उदर से सभी रोंगो का नाश करता है !!

*फिर कोई भी दवा ली जायेगी तो दवा का पूर्ण लाभ प्राप्त होगा*

🌺🙏🏻🌺🌿🌷🌷🌷🌿🌺🙏🏻🌺

ह्रदयगत वायु की चिकित्सा

🌺🙏🏻🌺 *!! ह्रदयगत वायु की चिकित्सा !!*🌺🙏🏻🌺

*१ :-* सुबह सुबह ही कालीमिर्च ३ मासे व गिलोय ३ मासा लेकर पीस लो व महीन पीस लों इसको लगभग १५०मिली गरम पानी से लें ! इससे ह्रदय की वायु तुरन्त शान्त हो जाएगी !!
*परिक्षित योग है !*

*२ :-* असगन्ध ६ मासे लेकर महीन पीस लो फिर एक तोला गुड़ मे मिलाकर खा लो और ऊपर से एक कटोरी गरम जल पी लें इससे ह्रदय की वायु शान्त हो जाती है !!
*परिक्षित योग है !*

*३ :-* देवदारू ६मासे और सोंठ ६मासे इन दोनो को पीसकर छान लें और गरम जल के साथ फांकने से ह्रदय गत वायु की पीड़ा तुरंत शान्त हो जाती है !!
*परिक्षित योग है !*

🌺🙏🏻🌺🌿🌷🌷🌷🌿🌺🙏🏻🌺

!! आक / अकवन/ अकौवा

🌺🙏🏻🌺 *!! आक / अकवन/ अकौवा के कुछ प्रयोग !!* 🌺🙏🏻🌺

        आक का हर अंग दवा है ! हर भाग उपयोगी है ! यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायन हैं ! कहीं-कहीं इसे 'वानस्पतिक पारद' भी कहा गया है !!

*!! आक के कुछ कारगर प्रयोग !!*

*१ :-*  आक के पीले पत्ते पर घी चुपड कर सेंक लें व अर्क निचोड कर कान में डालने से आधा शिर दर्द जाता रहता है ! व बहरापन दूर होता है ! दाँतों और कान की पीडा शाँत हो जाती है !!

*२ :-* आक के कोमल पत्ते पर मीठा तेल लगाकर गरमकर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है !!

*३ :-* आक के पत्ते कडुवे तेल में जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है !!

*४ :-* आक के पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है ! तथा हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन पचक जाती है !!

*५ :-* आक के कोमल पत्तों के धूँआ से बवासीर शाँत होती है ! व कोमल पत्ते खाय तो ताप तिजारी रोग दूर हो जाता है !!

*६ :-* आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है ! सूजन दूर हो जाती है !!

*७ :-* आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है !!
दूध पीते बालक को माता अपनी दूध में देवे तथा मदार के फल की रूई ! रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है !!

*८ :-*  आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोवे फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाय ९ दिन में कुत्ते का विष शाँत हो जाता है ! परंतु कुत्ता काटने के दिन से ही खाये !!

*९ :-*  आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है !!
यहाँ यह ध्यान दें कि यदि आपकी बाईं आँख दुख रही है तो दाहिने पैर के अँगूठे पर व दाईं आँख दुख रही है तो बांये पैर के अँगूठे पर आक का दूध लगाना है !!
*गलती से भी आँख पर दूध न लगने पाये !!*

*१० :-* आक का दूध बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं !!

*११ :-*  जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं ! तलुओं पर लगाने से महीने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है !!

*१२ :-*  आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लकवा सीधा हो जाता है !!

*१३ :-*  आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है !!

*१४ :-*  आक की जड को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है !!

*१५ :-* आक का दूध बर्रे काटे स्थान में लगाने से दर्द नहीं होता ! चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है !!

*नोट  :-*   यह सभी प्रयोग सफेद औकौवे पर अाजमाए हुए है !!

🌺🙏🏻🌺🌿🌷🌷🌷🌿🌺🙏🏻🌺

आयुर्वेदिक लौह भाग २

🌺🙏🏻🌺 *!! आयुर्वेदिक लौह भाग २ !!* 🌺🙏🏻🌺

          *!! बालयकृदरि लौह !!*

*गुण व उपयोग :-*  बालयकृदरि लौह के सेवन से बच्चे के कष्टसाध्य रोग यकृत- प्लीहा ज्वर, विबन्ध, शोथ, पांडु, मुख के छाले, खाँसी, मुखरोग एवं उदर रोगों में उत्तम लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान: :-* १ से २ गोली, दिन में दो बार ! शहद या माँ के दूध के साथ !!

         *!! पंचामृत लौहमण्डूर !!*

*गुण व उपयोग :-* पंचामृत लौहमण्डूर कामला, अपचन,
अग्निमांद्य, शोथयुक्त जीर्ण, प्रतिश्याय, संग्रहणी रोग, वृक्कत की दुर्बलता, पांडु, जीर्णज्वर, प्लीहा वृद्धि, गुल्म, उदर रोग, यकृत वृद्धि, कास, श्वास आदि में विशेष लाभ करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार !!

           *!! वरूणाद्य लौह !!*

*गुण व उपयोग :-* वरूणाद्य लौह अश्मरी, मूत्रकृच्छ, सूजाक आदि रोगों में विशेष लाभ करता है ! इसका असर मूत्राशय व मूत्र नली और वृक्कों पर होता है !!

*मात्रा व अनुपान : :-* १ से २ ग्राम, दिन में दो बार !!

         *!! प्रदरारि लौह !!*

*गुण व उपयोग :-* प्रदरारि लौह रक्तपित्त, रक्तार्श, रजो विकार, रक्तप्रदर, कमर व कोष्ठ में दर्द होना, दुर्बलता, पेट में दर्द, मन्दाग्नि, मासिक धर्म की विकृति आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : :-* २ से ४ गोली, दिन में दो बार !!

            *!! पुनर्नवादि मण्डूर !!*

*गुण व उपयोग :-*  पुनर्नवादि मण्डूर का सूजन, पेट के दर्द, शोथ, प्लीहा वृद्धि, कृमि, बवासीर, वातरक्त, कफ, खाँसी, मन्दाग्नि, बद्धकोष्ठता, अन्न में अरूचि, मल-संचय से पेट आगे को निकलना और हाथ-पाँव व मुँह पर सूजन की विशेषता, ज्वर, दुर्बलता, रक्ताल्पता एवं आन्त्रिक क्षय में उपयोग किया जाता है ! इसके सेवन से सारे शरीर की सूजन नष्ट होती है ! इसका विशेष उपयोग शोथ में ही किया जाता है ! इसके सेवनकाल के दौरान दही व नमक का सेवन नही करना चाहिए !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ३ गोली, दिन में दो बार, शोथ रोग में गो-मूत्र के साथ !!

          *!! पिप्पल्यादि लौह !!*

*गुण व उपयोग :-*  पिप्पल्यादि लौह के सेवन से खाँसी, कफ जमना, कास, श्वास, हिचकी, वमन व प्यास की अधिकता आदि रोगों में विशेष लाभ मिलता है ! यह जमा हुआ कफ निकालने में विशेष गुणकारी है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में २ से ३ बार, शहद के साथ !!

            *!! धात्री लौह !!*

*गुण व उपयोग :-* धात्री लौह अजीर्ण, अम्लपित्त, कब्ज, पैत्तिक रोग, गले में जलन, खट्टी डकारें आना, परिणामशूल, पंक्तिशूल आदि रोगों में विशेष लाभ मिलता है ! इसके सेवन से पाचन क्रिया सुधरती है व नेत्र जयोति भी बढ़ती है ! सफेद बालों में भी यह विशेष लाभदायक है ! इसके सेवन से शारीरिक धातुओं में वृद्धि होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३७५ से ६२५ मिलीग्राम, दिन में एक से दो बार !!

              *!! प्रदरान्तक लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* प्रदरान्तक लौह मन्दाग्नि, रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर, कटि, योनि-शूल, कुक्षि, अरूचि आदि में उत्तम लाभ करता है ! इसके सेवन से मासिक धर्म नियमित एवंसाफ होता है ! पुराने एवं कष्टसाध्य प्रदर में भी यह विशेष लाभ करता हैं ! इससे गर्भाशय को ताकत मिलती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार, मिश्री, घृत व शहद के साथ !!

          *!! नवायस मण्डूर व लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* यह दीपन-पाचक व रक्तवर्द्धक है !!
इसके सेवन से शोथ, पांडुरोग, अर्श, मन्दाग्नि, उदर रोग, हृदय रोग, कृमि, भगन्दर, प्लीहा की वृद्धि, ज्वर, बच्चे का पेट बढ़ना व कमजोरी, भूख न लगना आदि रोगों में खासतौर से लाभ मिलता है ! इसके सेवन से जठराग्नि तेज होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ ग्राम, दिन में दो बार !!

          *!! त्र्यूषणादि मण्डूर !!*

*गुण व उपयोग : -* त्र्यूषणादि मण्डूर के सेवन से पांडु, कुष्ठ, शोथ, उदर रोग, उरूस्तम्भ, जी मिचलाना, हृदय की कमजोरी, नाड़ी की मंद गति, अर्श, कामला, प्रमेह, प्लीहा आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार, शहद के साथ !!

           *!! त्र्यूषणादि लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* त्र्यूषणादि लौह के सेवन से मोटापा, प्रमेह व कुष्ठ रोग आदि में उत्तम लाभ मिलता है ! यह वायुशामक व वातविकार को दूर करने वाला है ! यह शरीर में बढ़ी हुर्इ चर्बी पर विशेष लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ५०० से ७५० मिलीग्राम, दिन में दो बार, शहद के साथ !!

            *!! त्रिफला मण्डूर !!*

*गुण व उपयोग : -* त्रिफला मण्डूर के सेवन से अम्लपित्त, पांडु, कामला, हलीमक, ज्वर, शोथ, प्लीहा वृद्धि, मन्दाग्नि, कब्ज आदि रोगों में उत्तम लाभ मिलता है ! प्लीहा रोगों में इसका विशेष उपयोग किया जाता है ! इसके सेवन से शरीर में रक्त की वृद्धि भी होती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २५० से ३५० मिलीग्राम, दिन में दो बार !!

         *!! ताप्यादि लौह न. १ !!*
            *!! रौप्यभस्म युक्त !!*

*गुण व उपयोग : -* यह पांडु, कामला, स्त्रियों के मासिक धर्म की गड़बड़ी, यकृत व प्लीहा के रोग, बालको के धनुवार्त व बालग्रह, मलेरीया के बाद उत्पन्न एनीमिया, प्रमेह, शोथ् रोग, रक्त की कमी आदि रोग ठीक होते हैं ! इसके सेवन से खून की वृद्धि होने के साथ-साथ शरीर बलवान होता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २५० से ३५० मिलीग्राम, दिन में दो बार !!

              *!! तारा मण्डूर !!*

*गुण व उपयोग :-* तारामण्डूर पीलिया, कामला, शूल, हाथ-पैर व सारे शरीर में सूजन, परिणाम शूल, मन्दाग्नि, बवासीर, ग्रहणी, गुल्म, अम्लपित्त, पक्तिशूल आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ३ गोली, दिन में दो बार, ठण्डे पानी के साथ !!

           *!! त्रिफलादि लौह !!*

*गुण व उपयोग :-* त्रिफलादि लौह बल-वर्द्धक है ! इसके सेवन से आमवात, गांठों में सजन, पांडुरोग, हलीमक, रक्त की गति में बाधा, शरीर में जकड़न, कब्जियत, परिणाम शूल, शोथ व ज्वर आदि में उत्तम लाभ मिलता है ! इसके सेवन से रक्त संचालन भली प्रकार होता है ! यह प्रकुपित वात का शमन कर रक्त की पूर्ति करता है ! त्रिफल आदि की मौजूदगी के कारण यह कब्ज में भी उत्तम लाभ करता है ! आमवात में दशमूल क्वाथ के साथ विशेष लाभ प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २ से ३ गोली, दिन में दो बार !!

            *!! चन्दनादि लौह !!*

*गुण व उपयोग :-* चन्दनादि लौह सौम्य योग है ! यह विषज्वर, जीर्ण ज्वर, पाचन विकार, नेत्रदाह, सिरदर्द, पित्तजन्य विकार, यकृत रोग, प्लीहा रोग आदि में विशेष लाभदायक है ! इसके सेवन से रक्त की गति भी सामान्य हो जाती है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ५०० मिलीग्राम, दिन में दो बार शहद, मिश्री या मक्खन के साथ अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ !!

            *!! गुडूच्यादि लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* गुडूच्यादि लौह के सेवन से खुजली, फोड़े-फुंसी, वात-रक्त, शरीर में गर्मी बढ़ना, हाथ-पैरों की जलन आदि में लाभ मिलता है ! दूषित रक्त को साफ करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* २५० मिलीग्राम, दिन में दो बार दूध या शहद के साथ !!

            *!! कार्श्यहर लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* कार्श्यहर लौह बल- वीर्यवर्द्धक, अग्नि-पाचक, वृष्य व रसायन है ! इसके सेवन से शरीर में स्फूर्ति व रक्त की कमी दूर हो कर शरीर पुष्ट व बलवान बनता है ! रस-रक्तादि धातुओं के क्षय होने के कारण जो दुर्बल हो गयें हों, ऐसे मनष्यों के लिए लौह बहुत शीघ्र लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान : -* ३५० से ५०० मिलीग्राम, सुबह-शाम भांगरे के रस के साथ या शहद के साथ !!

           *!! अष्टादशांग लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* अष्टादशांग लौह पीलिया, श्वास, खाँसी, रक्तपित्त, बवासीर, संग्रहणी, आमवात, रक्त विकार, कुष्ठश् कफ, हलीमक व सूजन आदि रोगों में लाभ प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार छाछ के साथ !!

             *!! अग्निमुख लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* अग्निमुख लौह दीपन-पाचक है ! यह पांडु, शोथ, कुष्ठ रोग, तिल्ली बढ़ना, मन्दाग्नि, उदर रोग, बादी, बवासीर, आमवात आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करता है ! इसके सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होती है ! यह विशेष रूप से बवासीर व गुदा के रोगों में गुणकारी माना जाता है ! इसके सेवन से कब्जियत दूर हो कर शेष रोग नष्ट होते हैं !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार, बवासीर में जमीकन्द चूर्ण या नीम की मिंगी के चूर्ण के साथ, सूजन व पांडु रोग में पुनर्नवा रस व शहद के साथ !!

            *!! अमृतार्णव लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* अमृतार्णव लौह रक्तशोधक, दीपक, पाचक व शक्तिवर्द्धक है ! यह कोढ़, वात-रक्त, अर्श (बवासीर), फोड़ा, छोटी-छोटी फुंसियां, लाल-लाल चकते, शरीर में खुजली, उदर रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करता है ! खून साफ करने व प्रकुपित वायु के लिए इसका सेवन अत्यन्त गुणकारी है ! यह दीपन -पाचन होने के कारण वायुनाशक भी है !!

*मात्रा व अनुपान : -* १ से २ गोली, दिन में दो बार शहद के साथ !!

          *!! अम्लपित्तान्तक लौह !!*

*गुण व उपयोग : -* अम्लपित्तान्तक लौह अम्लपित्त रोग में अत्यन्त गुणकारी माना गया है ! इसके अलावा यकृत् व पित्ताशय की विकृति, यकृत् शूल, तृष्णा, मूत्रदाह, उदर शूल, पतले दस्त हाना, बच्चों को दूध की उल्टी आना, गर्भवती स्त्रियों को वमन होना, शूल रोग, पित्त की विदग्धता आदि रोगों में भी यह उत्तम लाभकारी है !!

*मात्रा व अनुपान: -* १ से २ गोली, दिन में दो बार रोगानुसार अनुपान के साथ !!

🌺🙏🏻🌺🌿🌷🌷🌷🌿🌺🙏🏻🌺

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना) --बड़ी हरड का छिलका चुरण ढाई सौ ग्राम , सोडा बाइकार्ब 125 ग्राम, मिलाकर रखें । इसकी मात्रा 125 एम...