रविवार, 15 अक्तूबर 2017

आयुर्वेदिक चूर्ण भाग ५

🌺🙏🏻🌺 *!! आयुर्वेदिक चूर्ण भाग ५ !!* 🌺🙏🏻🌺

          *!! जातिफलादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह ग्रहणी, क्षय, हैजा अपचन, आध्मान शूल, पेट की मरोड़, दर्द होकर दस्त आना, मन्दाग्नि, अतिसार, अरूचि, कास- श्वास, पीनस, पुराना जुकाम आदि रोगों में विशेष लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान -* १ से २ ग्राम, दिन में दो बार अथवा आवश्यकतानुसार !!

           *!! चोपचिन्यादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से घाव, सिर के फोड़े-फुंसी, मुँह के छाले, शरीर के अन्य भागों के जख्म, प्रमेह, उपदंश, सूजाक, खूजली, वीर्यविकार, कमजोरी, ‌‌‌नपुंसकता आदि में लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार पानी या दूध के साथ !!

           *!! चित्रकादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह दीपन-पाचन एवं अग्निवद्​र्धक है ! यह आमवात, सर्वांगशूल, उदरशूल, आमाश्य शोथ, अरूचि, मन्दाग्नि, पेट में वायु का इकट्ठा होना, संग्रहणी, गुल्म, प्लीहा, आदि रोगों में लाभकारी है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार गर्म पानी या छाछ के साथ !!

            *!! चातुर्जात चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* अग्निवर्द्धक, दीपक, पाचक एवं विषनाशक !!

*मात्रा व अनुपान -* १/२ से १ ग्राम दिन में तीन बार शहद से !!

           *!! चन्दादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह चूर्ण रक्त प्रदर, रक्तातिसार, खूनी बवासीर और रक्तपित्त आदि में विशेष लाभदायक !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार शहद के साथ; रक्त प्रदर में अशोक क्वाथ के साथ !!

          *!! गोक्षुरादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह चूर्ण वृष्य, बल-वीर्य वद्​र्धक और कामोत्तेजक है ! इसके सेवन से वीर्य का पतलापन दूर होकर गाढ़ा हो जाता है ! सम्भोग से एक घण्टा पहले मिश्री मिले हुए गर्म दूध के साथ सेवन करने से विशेष परिणाम मिलते हैं !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार अथवा रात को सोते समय !!

           *!! गंगाधर चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इस चूर्ण के सेवन से प्रवाहिका, अतिसार एवं संगहणी, आंतों की कमजोरी आदि में उत्तम लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान -* १ से ३ ग्राम, दिन में दो बार रोगानुसार अनुपान के साथ !!

           *!! कृष्णादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह छोटे बच्चों में विशेष लाभ प्रदान करता है ! इसके सेवन से छोटे-छोटे बच्चों की संग्रहणी, अतिसार, दूध न पचना, पेट फूलना या दर्द होना, ज्वर, खाँसी आदि में विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ५०० से ७५० मिलीग्राम, दिन में दो बार अथवा आवश्यकतानुसार !!

          *!! कृमिघ्न चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह पेट के कीड़े, कब्ज, जी मिचलाना आदि में लाभकारी है ! पेट के कीड़ों को नष्ट करने हेतु उपयोग करते समय इसके सेवन से कुछ समय पहले कुछ मीठा खाकर इसके पश्चात इसका सेवन करना चाहिए !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन मे दो बार गर्म पानी के साथ !!

          *!! कुकुंमादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह बाजीकरण, शक्तिवद्​र्धक तथा दीपक-पाचक है ! यह अजीर्ण, ग्रहणी, क्षय, कास-श्वास, खाँसी, अग्निमाद्य, वात-पित, वमन, अतिसार, नेत्ररोग, कफ जन्य रोग, उबकाई, अरूचि, उदररोग, मुत्रकृच्छ, शिरोशिश आदि रोगों में उत्तम लाभ करता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार दूध अथवा जल के साथ !!

          *!! कामदेव चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से शुक्र विकार, शीघ्रपतन, व स्वप्नदोष, वीर्य का पतलानप आदि को दूर कर शक्ति प्रदान करता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार दूध के साथ !!

         *!! कर्पूरादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह अरूचि, खाँसी, वमन, हृदय की कमजोरी, नाड़ी की विषमता, रक्तचाप में कमी, भूख कम लगना, स्वरभंग, श्वास, गुल्म, अर्श और कंठ रोग आदि में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान -* १ से ३ ग्राम, दिन में बार ठंडे पानी अथवा छाछ के साथ !!

         *!! कर्कटी बीज चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है ! पेडू में सूजन, जननेन्द्रिय की नसों में खिंचाव आदि में लाभदायक है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ ग्राम, दिन में दो बार गर्म पानी के साथ !!

          *!! कमलाक्षादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह चूर्ण पौष्टिक, शक्तिवद्​र्धक, कामोत्तेजक व शरीर की कमजोरी को दूर करने वाला है ! इसका उपयोग साधारणतय: सर्दी के मौसम में किया जाता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार दूध के साथ !!

           *!! एलादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह चूर्ण वमन, छर्दि एवं पित्तजन्य विकार, प्यास की अधिकता, कण्ठ सूखना, हाथ, पांव और आंखों में जलन होना, अरुचि व मंदाग्नि आदि रोगों में लाभ करता है ! वमन के कारण पानी भी न पचने के मामले में यह चूर्ण शीघ्र लाभ करता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार मिश्री या शहद के साथ !!

         *!! आमलक्यादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह सभी प्रकार के ज्वरों में उपयोगी है ! यह दस्तावर, अग्निवर्द्धक, रुचिकर एवं पाचक है !!

*मात्रा व अनुपान -* १ से ३ ग्राम, दिन में दो बार पानी के साथ !!

    *!! आमलकी रसायन चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* पौष्टिक, पित्त नाशक व रसायन है ! नियमित सेवन से शरीर व इन्द्रियां दृढ़ होती हैं ! यह चूर्ण ज्वर, मोतियाबिंद, बालों का झड़ना, खूनी वमन, अधिक प्यास लगना, रक्तप्रदर, कमजोर योनि, योनि में जलन व खुजली एवं कुकुणक इत्यादि रोगों में लाभदायक है !!

*संघटक -* आमलकी (बीज रहित फल) का बारीक चूर्ण लें ! इस चूर्ण को आमलकी के ही रस में रस सूखने तक छाया में मर्दन करें !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ४ ग्राम, दिन में दो बार दूध के साथ !!

         *!! अष्टांग लवण चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* ‌‌‌यह स्वादिष्ट तथा रुचिवर्द्धक है ! यह चूर्ण मंदाग्नि, अरुचि, भूख न लगना आदि पर विशेष लाभकारी !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ५ ग्राम भोजन के पश्चात या पूर्व, थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए !!

        *!! अश्वगन्धादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इस चूर्ण के सेवन से वीर्य विकार, शुक्रक्षय, वीर्य का पतलापन व शिथिलता, शीघ्रपतन, प्रमेह आ​दि विकार नष्ट होकर वीर्य गाढ़ा और निर्दोष बनाता है ! यह चूर्ण विशेषतय: वीर्यवाहिनी नाडि़यों, वातवाहिनी नाडि़यों और मस्तिष्क और हृदय को लाभ पहंचाता है ! यह शरीर को बल प्रदान कर शक्तिवद्​र्धक बनाता है ! यह शरीर की झुर्रियों को दूर करता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, गर्म पानी के साथ दिन में दो बार !!

        *!! अविपत्तिकर चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* अम्लपित्त की सर्वोत्तम दवा !!
यह छाती और गले की जलन, खट्टी डकारें, कब्जियत आदि पित्त रोगों के सभी उपद्रव इसमें शांत होते हैं ! इसके सेवन से कब्ज दूर होती है ! व यह भूख जगाने वाला है ! अम्लपित आदि के उपचार से पूर्व इसके सेवन से पेट साफ करके इसके पश्चात् उपचार शुरू करने से विशेष लाभ मिलता है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, दिन में दो बार ठंडे पानी साथ !!

          *!! अर्जुन त्वक चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह शीतल, हृदय को हितकारी, कसैला और क्षत, क्षय, विष, रुधिर विकार, मेद, प्रमेह, व्रण, कफ तथा पित्त को नष्ट करता है ! यह चूर्ण हृदयशूल, अस्थिभंग, खांसी आदि में लाभकारी है ! इससे हृदय की पेशियों को बल मिलता है, स्पन्दन ठीक व सबल होता है तथा उसकी प्रतिमिनट गति भी कम हो जाती है ! स्ट्रोक वाल्यूम तथा कार्डियक सशक्त व उत्तजित होता है ! इनमें रक्त स्तंभक व प्रतिरक्त स्तंभक दोनों ही गुण हैं ! अधिक रक्तस्राव होने की स्थिति से या कोशिकाओं की रुक्षता के कारण टूटने का खतरा होने पर यह स्तंभक की भूमिका निभाता है, लेकिन हृदय की रक्तवाही नलिकाओं (कोरोनरी धमनियों) में थक्का नहीं बनने देता तथा बड़ी धमनी से प्रति मिनट भेजे जाने वाले रक्त के आयतन में वृद्धि करता है !!

*संघटक -* अर्जुन की छाल ‌‌‌पीसी हुई ! ‌‌‌काढ़ा बनाने के लिए - अर्जुन की छाल को ४०० ग्राम लेकर ५०० मिली पानी में पकाये २०० मिली रहने पर उतार लें व ठण्डा होने के उप्रान्त सेवन करें !!

*मात्रा व अनुपान -* ५ से १० ग्राम चूर्ण दिन में दो बार !!

*‌‌‌काढ़ा -* १० मि.ली., दिन में दो बार - सुबह-शाम ! अर्जुन की छाल के चूर्ण को चाय के साथ उबालकर पीने से हृदय और उच्च रक्तचाप की समस्याओं में तेजी से आराम मिलता है ! चाय बनाते समय एक चम्मच इस चूर्ण को डाल दें तो इससे उच्च रक्तचाप सामान्य हो जाता है ! अर्जुन की चाय हॄदय विकारों से ग्रस्त रोगियों के लिए काफी फायदेमंद होती है ! अर्जुन की छाल का चूर्ण (१ ग्राम) एक कप पानी में खौलाकर उसमें दूध व चीनी आवश्यकतानुसार मिलाकर पिएं तो फायदा होता है !!

        हृदय की सामान्य धड़कन जब ७२ से बढ़कर १५० से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है !!

           *!! अजमोदादि चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* इसके सेवन से सभी प्रकार के दर्द में उत्तम लाभ होता है ! यह सूजन, आमवात, गठिया, गुध्रसी, कमर, पीठ जंघा आ​दि के दर्द में  लाभकारी है !!

*मात्रा व अनुपान -* ३ से ६ ग्राम, ​दिन में दो बार ठंडे पानी के साथ !!

          *!! अग्निमुख चूर्ण ब्रहत !!*

*गुण व उपयोग -* यह अत्यन्त अग्नि दीपक है ! यह १० या १५ मिनट के अन्दर सभी खाये हुये खाद्य पदार्थॊ को पचा देता है ! इस चूर्ण को खाने का सबसे अच्छा तरीका यह है ! कि इसे भोजन के साथ मिलाकर खाना चाहिये ! इस चूर्ण को खाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसे भोजन के साथ मिलाकर खाना चाहिये !!

*मात्रा व अनुपान -* १ से ३ ग्राम, दिन में बार गर्म पानी या दही के साथ !!

           *!! अग्निमुख चूर्ण !!*

*गुण व उपयोग -* यह चूर्ण दीपन-पाचन है ! यह खट्टी डकारें आना,गुल्म, श्वास, अरूची उदरशूल, मन्दाग्नि, जी मिचलाना या मुँह में पानी भर जाना, भूख न लगना आ​दि विकारों को नष्ट करता है ! भोजन को अच्छी तरह पचा कर क्षुधा की वृ​द्धि करता है ! विशेषतय: उदर वायु पचाकर क्षुधा की वृ​द्धि करता है !!

*मात्रा व अनुपान -* २ से ४ ग्राम, भोजन के बाद सुबह-शाम पानी के साथ !!

*नोट :-* सभी चूर्ण डाबर व वैद्यनाथ की दुकान पर मिल जाते हैं !!

*!! इसी के साथ चूर्ण प्रकरण का अंक समाप्त हुआ !!*

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3 टिप्‍पणियां:

  1. पेट में दिन में 5 6 बार मरोड़ और दर्द के साथ हल्का मॉल आता हे अज्मोददी चूर्ण से फायदा हे

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  2. पेट में दिन में 5 6 बार मरोड़ और दर्द के साथ हल्का मॉल आता हे अज्मोददी चूर्ण से फायदा हे

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