शनिवार, 25 नवंबर 2017

आयुर्वेदिक रस भाग 1

     !! आयुर्वेदिक रस !!

                     !! अग्नि सन्दीपन रस !!

गुण व उपयोग : – अग्नि सन्दीपन रस मन्दाग्नि, अजीर्ण, अम्लपित्त, शूल और गोला आदि में सेवन से उत्तम लाभ प्रदान होता है ! यह पाचन तन्त्र को ठीक करता है ! इय रसायन से पाचकाग्नि की शिथिलता दूर हो पुन: उसमें चेतना आ जाती है ! अधिक या गरिष्ठ भोजन करने से अजीर्ण हो गया हो, तो इस रस की २-३ गोली खा लेने से भोजन जल्दी पच जाता है ! इसके सेवन से अम्लपित्त में मुँह खट्टा या कड़वा पानी आना बन्द हो जाता है ! और अन्न का परिपाक भली-भान्ति खा लेने से दर्द बन्द हो जाता है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली, सुबह-शाम भोजन के
बाद गर्म पानी के साथ !!

                        !! अजीर्णारि रस !!

गुण व उपयोग : – अजीर्णारि रस के सेवन से मन्दाग्नि, अजीर्ण, कब्जियत, पेट फूलना आदि रागों में लाभ मिलता है ! यह जठराग्नि को प्रदीप्त करता है ! तथा अजीर्ण को पच कर साफ दस्त लाता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, भोजन के बाद गर्म
पानी के साथ !!

                     !! अजीर्ण कण्टक रस !!

गुण व उपयोग : – अजीर्ण कण्टक रस के सेवन से अजीर्ण, मन्दाग्नि, कब्जियत आदि रोगों में लाभ मिलता है ! यह जठराग्नि को प्रदीप्त करता है ! यह भूख बढ़ाने के साथ-साथ पाचन शक्ति को भी ठीक करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली, सुबह-शाम भोजन के बाद नींबू के रस या ताजे पानी के साथ !!

                      !! अग्नि तुण्डी वटी रस !!

गुण व उपयोग : – अग्नि तुण्डी वटी रस के सेवन से मन्दाग्नि, अजीर्ण, पेट के कीड़े, कमजोरी आदि में लाभ मिलता है ! यह दीपन, पाचन व वात- नाशक है ! इसमें कुचले का अंश विशेष होता है ! अत: अधिक दिन तक लगातार इसका सेवन नही करना चाहिए ! स्नायु मण्डल, वातवाहिनी और मूत्रपिण्ड पर इसका विशेष असर होता है ! छोटे बचचों के और रक्त का दबाव बढ़े हुए रोगियों में इसका सेवन नही करना चाहिए ! यह औषधी सभी इन्द्रियों को उत्तेजित करती हैं ! अत: किसी भी रोग में उत्तेजनार्थ इसका उपयोग कर सकते हैं ! वृद्धावस्था आ जाने से मनुष्य के शरीर व इन्द्रियों में शिथिलता आ जाती है, इसी प्रकार और भी कर्इ तरह की बीमारीयाँ उत्पन्न हो जाती हैं ! ये सब इसके सेवन से नष्ट हो जाती हैं !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, गर्म पानी के साथ !!

                      !! अग्नि कुमार रस !!

गुण व उपयोग : – अग्निकुमार रस के सेवन से अजीर्ण, मन्दाग्नि, संग्रहणी, कब्ज, आंतो में मल इकट्ठा होना, पेट में दर्द व पेट भारी रहना, पतली टट्टी होना आदि रोगों में विशेष लाभ मिलता है ! यह अग्नि को प्रदीप्त कर अजीर्ण को मिटाने वाला है ! इसमें काली मिर्च की मात्रा सबसे अधिक होने के कारण उष्णवीर्य है ! अत: पित्तजन्य अजीर्ण में इसका उपयोग जहाँ तक हो, नही करना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, पानी के साथ !!

                      !! अर्धांगवातारि रस !!

गुण व उपयोग : – अर्धांगवातारि रस मेद्धवृद्धि, मन्दाग्नि, पित्तदोष आदि में लाभकारी है ! वात वाहिनीयों एवं रक्तवाहिनियों में जमे हुए कफ व मेद को नष्ट करके उनकी क्रिया को सुधारता है ! यह रसायन अर्द्धाग्ड़वात में रेष्ठ लाभकारी महौषधी है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, त्रिकुट चूर्ण और शहद के साथ !!

                         !! अग्नि सूनु रस !!

गुण व उपयोग : – अग्नि सूनु रस के सेवन करने से शूल, गुल्म, पांडुरोग, अर्श, ग्रहणी रोग, शोष, ज्वर, अरूचि और मन्दाग्नि आदि उदर रोग नष्ट होते हैं ! घृत व चीनी के साथ देने से दीपन, पाचन और शूलनाशक होने के कारण उपरोक्त विकारों में उत्तम लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान :- १ से २ गोली, सुबह-शाम घृत व चीनी के साथ अथवा पीपल चूर्ण व शहद के साथ !!

                       !! अगस्ति सूतराज रस !!

गुण व उपयोग : – अगस्ति सूतराज रस सूजन, दाह, संग्रहणी, अतिसार, वमन, पेट दर्द, आमांश, कफ-वात विकार, अग्निमांद्य, अनिद्रा, आमाशय व पक्वाशय की विकृति में सेवन से लाभ प्रदान करता है ! इसमें अफीम होने के कारण यह पीड़ा नाशक होने के कारण दर्द को शान्त कर देता है ! और ग्राही होने के कारण दस्त को भी बन्द अथवा क्रमबद्ध करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १-२ गोली, दिन में तीन बार !!

                    !! अर्द्धनारी नटेश्वर रस !!

गुण व उपयोग : – अर्द्धनारी नटेश्वर रस सुन्नपात, तन्द्रा, निद्रा न आना, सिर दर्द, कास, श्वास, मूर्च्छा, कफ की प्रबलता आदि में नस्य देने से लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १२५ से २५० मिलीग्राम, जम्बीरी नींबू के रस में घिसकर जिस भाग में ज्वर हो अथवा जिस भाग का ज्वर उतारना हो उस भाग में नस्य दें !!

                          !! अमीर रस !!

गुण व उपयोग : – अमीर रस आतशक, रक्तवाहिनी तथा
वातवाहिनी के विक्षोभ, अर्द्धाङग् और सन्धिगत वात, सूजाक आदि में उत्तम लाभ प्रदान करता है ! यह तीव्र रक्तरोधक है ! इसके सेवन से आतशक के कीटाणु नष्ट होते हैं ! सूजाक व आतशक के कारण होने वाले गठिया में मञ्जिष्ठादि क्वाथ के साथ सेवन करने से विशेष लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १२५ से २५० मिली ग्राम, मुनक्का में भर कर या कैप्सूल में रख कर रोगी को निगलवा दें, दाँत से नही चबानी चाहिए !!

                     !! अमृतकलानिधि रस !!

गुण व उपयोग : – यह रस पित्त और कफदोषजन्य ज्वर,
मन्दाग्नि, अजीर्ण, उदरशूल, आमदोष आदि विकारों को नष्ट करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली आवश्यकतानुसार दिन में ३-४ बार अदरक के रस व शहद के साथ अथवा गर्म पानी के साथ !!

                       !! अमृतार्णव रस !!

गुण व उपयोग : – अमृतार्णव रस के सेवन से अतिसार, पतले दस्त होना, संग्रहणी, बवासीर, अम्लपित्त और मन्दाग्नि, गुल्म, कास आदि रोगों में लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, दिन में दो बार !!

                          !! अर्शकुठार रस !!

गुण व उपयोग : – अर्शकुठार रस के सेवन से अर्श, में विशेष लाभ मिलता है ! शुरूआती अर्श में यह मस्से सुखाकर रोगी को लाभ देता है ! इसके सेवन से रोगी को कब्ज नही हो पाती ! रक्तातिसार में इसे कुटजावलेह या कुटज छाल के क्वाथ से देने से लाभ मिलता है !!
*बादी बवासीर में* गर्म पानी के साथ या गुलकन्द के साथ देने से लाभ होता है ! इससे दस्त साफ आता है ! व वायु का प्रकोप भी कम हो जाता है, जिससे मस्सों में दर्द नही होता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, सुबह-शाम दस्तावर औषधियों के कवाथ के साथ अथवा पानी या गुलकन्द के साथ भी दिया जाता है !!

                         !! अश्वकंचुकी रस !!

गुण व उपयोग : – अश्वकंचुकी रस में हरताल, जमालगोटा आदि औषधियाँ होने से यह उष्णवीर्य है ! यकृत व उदर रोगों में इसके सेवन से लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, पानी के साथ अथवा रोगनुसार अनुपान के साथ !!
विशेष : – यह दस्तावर योग है, इसलिए ध्यानपूर्वक इस्तेमाल करना चाहिए !!

                        !! आमवातारि रस !!

गुण व उपयोग : – यह रस कठिन वात-दोष, आमवात, हाथ-पैर, समूचे शरीर की सूजन, सुर्इ चुभने जैसी अनुभूति में विशेष लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, सुबह-शाम गर्म पानी के साथ अथवा दशमूल या महारास्नादि क्वाथ या एरण्ड के तेल के साथ !!

                        !! आनन्दभैरव रस !!
                              *(कासहर )*

गुण व उपयोग : – यह कफ प्रधान, श्वास रोग, जुकाम के साथ खाँसी, कोष्ठशूल, कफ का बनना, अपस्मार, वातरोग, प्रमेह, अजीर्ण, खाँसी, श्वास, अतिसार, ग्रहणी, सन्निपात और अग्निमांद्य आदि रोगों में विशेष लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान :- १ से २ गोली, दिन में दो बार अदरक का रस, पान का रस और शहद के साथ !!

विशेष : – यह पित्त को उत्तेजित करता है ! अत: पित्तजन्य विकार या ज्वर में इसका प्रयोग नही करना चाहिए ! यदि प्रयोग करें तो किसी कफ वर्द्धक औषधी के साथ या इसी तरह के अनुपान के साथ !!

                        !! इन्दुशेखर रस !!

गुण व उपयोग : – इन्दुशेखर रस गर्भावस्था ज्वर, दुर्बलता, हृदय रोग, खाँसी, श्वास, सिर दर्द, रक्तादिसार, संग्रहणी, वमन, अग्निमांद्य, स्नायु-दौर्बलता में उत्तम लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, सुबह-शाम शहद या पानी के साथ !!

                        !! इच्छाभेदी रस !!

गुण व उपयोग : – इच्छाभेदी रस पेट को इच्छानुसार साफ करने वाला तेज विरेचन है ! यह कफ और वात को दूर करता है तथा आँतों में संचित विकार (मल) को निकालता है व दर्द को नष्ट करता है ! रोगों की चिकित्सा करने से पहले पेट साफ कर लेना उचित होता है ! यह कार्य इसके सेवन से अच्छी तरह हो जाता है ! परन्तु इसमें जमाल गोटा है, वह पेट में गर्मी उत्पन्न करता है एवं कभी-कभी अधि दस्त भी लगा देता है ! इससे ज्यादा दस्त लगने पर गर्म पानी पी लेना चाहिए ! विरेचन के बाद खिचडी और दही खाना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली (१२५ से २५० मिलीग्राम), सुबह ठण्डे पानी या चीनी के शरबत के साथ !!
विशेष: – नाजुक स्त्री, पुरूष, बच्चे या गभवती महिलाओं को नही देना चाहिए !!

                      !! उन्माद गजकेसरी !!

गुण व उपयोग : – यह उन्माद (पागलपन), मिर्गी, हिस्टीरिया, अनिद्रा, बेहोशी की उत्तम औषधी है !!

मात्रा व अनुपान: – २५० से ५०० मिली ग्राम, विषम भाग घृत के साथ शहद या पान के रस से दें !!

                            !! उन्मत्त रस !!

गुण व उपयोग : – उन्मत्त रस खाने की औषधी नही है !!
यह नाक में नस्य के समान सुघाने वाली औषधी है !!
सन्निपात ज्वर की बेहोशी, अपस्मार, मूच्र्छा, आदि रोगों में सुंघाने से लाभ प्रदान करती है !!

                       !! उन्माद गजांकुश रस !!

गुण व उपयोग : – उन्माद गजांकुश रस का प्रयोग करने से वातज, कफज, पित्तज, द्वन्द्वज, सन्नि पातज उन्माद रोग शीघ्र नष्ट होते हैं ! इसके अतिरिक्त अपस्मार रोग की यह श्रेष्ठ औषधी है एवं मस्तिष्क की दुर्बलता से होने वाले विकार, मूच्र्छा, बेहोशी, हिस्टीरिया, अनिद्रा आदि रोग नष्ट होते हैं !!
विशेषतय – भूतोन्माद, प्रेत-पिशाचादि जनित उन्माद (पागलपन) रोग के लिए उत्कुष्ठ औषधी है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली, दिन में दो बार सुबह-शाम विषम भाग घृत और शहद के साथ या ब्रह्मी घृत और मिश्री के साथ ब्रह्मी-स्वरस के साथ !!

                      !! उपदंश कुठार रस !!

गुण व उपयोग : – नए व पुराने उपदंश रोग को नष्ट करने में इसका उपयोग किया जाता है ! इसके एक या दो सप्ताह सेवन करने से ही रोग ठीक हो जाता है ! विकार अधिक उग्र रूप में हो तो तीन या चार सप्ताह तक भी सेवन किया जा सकता है !!
इसके प्रयोग काल में मीठे और खट्टे पदार्थ, मांस, दूध, कुष्माण्ड का सेवन नही करना चाहिए ! कुछ चिकित्सकों का मत है कि इसके सेवन में तूतिया के कारण किसी को वमन हो तो उस रोगी को आम का अचार या नींबू खिलाना चाहिए इससे वुत्थ की वमन कराने की शक्ति कम हो जाती है !!

                         !! एकांग वीर रस !!

गुण व उपयोग : – एकांग वीर रस के सेवन से पक्षाघात, अर्दित गृध्रसी एकांगवात अर्धागवात आदि वात विकारों में अच्छा लाभ मिलता ह, किन्तु पक्षाघात में इसका विशेष उपयोग किया जाता है ! शारीरिक अवयवों (हाथ-पाँव, आँख, कान, नाक आदि की चेतना शक्ति और इनकी क्रिया (संचालनादि क्रिया) का नष्ट हो जाना ही पक्षाघात (चंतंसलेपे) कहलाता है ! एकांग वीर रस का प्रभाव खासकर वातवाहिनी नाड़ी पर होता है ! अत: यह उत्तेजित वायु को शान्त कर देता है तथा दूषित रक्त को भी सुधारता है ! हृदय को बलवान बनाना भी इसका एक प्रधान कार्य है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, सुबह-शाम शहद या वातनाशक क्वाथ के साथ !!

                   !! कर्पूर रस (कर्पूरादि बटी)!!

गुण व उपयोग : – इसके सेवन से अरूचि, खट्टी डकारें आना, मुँह में जलन, कमजोरी, आँखों के सामने अन्धेरा सा छा जाना, पेट में दर्द, जोड़ों में दर्द, हृदय की कमजोरी, आंवरहित दस्त व खूनी दस्त, जठराग्नि आदि में लाभ मिलता है ! यह रसायन कपूर और हिंगुल तथा अफीम के मिश्रण के कारण अतिसार में अच्छा लाभ करता है ! पेचिश में दही के साथ देने सा लाभ होता है, किन्तु इसके देने से पहले एरण्ड का तेल से पेट का आंव निकाल देना उत्तम रहता है !!

मात्रा व अनुपान : –  १ से २ गोली, पानी या शहद या अनार के रस के साथ !!

                          !! कफसेतु रस !!

गुण व उपयोग : – कफकेतु रस के सेवन से कफजन्य बुखार, खाँसी, जुकाम, कफ के विकारों में सिरदर्द और कण्ठ में कफ जमा होने में यह लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, चार-चार घण्टे बाद अदरक रस व शहद के साथ !!

                          !! कनकसुंदर रस !!

गुण व उपयोग : – कनकसुंदर रस के सेवन से अतिसार, संग्रहणी और अतिसार, अग्निमांद्य, बच्चों के दाँत निकलने के समय लगने वाले दस्त में उत्तम लाभ करता है ! यह अग्नि-दीपक और वेदना शामक है ! उष्णवीर्य होने के कारण पित्त प्रधान रोगों में इसका किसी सौम्य औषधी के साथ सेवन करना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, दिन भी में दो बार पानी, मट्ठा या सौंफ के अर्क के साथ !!

                         !! कफकुठार रस !!

गुण व उपयोग : – कफकुठार रस खाँसी, सांस लेने में कठिनार्इ, छाती में दर्द, छाती में कफ का जमना, कफ ज्वर आदि में उत्तम लाभ करता है ! यह रस अत्यन्त तीक्ष्ण है ! अत: पित्त उत्पन्न् होन वाले रोग में इसका सेवन किसी सौम्य औषधी के साथ करना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, पान के रस के साथ अथवा रोगानुसार उचित अनुपान के साथ !!

                      !! कफ चिन्तामणि रस !!

गुण व उपयोग : – कफ चिन्तामणि रस के सेवन से वात और कफ के रोग नष्ट होते हैं ! कफ की विशेषता होने पर अन्य औषधियों की अपेक्षा यह विशेष लाभ करता है, क्योंकि इसमें रस सिन्दूर होता है ! अत: यह कफ का शमन करता है ! यह बाजीकरण तथा पौष्टिक भी है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, अदरक के रस तथा शहद या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                      !! कल्याण सुन्दर रस !!

गुण व उपयोग : – कल्याण सुन्दर रस से फेफड़े के रोग,, न्यूमोनिया व उर:स्तोय (फुफ्फुसावरण में प्रदाह होकर जल भर जाना), शूल, भ्रम, मूच्र्छा, सूखी खाँसी, श्वास, अरूचि, मन्दाग्नि तथा मूत्रपिण्ड में विकार, प्रमेह, नपुंसकता आदि में लाभ मिलता है ! यह हृदय और मस्तिष्क को बल प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, सुबह-शाम, गर्म पानी के साथ ! फुफ्फुस-विकारों में शहद और अदरक रस के साथ !!

                            !! कल्पतरू रस !!

गुण व उपयोग : – कल्पतरू रस खाने और सूँघने, दोनों में
काम आता है ! इस रसायन के सेवन से वात-कफ-पित्त अर्थात वायु और कफ से उत्पन्न बुखार, खाँसी, श्वास प्रतिशयाय (जुकाम) एवं बुखार में अंगों का जकड़ना व दर्द होना, मुख और नाक से लार और पानी टपकना, अग्निमांद्य, अरूचि आदि नष्ट हो जाते हैं ! इसका नस्य लेने से कफ और नाक से उत्पन्न सिर दर्द, मूर्छा, प्रलाप, छींक की रूकावट अदि लक्षण हों तो इस रस का सेवन करने से उत्तम लाभ होता है !!

मात्रा व अनुपान : – १२५ से २५० मिलीग्राम, अदरक के रस और शहद अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                          !! कस्तूरीभैरव रस !!
                                 *(बृहत्)*

गुण व उपयोग : – इसके सेवन से सभी प्रकार के सन्निपात ज्वरों में, शीतांग, जलन, पसीना, खाँसी, तन्द्रा, पाश्र्वशूल, नाडत्री क्षीणता, नाड़ी अपना स्थान छोड़ दे, ज्ञानहीनता, कम्पन, देह शीतल हो जाना आदि में लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ गोली अदरक रस या पान के रस और शहद के साथ !!

विशेष : – यदि रक्त का संचार मस्तिष्क की ओर अधिक हो रहा है और उसी कारण तापांश अत्यन्त बढ़ा हुआ हो, मूच्र्छा हो तथा श्वास भी प्रबल हो तो इसका प्रयोग न करें !!

                         !! कस्तूरीभैरव रस !!

गुण व उपयोग : – कस्तूरीभैरव रस वात ज्वर, कफज्वर और वात-कफ प्रधान ज्वर व सन्निपात ज्वर में विशेष लाभ प्रदान करता है ! इसके अलावा जोड़ों व पसलियों में दर्द, तन्द्रा, कमजोरी, टायफार्इड बुखार, हृदय की कमजोरी, वात रोग आदि में लाभ प्रदान करता है ! पैत्तिक विकार में प्रवाल चन्द्रपुटी, मुक्ताशुक्ति पिष्टी आदि किसी सौम्य औषधी के साथ देना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, पान के रस, अदरक के रस और शहद मिलाकर दें !!

                       !! कस्तूरीभूषण रस !!

गुण व उपयोग : – कस्तूरीभूषण रस के सेवन से त्रिदोषज कास, श्वास, क्षय, कफ-जन्य रोग, मन्दाग्नि, पित्त्कफाधिकय रोग, उध्र्वजत्रुगत रोग, विषम ज्वर आदि में उत्तम लाभ मिलता है ! शोथ युक्त विषम ज्वर में भी यह लाभ करता है ! टायफार्इड बुखार में लौंग के पानी के साथ सुबह-शाम देने से लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, सुबह-शाम अदरक के
रस व शहद के साथ !!

                          !! कृमिकुठार रस !!

गुण व उपयोग : – कृमिकुठार रस का सेवन मुख्यत: पेट के कीड़े नष्ट करने हेतु किया जाता है ! कृमियों के कारण ग्लानि, भ्रम, मुख् से लार गिरना, पेट तथा गुदा में कैंची से काटने जैसी पीड़ा, कब्ज, मल शुष्क होना, अनिद्रा, पांडु, शोथ आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं ! इस रस के २१ दिन या आवश्यकतानुसार अधिक समय तक लेने से कृमि रोग नष्ट हो जाते हैं ! इसके सेवन काल में तीसरे या चौथे दिन रात को सोते समय ‘पंचसकार चूर्ण’ ६ ग्राम गर्म पानी से लेना चाहिए ताकि कोष्ठ शुद्धि होकर मरे हुए कृमि बाहर निकल आएं !!

मात्रा व अनुपान : – २ से ४ गोली, सुबह-शाम खाकर ऊपर से नागर मोथा का क्वाथ पीना चाहिए !!

                         !! कृमिमुगद्र रस !!

गुण व उपयोग : – कृमिमुगद्र रस कृमिकुठार रस से तीक्ष्ण और उग्रवीर्य है ! यह पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला एवं इन कृमियों के कारण होने वाले उपद्रव जैसे कि ज्वर, जी मिचलाना, देह में खुजली ! कहीं देह में खुजलाने से लाल चकते पड़ जाना, अन्न में अरूचि, भूख न लगना वमन होना हिचकी आदि लक्षणों में लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – २५०- ५०० मिलीग्राम शहद के साथ दें, ऊपर से नागरमोथा का क्वाथ पिलाएं ! इसे तीन दिन तक सेवन करने के बाद चौथे दिन जुलाब लेना चाहिए !!

                           !! क्रव्याद रस !!

गुण व उपयोग : – क्रव्याद रस प्लीहा, ग्रहणी, रक्तस्राव, अर्श, शूल, विषम ज्वर, वातिक-ग्रन्थि, हैजा, गुल्म, अफारा और अरूचि आदि रोगों में शीघ्र लाभ प्रदान करता है। यह अग्नि प्रदीप्त कर संचित आंव को नष्ट कर मोटापे को कम करता है ! यह दीपन-पाचन है !!

मात्रा व अनुपान : – २ से ४ गोली तक सेंधा नमक मिला हुआ मट्ठा (छाछ) या नींबू का रस अथवा साधारण पानी से खाना खाने के बाद देना चाहिए !!

                         !! कामधेनु रस !!

गुण व उपयोग : – कामधेनु रस बल-वीर्य-वर्द्धक, कामोद्दीपक तथा पौष्टिक है ! इसके सेवन से प्रमेह, विशेषकर शुक्रमेह, ध्वजभंग आदि नष्ट होकर शरीर में कामशक्ति अधिक मात्रा में उत्पन्न होती है ! नपुंसकता, इन्द्रिय की शिथिलता, सुस्ती आदि इससे बहुत जल्दी ठीक हो जाती है ! यह रस-रक्तादि धातुओं को शुद्ध करके बढ़ाता है ! तथा नवयौवन प्रदान करता है ! यह पाचन क्रिया को सुधार कर शरीर को बल प्रदान करने वाला है !!

मात्रा व अनुपान : – इसका सेवन रोगानुसार चिकित्सक की सलाह से करें !!

                       !! कामाग्नि सन्दीपन रस !!

गुण व उपयोग : –  इस रसायन के सेवन से ओज और बल की पुष्टि तथा काम की वृद्धि होती है और यह रसायन समस्त इन्द्रियों को आन्नद देने वाला है ! इस रसायन का असर वातवाहिनी और शुक्र वाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है ! यह उत्तेजतक भी है अत: शुक्र को उत्तेजित करते हुए मन में भी उत्तेजना पैदा करता ह, एवं मानसिक अभिघात जन्य नपुंसकता को मिटाने में बहुत उत्तम लाभकारी है ! इस रसायन के सेवन काल में दूध और पौष्टिक पदार्थ व फलों का विशेष सेवन करना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान : – ३७५ मिलीग्राम को मक्खन व मलार्इ के साथ !!

                        !! कालारि रस !!

गुण व उपयोग : – कालारि रस के सेवन से साधारण ज्वर, सन्निपात ज्वर, विषम ज्वर, कास, हिक्का में उत्तम लाभ मिलता है ! विषम ज्वर में कुनीन की जगह अक्सर इसका उपयोग किया जाता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ गोली, दिन में २-३ बार !!

                      !! कामिनी विद्रावण रस !!

गुण व उपयोग : – कामिनी विद्रावण रस उत्तम वीर्य स्तम्भक है ! इसमें अफीम का अंश होता है ! यह वीर्य को गाढ़ा कर स्तम्भन करता है एवं शुक्रवाहिनी नाड़ियों को बलवान बनाता है ! शीघ्रपतन वालों के लिए बहुत लाभकारी है ! अप्राकृतिक मैथुन अथवा हस्तमैथुन या स्वप्नदोष आदि के कारण शीघ्रपतन की शिकायत तथा वीर्य के पतलेपन को मिटाने में यह बहुत श्रेष्ठ लाभकारी है ! इस रसायन के सेवन से काल में दूध और पौष्टिक पदार्थ तथा फलों का विशुष सेवन करना चाहिए ! यदि कब्ज हो तो रात्रि को गर्म दूध लेना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान: – १ गोली, रात को सोने से एक घण्टा पूर्व दूध के साथ !!

                           !! कालकूट रस !!

गुण व उपयोग : – कालकूट रस अतिउग्र है ! यह सन्निपात, ग्रन्थिक, धातुर्वातादि, वात-विकार, बेहोशी, प्रलाप, आँखों की तन्द्रा, श्वास, कफयुक्त खाँसी, कंप, हिचकी वात, कफ की अधिकता व सन्निपात ज्वर में इसके सेवन से विशेष लाभ मिलता है ! इसका प्रयोग बहुत सावधानी पूर्वक करना चाहिए ! क्योंकि यह अतिउग्र है ! अन्तिम अवस्था में जब मकरध्वज आदि से भी लाभ न हो एवं नाड़ी लुप्त हो रही हो, शरीर ठण्डा हो रहा हो, सिर्फ हृदय गति बनी हुर्इ हो, तथा जब कभी थोड़ी-बहुत श्वास की गति मालूम पड़ती हो, तो ऐसी विकट परिस्थिती में इसका प्रयोग करना चाहिए ! यह हृदय को बल देने वाला है व इसके सेवन से रक्तचाप बढ़ता है ! यह नाड़ी की गति में वृद्धि करने वाला है !!

मात्रा व अनुपान : – १ गोली सुबह-शाम अदरक के रस या शहद के साथ !!

विशेष : – इस औषधी के उपयोग के परिणाम व विधान से अज्ञात चिकित्सकों को इसका उपयोग भली प्रकार सोचकर व निर्णय लेकर व किसी अनुभवी चिकित्सक से परामर्श कर करना चाहिए !!

                         !! कामलाहर रस !!

गुण व उपयोग : – कामलाहर रस पांडु, कामला, हलीमक, कुम्भकामला, शोथ रोग, मूत्रकृच्छ आदि रोगों में शीघ्र लाभ करता है ! इसके उपयोग काल में छाछ और भात के पथ्य पर रहने से विशेष लाभ मिलता है ! इसका समस्त प्रकार के रक्त विकारों में भी लाभकारी है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ ग्राम, दिन में ३ बार बिना मक्खन की छाछ के साथ !!

                        !! कासकुठार रस !!

गुण व उपयोग : – कासकुठार रस पानी से ज्यादा भीगे जाने व अन्य शीतोपचार से उत्पन्न सन्निपात ज्वर, शीतांग सन्निपात अथवा कफ-प्रधानजन्य ज्वरों में लाभ करता है ! ज्वर में जब कफ की मौजूदगी हो व खँसी के साथ कफ निकलता हो ऐसे में कासकुठार रस का सेवन शीघ्र लाभ प्रदान करता है ! जिस ज्वर में अंग जकड़ जाता है, सम्पूर्ण शरीर में दर्द होता रहता है, उसमें इसका उपयोग नही करना चाहिए !!

मात्रा व अनुपान : – १२५ से २५० मिलीग्राम, सुबह-शाम अदरक के रस व शहद के साथ !!

                         !! कासकेशरी रस !!

गुण व उपयोग : – कासकेशरी रस के सेवन से श्वास रोग, कफ ज्वर, वात ज्वर में उत्तम लाभ मिलता है ! नवीन श्वास रोग में यह शीघ्र लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में २ से ३ बार आवश्यकतानुसार अदरक के रस व शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान के साथ !!

                        !! कासकर्त्तरी रस !!

गुण व उपयोग : – कासकर्त्तरी रस के सेवन से फेफड़े व श्वास प्रणाली एवं गले में जमा कफ साफ हो जाता है ! पुराना जमा हुआ कफ भी इसके सेवन से आसानी से बाहर निकलने लगता है ! यह सभी प्रकार के कास रोगों में लाभदायक है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली आवश्यकतानुसार दिन में ३-४ बार शहद के साथ या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                       !! कफकर्त्तरी रस !!

गुण व उपयोग : – पान में रख कर कफकर्त्तरी का रस चूसने से और खाने के बाद इस औषधी से शीघ्र लाभ मिलता है ! यह श्वास / दमा के वेग को कम करती है ! इसके पश्चात् प्रतिदिन इसका सेवन करवाने से जमा कफ आसानी से बाहर निकल आता है ! कफ को काटकर बाहर निकालने के गुण के कारण ही इसका नाम कफकर्त्तरी रस रखा गया है !!

मात्रा व अनुपान : – २५० मिलीग्राम, दिन में २-३ बार नागरबेल के पान में रखकर दें !!

                           !! कुमुदेश्वर रस !!

गुण व उपयोग : – कुमुदेश्वर रस के सेवन से राजयक्ष्मा, हृदय की दुर्बलता, उदर वायु, पाश्र्वशूल, कमजोरी, अनिद्रा आदि में शीघ्र लाभ मिलता है ! राजयक्ष्मा की प्रारम्भिक अवस्था में इसका सेवन विशेष लाभ प्रदान करता है ! यह शरीर में धातुओं की वृद्धि कर बल, कान्ति व औज प्रदान करती है !!

मात्रा व अनुपान : – १२५ मिलीग्राम काली मिर्च का चूर्ण और घी के साथ या शहद के साथ अथवा रोगानुसार उचित अनुपान के साथ !!

                      !! कुमार कल्याण रस !!

गुण व उपयोग : – कुमार कल्याण रस के सेवन से हृदय, फुफ्फुस, मस्तिष्क, ज्ञानेन्द्रिय, यकृत्, उदर, मूत्रपिण्ड, बच्चों के कास, क्षय, संग्रहणी, वमन, श्वास आदि रोगों में उत्तम लाभ मिलता है ! यह मोती, स्वर्ण रससिन्दूर आदि से तैयार होने के कारण उत्तम लाभदायक औषधी है ! यह शरीर की को ताकत देने वाला है !!

मात्रा व अनुपान : – बच्चों को ½ गोली, माँ के दूध या मिश्री या बच तथा शहद के साथ दें ! पूरी उम्रवालों के लिए १-१ गोली, सुबह-शाम रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                         !! कुष्ठकुठार रस !!

गुण व उपयोग : – कुष्ठकुठार रस कुष्ठ रोग में उपयोग किया जाता है ! हालाँकि कुछ कुष्ठ रोग में आवश्यक है कि औषधी का सेवन नियमित व लम्बे समय तक दिया जाए ! कुष्ठ रोग में उंगलियों के पोर गलकर गिरने लगते हैं, उनमें मवाद भी रिसने लगता है ! ऐसी अवस्था में कुष्ठकुठार रस शीघ्र लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली सुबह-शाम पानी के साथ !!

                       !! कुष्ठ कालानल रस !!

गुण व उपयोग : – कुष्ठ कालानल रस का उपयोग सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों में लाभदायक माना गया है ! इसके साथ महा मंजिष्ठाद्यरिष्ट या खदिरारिष्ट क्वाथ का उपयोग किया जाऐ तो उपरोक्त रक्त विकार व त्वचा रोगों में शीघ्र लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से ३ गोली, दिन में दो बार पानी के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान के साथ !!

                       !! खंज निकारि रस !!

गुण व उपयोग : – खंज निकारि रस लकवा, गठिया, आतशक, धनुष्टंकार, सूजाक से उत्पन्न वातरोग आदि मेंउत्तम लाभ प्रदान करता है ! वात एवं कफ से संबंधित न्यूमोनिया, कास-श्वास आदि में इसका उपयोग लाभदायक है ! इसमें मल्ल सिन्दूर, रौप्य और कुचला होने के कारण यह उत्तम योग अत्यन्त उग्र एवं उष्णवीर्य है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में दो बार गाय के दूध या दशमूल क्वाथ के अनुपान के साथ !!

विशेष : – पित्त विकारों में इसका प्रयोग किसी सौम्य औषधी के साथ करना चाहिए !!

                        !! गदमुरादि रस !!

गुण व उपयोग : – गदमुरादि रस के सेवन से पुराने विषम ज्वर, रस गत ज्वर, पित्त गत ज्वर एवं सही चिकित्सा न होने के बिगड़े सन्निपात व विषम ज्वर में शीघ्र लाभ मिलता है ! क्षय कर प्रारम्भिक अवस्था में भी इसका सेवन उत्तम लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार सुखोष्ण पानी के साथ या अदरक रस के साथ अथवा तुलसी के पत्तों का स्वरस के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान के साथ !!

                        !! गन्धक रसायन !!

गुण व उपयोग : – गन्धक रसायन के सेवन से कुष्ठ, रक्त विकार जन्य फोड़ा-फुन्सी, चकत्तों का पड़ना, आशतक (गर्मी) के सब उपद्रव नष्ट हो जाते हैं ! धातु-क्षय, प्रमेह, मन्दाग्नि और उदर शूलादि में भी यह लाभदायक है ! यह रस-रक्तादि सप्त धातु शोधक एवं बल वीर्यवर्द्धक, पौष्टिक एवं अग्नि दीपक है ! तथा कफ और आमाषय के रोगों में भी लाभदायक है ! किसी भी कारण से दूषित हुए रक्त व चर्म रोग में रक्त को शुद्ध करता है !!

मात्रा व अनुपान: – ५०० से १००० मिलीग्राम सुबह-शाम पानी, दूध, मंजिष्ठादि क्वाथ अथवा खदिरारिष्ट के साथ !!

                           !! गंगाधर रस !!

गुण व उपयोग : – गंगाधर के सेवन से अतिसार, मनदाग्नि, संग्रहणी, दस्त, आमतिसार व रक्तातिसार में शीघ्र लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली, दिन में दो बार छाछ के साथ, रक्तातिसार में कुड़े की छाल के क्वाथ के साथ !!

                    !! गण्डमाला कण्डन रस !!

गुण व उपयोग : – गण्डमाला कण्डन रस के सेवन से गण्डमाला (कण्ठबोल-घेंघा) अपची और गाँठ वाले फोड़े-फुन्सियों में उत्तम लाभ मिलता है ! गण्डमाला रोग की यह उत्तम औषधी है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार कचनार की छाल के क्वाथ से या ताजे पानी के साथ !!

                           !! गर्भपाल रस !!

गुण व उपयोग : – गर्भपाल रस गर्भावस्था में होने वाले विकारों की उत्तम औषधी है ! गर्भावस्था में होने वाले पांडु, अतिसार, मन्दाग्नि, सिरदर्द, भूख न लगना, चक्कर आना, घबराहट, कमर दर्द, गर्भशय की कमजोरी, मानसिक चिन्ता, हिस्टीरिया आदि में शीघ्र लाभ प्रदान करता है ! दुग्ध दोष, सूजाक, आंतशक के कारण गर्भपात की सम्भावना में मंजिष्ठादि क्वाथ के साथ भोजन के तुरन्त बाद उल्टी आना, चक्कर आना, कमर दर्द आदि में कामदुधा रस या स्वर्ण माक्षिक भस्म के साथ देने से शीघ्र लाभ मिलता है ! इसके सेवन से गर्भ स्थापन में भी मदद मिलती है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में दो बार गुडूची सत्व और शहद या धारोष्ण दूध के साथ अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                       !! गर्भविनोद रस !!

गुण व उपयोग : – गर्भविनोद रस वमन, जी मिचलाना, कण्ठ में दाह होना, ज्वर, अतिसार, अफारा आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करता है ! यह गर्भपोषक व उत्तम दीपन-पाचल है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली, दिन में दो बार शहद या पानी के साथ अथवा मिश्री-मक्खन के साथ अथवा गाय के दूध के साथ या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                     !! ग्रहणी गजकेशरी रस !!

गुण व उपयोग : – ग्रहणी गजकेशरी रस के सेवन से रक्त-शूल, प्रवाहिका, आंवयुक्त ग्रहणी, पुराना अतिसार और पीड़ायुक्त भंयकर विसूचिका में शीघ्र लाभ मिलता है ! संग्रहणी में बार-बार दस्त आना, अपचन, पेट के नीचले हिस्से में दर्द, वमन जैसी स्थिती में यह शीघ्र लाभ प्रदान करता है ! यह रस उत्तम दीपन-पाचन व स्तम्भक है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली जायफल के पानी और शहद के साथ या छाछ के साथ !!

                        !! ग्रहणी कपाट रस !!

गुण व उपयोग : – ग्रहणी कपाट रस का सेवन संग्रहणी की सब अवस्थाओं में चाहे वह पित्तज, वातज या कफज जिस दोष से उत्पन्न हुर्इ हो, प्रयोग किया जाता है ! इसके सेवन से भंयकर अतिसार, संग्रहणी और पुराने अतिसार दूर हो जाते हैं तथा आमविकार नष्ट हो अग्नि प्रदीप्त होती है ! विशेषकर पेट में दर्द हो, बार-बार दस्त लगें व जलन के साथ दस्त हों, दस्तों में आंव का अंश व मरोड़ के साथ हों, थोड़ा खून मिला हुआ हो तो ऐसी अवस्था में यह रस अच्छा काम करता है ! इसके सेवन से आंव का पाचन हो, अग्नि प्रदीप्त होती है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली शहद या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                       !! गुल्म कुठार रस !!

गुण व उपयोग : – गुल्म कुठार रस के सेवन से गुल्म, हृदय के दर्द, पसली के दर्द, उदर शूल, पाचक पित्त की कमजोरी, अम्ल पित्त, भोजन पचने के दौरान पेट में दर्द होना, मन्दाग्नि, पित्त प्रधान गुल्म, कमजोरी आदि में शीघ्र लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, सुबह-शाम अदरक स्वरस, सज्जीखार, यवक्षार चूर्ण के साथ अथवा शहद के साथ !!

                       !! गुल्म कालानल रस !!

गुण व उपयोग : – गुल्म कालानल रस का उपयोग गुल्म रोग में किया जाता है ! आंतों के भीतर मल का ग्रन्थि रूप में हो जाना, आंत के भीतर वायु भर कर कभी ऊपर तो कभी नीचे की ओर सदृश बन कर घुमना, पेट के अन्दर पतली-पतली मांस नसों का एक-दूसरे से मिलकर गाँठ के रूप में बन जाना व केवल अफारा आदि के कारण गाँठ उत्पन्न होना, ये सभी गुल्म रोग कहलाते हैं ! इस सभी लक्षणों में इसका उपयोग शीघ्र लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में दो बार हरड़ के क्वाथ के साथ !!

                        !! चतुर्मुख रस !!

गुण व उपयोग : – चतुर्मुख रस के सेवन से समस्त प्रकार के वायु रोगों, शारीरिक दुर्बलता, रक्तचाप कम होना आदि में उत्तम लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – चिकित्सक की सलाह अनुसार !!

                         !! चतुर्भुज रस !!

गुण व उपयोग : – चतुर्भुज रस के सेवन से अपतंत्रक, ‌‌‌आक्षेपक, दिमागी दुर्बलता, अपस्मार व वात रोगों में उत्तम लाभ प्राप्त होता है ! यह कंपवात में विशेष लाभदायक है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                         !! चन्द्रकला रस !!

गुण व उपयोग: – चन्द्रकला रस के सेवन से रक्तपित्त, मूत्रकृच्छ, दाह, वमन, अजीर्ण ज्वर एवं पित्त विकारों में शीघ्र लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में दो बार या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                         !! चन्द्रामृत रस !!

गुण व उपयोग: – चन्द्रामृत रस खाँसी, बुखार, जुकाम, गले की खराबी, अजीर्ण ज्वर, श्वास व मन्दाग्नि आदि रोगों में शीघ्र लाभ प्रदान करता है ! इसमें सौंठ, हरड़, सफेद जीरा, लौह भस्म आदि घटक द्रव्य होते हैं !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में दो बार शहद या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                     !! चन्द्रकान्ति रस !!

गुण व उपयोग : – चन्द्रकान्ति रस के सेवन से सभी प्रकार के प्रमेह रोग, मूत्रातिसार, उग्र राजयक्ष्मा, भगन्दर, धातुक्षीणता, मूत्राघात, अश्मरी, मधुमेह आदि रोगों में उत्तम लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार अथवा आवश्यकता अनुसार शहद या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                       !! चन्द्रांशु रस !!

गुण व उपयोग : – चन्द्रांशु रस गर्भाशय दोष, योनि शूल, योनि में पीड़ा एवं दाह होना तथा योनि की स्थान भ्रष्टता (अपने स्थान से हट जाना, विकृत हो जाना आदि), योनि में खरिश होना, रजोदोष, कामवासनाओं की शान्ति न होन के कारण उत्पन्न हिस्टीरिया आदि रोगों में उत्तम लाभ प्रदान करता है ! यह गर्भाशय को ताकत प्रदान करने वाला है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार जीरा क्वाथ, गाय के दूध, जटामांसी क्वाथ या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                 !! चिन्तामणि चतुर्मुख रस !!

गुण व उपयोग : – इस रस के सेवन से शारीरिक व मानसिक कमजोरी, अनिद्रा, हृदय रोग, घबराहट, भ्रम, हिस्टीरिया, मिर्गी आदि रोगों में उत्तम लाभ मिलता है ! यह हृदय को ताकत देने वाला है ! शुक्रक्षय के कारण आर्इ कमजोरी में बंग भस्म व प्रवाल भस्म के साथ इसका सेवन शीघ्र लाभ प्रदान करता है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार त्रिफला चूर्ण और शहद के साथ अथवा रोगानुसार उचित अनुपान के साथ !!

                       !! चिन्तामणि रस !!

गुण व उपयोग : – चिन्तामणि रस के सेवन से मानसिक कमजोरी, अनिद्रा, हृदय रोग, भ्रम, घबराहट, उच्च रक्तचाप, हिस्टीरिया आदि रोगों में अच्छा लाभ मिलता है ! हृदय रोग के साथ उदर रोग व यकृत् शोथ में ‌‌‌आरोग्यवर्धिनी बटी के साथ सेवन करने से अच्छा लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली, दिन में दो बार शहद अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                     !! चन्द्रोदय रस !!

गुण व उपयोग : – चन्द्रोदय रस उन्माद, अपस्मार, बद्धकोष्ठ, जीर्ण ज्वर, धनुर्वात, शुक्रक्षय के विकार व विषम ज्वर, हिस्टीरिया आदि में अच्छा लाभ प्रदान करता है ! शुक्रक्षय से हुर्इ कमजोरी, मन्दाग्नि व पाचन शक्ति की कमजोरी को दूर कर शरीर को बल प्रदान करता है !! मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                   !! जवाहर मोहरा रस !!

गुण व उपयोग : – जवाहर मोहरा से के सेवन से समस्त प्रकार के हृदय रोग, हृदय व फेफड़ों की दुर्बलता, घबराहट, धड़कन आदि में शीघ्र लाभ मिलता है ! यह हृदय को बल देने वाला है ! जवाहर मोहरा (साधारण) के अलावा स्वर्ण-मुक्ता- कस्तूरी- अम्बरयुक्त व स्वर्ण-रौपय आदि से युक्त भी उपलब्ध हैं ! जो कि जवाहर मोहरा (साधारण) से अधिक गुण वाले होते हैं !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली, दिन में 2-3 बार रोगानुसार अनुपान के साथ !!

    !! चौंसठ प्रहरी पीपल !!

गुण व उपयोग : – चौंसठ प्रहरी पीपल के सेवन से हृदय की कमजोरी, अम्लपित्त, हिचकी, पांडु, अर्श, शूल, कास, श्वास, अग्निमांद्य, अरूचि, कफ एवं वात जनित विकार में उत्तम लाभ मिलता है ! प्रसूत ज्वर, शीत ज्वर व जीर्ण ज्वर में भी अनुपान भेद के साथ सेवन करने से लाभ प्रदान करता है ! यह हृदय को बल देने वाला है !!

मात्रा व अनुपान: – २५० से ५०० मिलीग्राम, दिन में दो बार शहद या रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                   !! जलोदरारि रस !!

गुण व उपयोग : – जलोदरारि रस यकृत् विकार, उदर रोग, पेट फूला हुआ रहना, पांडु, शोथ, यकृत व प्लीहा की वृद्धि होकर उत्पन्न हो जाना व किसी भी कारण से हुये जलसंचय को नष्ट करता है ! व संचित जल को बाहर निकालता है ! जलोदा रोग की यह खास औषधी है ! यह संशोधक व तीव्र रेचक है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली ऊँटनी के दूध, पनर्नवा रस या दशमूल क्वाथ के साथ !!

                       !! जयमंगल रस !!

गुण व उपयोग : – जयमंगल रस के सेवन से सभी प्रकार के पुराने, जटिल व धातुगत ज्वर एवं उनके उपद्रव नष्ट होते हैं ! यह शरीर को ताकत देने वाला है ! हिंगुल, कज्जली, ताम्र भस्म व स्वर्ण भस्म आदि इसके प्रमुख घटक द्रव्य है !!

मात्रा व अनुपान : – १-१ गोली जीरे के चूर्ण और शहद या गुडूची स्वरस और शहद के साथ !!

                        !! तारकेश्वर रस !!

गुण व उपयोग : – तारकेश्वर रस के सेवन से बार-बार आने वाला पेशाब व दूषित पदार्थों के निकालने में उत्तम लाभ मिलता है ! शुक्र की कमी या वीर्य वाहिनियों की अशक्तता के कारण उत्पन्न नपुंसकता में यह लाभदायक है ! बहुमूत्र की बीमारी में इसका विशेष उपयोग किया जाता है ! इसमें रस सिन्दूर, बंग भस्म, अभ्रक भस्म मुख्य घटक द्रव्य हैं !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में दो बार पानी अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                   !! ज्वरांकुश रस !!

गुण व उपयोग : – ज्वरांकुश रस मलेरिया ज्वर की प्रसिद्ध औषधी है ! वात व कफ के ज्वर, सर्दी, जुकाम एवं इन्फलूएन्जा में भी लाभदायक है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में दो बार रोगानुसार अनुपान के साथ !!

                     !! ज्वरमुरारि रस !!

गुण व उपयोग : – ज्वरमुरारि रस के सेवन से ज्वर में होने वाले अजीर्ण, अपचन व अतिसार में उत्तम लाभ मिलता है ! गुल्म, उदर रोग व आमवात में भी लाभदायक है !!

मात्रा व अनुपान: – १-१ गोली, दिन में दो बार अदरक के रस और शहद के साथ !!

                     !! त्रिभुवन कीर्ति रस !!

गुण व उपयोग : – त्रिभुवन कीर्ति रस के सेवन से सर्दी, जुकाम, सूखी खाँसी व संक्रामक रूप से फैले इन्फलूएन्जा, गले की खराबी, तीव्र वेदना, शरीर का ताप बढ़ना व वात-कफ ज्वरों में विशेष लाभ मिलता है !!

मात्रा व अनुपान: – १ से २ गोली, दिन में ३-४ बार अदरक के रस व शहद अथवा रोगानुसार के साथ !!

                !! त्रैलोक्य चिन्तामणि रस !!

गुण व उपयोग : – त्रैलोक्य चिन्तामणि रस के सेवन से सभी प्रकार के वात रोगों, स्नायविक दुर्बलता, पागलपन, अपस्मार, अपतन्त्रक, विष, खाँसी, राजयक्ष्मा, शूल, शोथ, संगहणी, रक्तातिसार, प्रमेह, क्षय, श्वास, वातविद्रधी, पांडु, तिल्ली, जलोदर, अश्मरी, तृषा, हलीमक, उदर रोग, भगन्दर, ज्वर, अर्श व कुष्ठ आदि रोगों में उत्तम लाीा प्रदान मिलता है !!

मात्रा व अनुपान : – १ से २ गोली, दिन में दो बार, वातरोग-गठिया, लकवा, पक्षाघात आदि रोगों में रास्नादि या दशमूल क्वाथ अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ !!

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना

*एंटी डोज* (पुरानी दवाई का प्रभाव कम करना) --बड़ी हरड का छिलका चुरण ढाई सौ ग्राम , सोडा बाइकार्ब 125 ग्राम, मिलाकर रखें । इसकी मात्रा 125 एम...