शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

आयुर्वेदिक चूर्ण भाग १

🌺🙏🏻🌺 *!! आयुर्वेदिक चूर्ण भाग १ !!* 🌺🙏🏻🌺

            *!! वैश्वानर चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* ‌‌‌यह चूर्ण दस्त, शूल, सूजन, जोड़ों के दर्द में लाभकारी है ! ‌‌‌यह चूर्ण रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ता है !!

*संघटक -*
सेंधा नमक ,, २ भाग
अजवायन ,, २ भाग
अजमोदा ,, ३ भाग
सुंटी ,, ५ भाग
हरीतकी ,, ५ भाग

*मात्रा व अनुपान -* ‌‌‌१ से ३ ग्राम, दिन में एक या दो बार, खाना खाने के बाद या पहले !
जोड़ों के दर्द में दूध या गर्म पानी के साथ !
‌‌‌‌‌‌अपच में छाछ के साथ !
आमाश्य संवेदनशील मरीज इसे घी के साथ लें !!

            *!! व्योषादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह प्यास अरूचि, ज्वरातिसार, प्रमेह, संग्रहणी, गुल्म, प्लीहा, कामला, पांडु और शोथ आ​दि में लाभकारी है ! यह आवाज साफ
करता है ! इसके सेवन से दस्त रूकते हैं !!
*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार !!

           *!! शतपत्र्यादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह कब्ज, मुँह के छाले, अम्लपित्त व पेट की खराबी को शीघ्र नष्ट कर आंतरिक गर्मी को शांत करता है !!

*मात्रा व अनुपान -* १ से ३ ग्राम, दिन मे दो बार ठण्डे पानी के साथ !!

           *!! शतपुष्पादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से पाचक पित्त को प्रदीप्त कर पाचन क्रिया को सुधारता है ! यह पेचिश, आँव, पेट दर्द, आंतों की मरोड़ आदि में भी लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ४ ग्राम, दिन में दो बार छाछ के साथ !!

           *!! शतावर्यादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह चूर्ण पौष्टिक, श्रेष्ठ, बाजीकरण और उत्तम वीर्य-वद्​र्धक है !!
      इस चूर्ण के सेवन से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि हो कर पौरूष शक्ति बढ़ती है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार दूध के साथ !!

           *!! शान्तिवर्धक चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इस चूर्ण के सेवन से मन्दाग्नि , भूख न लगना , जी मिचलाना, अपचन, अफारा, अम्लपित्त और समस्त प्रकार के उदरशूल आदि विकार नष्ट होते हैं ! यह स्वाद में रूचिकर है !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ४ ग्राम , भोजन के बाद पानी के साथ या बिना पानी के सीधा भी खाया जा सकता है !!

          *!! शिवासार पाचन चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से अजीर्ण, कब्ज, अफारा, हिचकी, वमन, अरूचि, शूल, कृमि आदि रोग नष्ट होते हैं ! यह उदर वायु में विशेष लाभ करता है ! इसके सेवन से पेट की वायु बाहर निकलती है व उदर कृमियों को नष्ट करने वाला है ! यह चूर्ण पाचक अग्नि प्रदीपक, यकृत शक्ति वद्​र्धक और सारक है !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ४ ग्राम, दिन में दो बार भोजन के बाद हल्के गर्म पानी के साथ !!

            *!! शीतोपलादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह श्वास, खाँसी, क्षय, हाथ और पैरों की जलन, अग्निमांद्य, जिव्हा की शून्यता, पसली का दर्द, अरूचि, ज्वर, उध्​र्वगत रक्त-पित्त और नाक व मुंह से खून आना में लाभ करने वाला है ! यह छाती में जमा कफ को बाहर निकाल राहत प्रदान करता है ! इसका विशेष उपयोग खाँसी, सांस, जुकाम, ज्वर आदि में किया जाता है !!

*मात्रा व अनुपान -* २ ग्राम, दिन में दो बार शहद के साथ !!

             *!! श्रृंग्यादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में !!

*मात्रा व अनुपान -* ५०० से १००० मिलीग्राम, दिन में दो बार शहद के साथ !!

              *!! सामुद्रादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से समस्त प्रकार के उदर रोग, गुल्म रोग, अजीर्ण वायु प्रकोप, कठिन ग्रहणी रोग, दुष्ट अर्श, पांडु रोग और अति कष्टदायक भगंदर रोग नष्ट होते हैं !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ४ ग्राम, दिन में दो बार !!

             *!! सारस्वत चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* दिमाग के दोषों को दूर करता है !!
बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है ! अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक ! विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम ! इसके सेवन से उन्माद अपस्मार, मस्तिष्क की कमजोरी, स्मरण शक्ति की हीनता आदि में लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ४ ग्राम, दिन में दो बार !!

          *!! सिर दर्द नाशक चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* हल्का दस्तावर है ! बिना तकलीफ के पेट साफ करता है ! खून साफ करता है ! तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी !!
      इस चूर्ण के सेवन से पित्त और रक्तजन्य सिर दर्द में आराम होता है व निद्रा लाने वाला है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ४ ग्राम, दिन में दो बार !!

          *!! सुखविरेचन चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह कब्ज को नष्ट करने वाला है ! इसके सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होती है ! व आँव का पाचन होता है ! इससे किसी प्रकार की आंतों में जलन नही होती !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, रात को सोते समय गर्म पानी के साथ !!

              *!! सैंधवादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ३ ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से !!

              *!! हरीतकी चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* ‌‌‌हरीतकी को हरड़ भी कहते हैं ! इसमें मधुर, तिक्त और कषाय रस होता है ! हरीतकी चूर्ण के सेवन से वातिक पांडु में विशेष लाभ होता है !! हरीत की का सेवन नमक के साथ करने से कफ व शहद के साथ सेवन करने से अम्लपित्त में बहुत लाभ मिलता है ! यह भूखवद्र्धक, मुंह के छाले नाशक, कब्ज नाशक है !!

*मात्रा व अनुपान -* इसके गुणों का लाभ लेने के लिए विभिन्न ऋतुओं में इसका सेवन इस प्रकार करना चाहिए !!

🔘वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ !!
🔘शरद ऋतु में शकर के साथ !!
🔘हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ !!
🔘शिशिर ऋतु में पीपल के साथ !!
🔘वसंत ऋतु में शहद के साथ !!
🔘ग्रीष्म ऋतु में गुड़ के साथ !!

          *!! हिंग्वष्टक चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* पेट की वायु को साफ करता है ! तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है ! अजीर्ण , खट्टी डकारें आना मरोड़, ऐंठन , पेट में गुड़गुड़ाहट , पेट का फूलना , पेट का दर्द , भूख न लगना , वायु रुकना , दस्त साफ न होना , अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं ! तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ तक ४ ग्राम पानी के साथ !!

                *!! हृद्य चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से दिल की कमजोरी, अनियमित धड़कन आदि में लाभ मिलता है ! हृदय रोग के फलीभूत शरीर में सूजन आ जाने पर आरोग्यवद्​र्धनी बटी के साथ इसका सेवन करने से विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान -* १२५ से २५० मिलीग्राम , दिन में दो
बार शहद के साथ !!

             *!! हिंग्वादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह पाश्​र्वशूल, हृदय शूल, वस्तिशूल, वात-कफज, गुल्म, अफारा, ग्रहणी, अरूचि, छाती की धड़कन, श्वास, कास और स्वरभंग अर्थात आवाज बैठ जाना आदि रोगों में लाभदायक है। यह दीपक, पाचक और रेचक है !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ४ ग्राम, दिन में २ बार गर्म पानी या छाछ के साथ !!

            *!! सुखविरेचन चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह कब्ज को नष्ट करने वाला है ! इसके सेवन से जठराग्नि प्रदीप्त होती है व आँव का पाचन होता है ! इससे किसी प्रकार की आंतों में जलन नही होती !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, रात को सोते समय गर्म पानी के साथ !!

           *!! विदार्यादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह उत्तम, पौष्टिक एवं बलवीर्यवद्​र्धक योग है ! इस चूर्ण के सेवन से वीर्य-वृ​द्धि, स्तम्भन तथा कम उत्तेजना उत्पन्न होती है ! यह शीघ्र पतन को रोकता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ ग्राम, दिन में दो बार, भोजन के तीन घण्टे पहले गाय के गर्म दूध के साथ !!

            *!! विडन्गादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इस चूर्ण के उपयोग से आन्त्र कृमि जड़मूल से समाप्त हो जाते है !!

*संघटक -* वाय विडन्ग, सेन्धा नमक, शुद्ध हीन्ग, काला नमक, कबीला, बड़ी हरड, छोटी पीपल, निशोथ की जड़ की छाल को बराबर भाग लेकर महीन चूर्ण बना लें !!

*मात्रा व अनुपान -* ‌‌‌१ से ३ ग्राम, दिन में दो-तीन बार, गुनगुने पानी या छाछ के साथ !!

          *!! लवण भास्कर चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह स्वादिष्ट व पाचक है तथा आमाशय शोधक है। यह मन्दाग्नि, अजीर्ण, उदर रोग, क्षय, अर्श ग्रहणी कुष्ट, विबंध, शूल वातकफज गुल्म, तिल्ली, आम-विकार आदि में लाभ करता है !!
        मन्दाग्नि और संग्रहणी रोग की यह उत्कृष्ट दवा है ! वात-पित-कफ इनमें से कोई भी दोष प्रदान होने के कारण मन्दाग्नि या संग्रहणी हो तो इसके सेवन से दूर हो जाती है ! बवासीर, सूजन, शूल, श्वास, आमवात आदि में उपयोगी ! इसका प्रयोग साधारणतय: भी किया जाता है !!

*मात्रा व अनुपान -* १ से ३ ग्राम, दिन में दो बार भोजन के बाद ठण्डे पानी या छाछ के साथ !!

            *!! लाई चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इस चूर्ण के सेवन से संग्रहणी शूल, अफारा अतिसार व मन्दाग्नि में लाभ मिलता है ! इसके सेवन से पाचन शक्ति बढ़ कर भूख खुलकर लगती है !!

*मात्रा व अनुपान -* १ ग्राम, दिन में दो बार छाछ के साथ !!

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